वज्रायुध: Difference between revisions
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<li> म. पु. | <li> म. पु./63/श्लो<strong>−</strong>पूर्वविदेह के रत्नसंचय नामक नगर के राजा क्षेमंकर का पुत्र था।37 - 39। इन्द्र की सभा में इनके सम्यग्दर्शन की प्रशंसा हुई। एक देव बौद्ध का रूप धर परीक्षा के लिए आया।48, 50। जिसको इन्होंने वाद में परास्त कर दिया।69-70। एक समय विद्याधर ने नागपाश में बाँध कर इन्हें सरोवर में रोक दिया और ऊपर से पत्थर ढक दिया। तब इन्होंने मुष्टिप्रहार से उसके टुकड़े कर दिये।82-85। दीक्षा ले एक वर्ष का प्रतिमायोग धारण किया।131-132। अधोग्रैवेयक में अहमिन्द्र हुए।140-141। यह शान्तिनाथ भगवान् के पूर्व का चौथा भव है। देखें [[ शान्तिनाथ ]]।</li> | ||
</ol | <li> म. पु.।59। श्लोक<strong>−</strong>जम्बूद्वीप के चक्रपुर नगर के स्वामी राजा अपराजित का पुत्र था।239। राज्य प्राप्ति।245। दीक्षा धारण।246। प्रिंगुवन में एक भीलकृत उपसर्ग को सहनकर सर्वार्थसिद्धि में देव हुए।274। भील सातवें नरक में गया।276। संजयन्त मुनि के पूर्व का दूसरा भव है।<strong>−</strong>देखें [[ संजयन्त ]]। </li> | ||
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<p id="1"> (1) एक विद्याधर राजा । यह विद्याधर नमि के वंशज राजा वज्रध्वज का पुत्र और वज्र का पिता था । <span class="GRef"> पद्मपुराण 5.18, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 13.22 </span></p> | |||
<p id="2">(2) वज्रपंजर नगर का एक विद्याधर । इसकी रानी वज्रशीला तथा पुत्र खेचरभानु था । <span class="GRef"> पद्मपुराण 6.396, </span>देखें [[ वज्रपंजर ]]</p> | |||
<p id="3">(3) मुनि संजयन्त के दूसरे पूर्वभव का जीव― चक्रपुर नगर के राजा अपराजित के पौत्र और राजा चक्रायुध के पुत्र । इनकी रानी रत्नमाला तथा पुत्र रत्नायुध था । ये पुत्र को राज्य देकर मुनि हो गये थे । <span class="GRef"> महापुराण </span>के अनुसार किसी समय ये मुनि-अवस्था में प्रतिमायोग धारण कर प्रियंगुखण्ड वन में विराजमान थे । इन्हें व्याध दारुण के पुत्र अतिदारुण ने मार डाला था । इस उपसर्ग को सहकर और धर्मध्यान से मरकर ये सर्वार्थसिद्धि में देव हुए थे । <span class="GRef"> महापुराण </span>59. 273-275, <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 27.89-94 </span></p> | |||
<p id="4">(4) भूमिगोचरी राजाओं में एक श्रेष्ठ राजा । यह सुलोचना के स्वयंवर में सम्मिलित हुआ था । <span class="GRef"> पांडवपुराण 3. 36-37 </span></p> | |||
<p id="5">(5) तीर्थंकर शान्तिनाथ के चौथे पूर्वभव का जीव― जम्बूद्वीप में स्थित पूर्वविदेहक्षेत्र के मंगलावती देश में रत्नसंचयनगर के राजा क्षेमंकर और रानी कनकचित्रा का पुत्र । इसकी रानी लक्ष्मीमती तथा पुत्र सहस्रायुध था । इन्द्र ने अपनी सभा में इसके सम्यक्त्व की प्रशंसा की थी, जिसे सुनकर विचित्रचूल देव परीक्षा लेने इसके निकट आया था । विचित्रचूल ने पण्डित का एक रूप धरकर इससे जीव सम्बन्धी विविध प्रश्न किये थे । इसने उत्तर देकर देव को निरुत्तर कर दिया था । एक समय सुदर्शन सरोवर में किसी विद्याधर ने इसे नागपाश से बाँधकर शिला से ढक दिया था किन्तु इसने शिला के टुकड़े-टुकड़े कर दिये थे और नागपाश को निकालकर फेंक दिया था । इसे चक्ररत्न की प्राप्ति हुई थी । अन्त में यह अपने पोते का कैवल्य देखकर संसार से विरक्त हुआ और अपने पुत्र सहस्रायुध को राज्य देकर पिता क्षेमंकर के पास दीक्षित हो गया था । सिद्धगिरि पर इसने एक वर्ष का प्रतिमायोग धारण किया क्या सहस्रायुध के साथ वैभार पर्वत पर देहोत्सर्ग कर ऊर्ध्वग्रैवेयक के सौमनस अधोविमान में उनतीस सागर की आयु का धारी अहमिन्द्र हुआ था । <span class="GRef"> महापुराण </span>63. 37-39, 44-45, 50-70, 85, 138-141, <span class="GRef"> पांडवपुराण 5.11-12, 17-36, 45-52 </span></p> | |||
