वाक्य: Difference between revisions
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न्या.सू./मू./ | न्या.सू./मू./2/1/62-65 <span class="PrakritText">विध्यर्थवादानुवादवचनविनियोगात् ।62। विधिर्विधायकः।63। स्तुतिर्निन्दा परकृतिः पुरा-कल्प इत्यर्थवादः।64। विधिविहितस्यानुवचनमनुवादः।65। </span>=<span class="HindiText"> ब्राह्मण ग्रन्थों का तीन प्रकार से विनियोग होता है - विधिवाक्य, अर्थवाक्य, अनुवादवाक्य।62। आज्ञा या आदेश करने वाले वाक्य विधिवाक्य है। अर्थवाद चार प्रकार का है - स्तुति, निन्दा, परकृति और पुराकल्प (इनके लक्षणों के लिए देखें [[ वह वह नाम ]])। विधि का अनुवचन और विधि से जो विधान किया गया उसके अनुवचन को अनुवाद कहते हैं। <br /> | ||
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<li><span class="HindiText"> वचन के अनेकों भेद व लक्षण - देखें | <li><span class="HindiText"> वचन के अनेकों भेद व लक्षण - देखें [[ वचन ]]। </span></li> | ||
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Revision as of 21:47, 5 July 2020
न्या.वि./वृ./1/6/137/14 वाक्यं नाम पदसंदोहकल्पितं नाखण्डैकरूपम्। = वाक्य नाम पदों के समूह का है, अखण्ड एक रूप का नहीं।
न्या.सू./मू./2/1/62-65 विध्यर्थवादानुवादवचनविनियोगात् ।62। विधिर्विधायकः।63। स्तुतिर्निन्दा परकृतिः पुरा-कल्प इत्यर्थवादः।64। विधिविहितस्यानुवचनमनुवादः।65। = ब्राह्मण ग्रन्थों का तीन प्रकार से विनियोग होता है - विधिवाक्य, अर्थवाक्य, अनुवादवाक्य।62। आज्ञा या आदेश करने वाले वाक्य विधिवाक्य है। अर्थवाद चार प्रकार का है - स्तुति, निन्दा, परकृति और पुराकल्प (इनके लक्षणों के लिए देखें वह वह नाम )। विधि का अनुवचन और विधि से जो विधान किया गया उसके अनुवचन को अनुवाद कहते हैं।
- वचन के अनेकों भेद व लक्षण - देखें वचन ।