वन्दना: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
|||
Line 1: | Line 1: | ||
<p id="1"> (1) अंगबाह्यश्रुत का तीसरा प्रकीर्णक । इसमें वन्दना करने योग्य परमेष्ठी आदि की वन्दना-विधि बतलायी गयी है । हरिवंशपुराण 2. 102, 10. 130</p> | <p id="1"> (1) अंगबाह्यश्रुत का तीसरा प्रकीर्णक । इसमें वन्दना करने योग्य परमेष्ठी आदि की वन्दना-विधि बतलायी गयी है । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 2. 102, 10. 130 </span></p> | ||
<p id="2">(2) छ: आवश्यकों में तीसरा आवश्यक । इसमें बारह आवते और चार शिरोनतियाँ की जाती है । हरिवंशपुराण 34.144</p> | <p id="2">(2) छ: आवश्यकों में तीसरा आवश्यक । इसमें बारह आवते और चार शिरोनतियाँ की जाती है । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 34.144 </span></p> | ||
<noinclude> | <noinclude> | ||
[[ | [[ वनीपक | पूर्व पृष्ठ ]] | ||
[[ | [[ वन्द्यता | अगला पृष्ठ ]] | ||
</noinclude> | </noinclude> | ||
[[Category: पुराण-कोष]] | [[Category: पुराण-कोष]] | ||
[[Category: व]] | [[Category: व]] |
Revision as of 21:46, 5 July 2020
(1) अंगबाह्यश्रुत का तीसरा प्रकीर्णक । इसमें वन्दना करने योग्य परमेष्ठी आदि की वन्दना-विधि बतलायी गयी है । हरिवंशपुराण 2. 102, 10. 130
(2) छ: आवश्यकों में तीसरा आवश्यक । इसमें बारह आवते और चार शिरोनतियाँ की जाती है । हरिवंशपुराण 34.144