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Revision as of 21:46, 5 July 2020
== सिद्धांतकोष से ==
- म. पु./63/श्लो−पूर्वविदेह के रत्नसंचय नामक नगर के राजा क्षेमंकर का पुत्र था।37 - 39। इन्द्र की सभा में इनके सम्यग्दर्शन की प्रशंसा हुई। एक देव बौद्ध का रूप धर परीक्षा के लिए आया।48, 50। जिसको इन्होंने वाद में परास्त कर दिया।69-70। एक समय विद्याधर ने नागपाश में बाँध कर इन्हें सरोवर में रोक दिया और ऊपर से पत्थर ढक दिया। तब इन्होंने मुष्टिप्रहार से उसके टुकड़े कर दिये।82-85। दीक्षा ले एक वर्ष का प्रतिमायोग धारण किया।131-132। अधोग्रैवेयक में अहमिन्द्र हुए।140-141। यह शान्तिनाथ भगवान् के पूर्व का चौथा भव है। देखें शान्तिनाथ ।
- म. पु.।59। श्लोक−जम्बूद्वीप के चक्रपुर नगर के स्वामी राजा अपराजित का पुत्र था।239। राज्य प्राप्ति।245। दीक्षा धारण।246। प्रिंगुवन में एक भीलकृत उपसर्ग को सहनकर सर्वार्थसिद्धि में देव हुए।274। भील सातवें नरक में गया।276। संजयन्त मुनि के पूर्व का दूसरा भव है।−देखें संजयन्त ।
पुराणकोष से
(1) एक विद्याधर राजा । यह विद्याधर नमि के वंशज राजा वज्रध्वज का पुत्र और वज्र का पिता था । पद्मपुराण 5.18, हरिवंशपुराण 13.22
(2) वज्रपंजर नगर का एक विद्याधर । इसकी रानी वज्रशीला तथा पुत्र खेचरभानु था । पद्मपुराण 6.396, देखें वज्रपंजर
(3) मुनि संजयन्त के दूसरे पूर्वभव का जीव― चक्रपुर नगर के राजा अपराजित के पौत्र और राजा चक्रायुध के पुत्र । इनकी रानी रत्नमाला तथा पुत्र रत्नायुध था । ये पुत्र को राज्य देकर मुनि हो गये थे । महापुराण के अनुसार किसी समय ये मुनि-अवस्था में प्रतिमायोग धारण कर प्रियंगुखण्ड वन में विराजमान थे । इन्हें व्याध दारुण के पुत्र अतिदारुण ने मार डाला था । इस उपसर्ग को सहकर और धर्मध्यान से मरकर ये सर्वार्थसिद्धि में देव हुए थे । महापुराण 59. 273-275, हरिवंशपुराण 27.89-94
(4) भूमिगोचरी राजाओं में एक श्रेष्ठ राजा । यह सुलोचना के स्वयंवर में सम्मिलित हुआ था । पांडवपुराण 3. 36-37
(5) तीर्थंकर शान्तिनाथ के चौथे पूर्वभव का जीव― जम्बूद्वीप में स्थित पूर्वविदेहक्षेत्र के मंगलावती देश में रत्नसंचयनगर के राजा क्षेमंकर और रानी कनकचित्रा का पुत्र । इसकी रानी लक्ष्मीमती तथा पुत्र सहस्रायुध था । इन्द्र ने अपनी सभा में इसके सम्यक्त्व की प्रशंसा की थी, जिसे सुनकर विचित्रचूल देव परीक्षा लेने इसके निकट आया था । विचित्रचूल ने पण्डित का एक रूप धरकर इससे जीव सम्बन्धी विविध प्रश्न किये थे । इसने उत्तर देकर देव को निरुत्तर कर दिया था । एक समय सुदर्शन सरोवर में किसी विद्याधर ने इसे नागपाश से बाँधकर शिला से ढक दिया था किन्तु इसने शिला के टुकड़े-टुकड़े कर दिये थे और नागपाश को निकालकर फेंक दिया था । इसे चक्ररत्न की प्राप्ति हुई थी । अन्त में यह अपने पोते का कैवल्य देखकर संसार से विरक्त हुआ और अपने पुत्र सहस्रायुध को राज्य देकर पिता क्षेमंकर के पास दीक्षित हो गया था । सिद्धगिरि पर इसने एक वर्ष का प्रतिमायोग धारण किया क्या सहस्रायुध के साथ वैभार पर्वत पर देहोत्सर्ग कर ऊर्ध्वग्रैवेयक के सौमनस अधोविमान में उनतीस सागर की आयु का धारी अहमिन्द्र हुआ था । महापुराण 63. 37-39, 44-45, 50-70, 85, 138-141, पांडवपुराण 5.11-12, 17-36, 45-52