वारुणी: Difference between revisions
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त.अनु./185<span class="SanskritGatha"> ह-मन्त्रो नभसि ध्येयः क्षरन्नमृतमात्मनि। तेनान्यत्तद्विनिर्माय पीयूषमयपमुज्ज्वलम्।185।</span> = <span class="HindiText">‘ह’ मन्त्र को आकाश में ऐसे ध्याना चाहिए कि उससे आत्मा में अमृत झर रहा है और उस अमृत से अन्य शरीर का निर्माण होकर वह अमृतमय और उज्ज्वल बन रहा है। <br /> | |||
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<li><span class="HindiText"> रुचक पर्वत निवासिनी एक | <li><span class="HindiText"> रुचक पर्वत निवासिनी एक दिक्कुमारी - देखें [[ लोक#5.13 | लोक - 5.13]]। </span></li> | ||
<li><span class="HindiText"> विजयार्ध की उत्तर श्रेणी का नगर। - देखें | <li><span class="HindiText"> विजयार्ध की उत्तर श्रेणी का नगर। - देखें [[ विद्याधर ]]। </span></li> | ||
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<p id="1">(1) विजया पर्वत सम्बन्धी उत्तरश्रेणी की दूसरी नगरी । <span class="GRef"> महापुराण 19. 78, 87 </span></p> | |||
<p id="2">(2) भरतक्षेत्र के कौशल देश में वर्धकि अपर नाम वृद्ध ग्राम के मृगायण ब्राह्मण और उसकी स्त्री मधुरा की पुत्री । इसका पिता मरकर साकेत नगर का दिव्यबल अपर नाम अतिबल राजा हुआ था । सुमति उसकी रानी थी । यह मरकर उसकी हिरण्यवती पुत्री हुई जिसका विवाह पोदनपुर के राजा पूर्णचन्द्र से हुआ । पूर्वभव की इसकी मां मथुरा इस पर्याय में इसकी रामदत्ता नाम की पुत्री हुई । <span class="GRef"> महापुराण 59.207-211, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 27.61-64 </span></p> | |||
<p id="3">(3) एक विद्या यह रावण को प्राप्त थी । <span class="GRef"> पद्मपुराण 7.329-332 </span></p> | |||
<p id="4">(4) काम्पिल्य नगर के धनद वैश्य की स्त्री । भूषण की यह जननी थी । <span class="GRef"> पद्मपुराण 85.85-86 </span></p> | |||
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Revision as of 21:47, 5 July 2020
== सिद्धांतकोष से ==
ज्ञा./37/24-27 वारुण्यां स हि पुण्यात्मा घनजालचितं नभः। इन्द्रायुघतडिद्गर्जच्चमत्काराकुलं स्मरेत्।24। सुधाम्बुप्रभवैः सान्द्रैर्बिन्दुभिर्मौक्तिकोज्ज्वलैः। वर्षन्तं ते स्मरेद्धीरः स्थूलस्थूलैर्निरन्तरम्।25। ततोऽद्वेन्दुसमं कान्तं पुरं वरुणलाञ्छितम्। ध्यायेत्सुधापयःपूरैः प्लावयन्तं नभस्तलम्।26। तेनाचिन्त्यप्रभावेण दिव्यध्यानोत्थिताम्बुना। प्रक्षलयति निःशेषं तद्रजःकायसंभवम्। = वही पुण्यात्मा (ध्यानी मुनि) इन्द्रधनुष, बिजली, गर्जनादि चमत्कार सहित मेघों के समूह से भरे हुए आकाश का ध्यान करै।24। तथा उन मेघों को अमृत से उत्पन्न हुए मोतियों के समान उज्ज्वल बड़े-बड़े बिन्दुओं से निरन्तर धाररूप वर्षते हुए आकाश को धीर, वीर मुनि स्मरण करे अर्थात् ध्यान करै ।25। तत्पश्चात् अर्द्धचन्द्राकार, मनोहर, अमृतमय, जल के प्रवाह से आकाश को बहाते हुए वरुणपुर (वरुण मण्डल का) चिन्तवन करे।26। अचिन्त्य है प्रभाव जिसका ऐसे दिव्य ध्यान से उत्पन्न हुए जल से, शरीर के जलने से (देखें आग्नेयी धारणा ) उत्पन्न हुए समस्त भस्म को प्रक्षालन करता है, अर्थात् धोता है, ऐसा चिन्तवन करे।27।
त.अनु./185 ह-मन्त्रो नभसि ध्येयः क्षरन्नमृतमात्मनि। तेनान्यत्तद्विनिर्माय पीयूषमयपमुज्ज्वलम्।185। = ‘ह’ मन्त्र को आकाश में ऐसे ध्याना चाहिए कि उससे आत्मा में अमृत झर रहा है और उस अमृत से अन्य शरीर का निर्माण होकर वह अमृतमय और उज्ज्वल बन रहा है।
- रुचक पर्वत निवासिनी एक दिक्कुमारी - देखें लोक - 5.13।
- विजयार्ध की उत्तर श्रेणी का नगर। - देखें विद्याधर ।
पुराणकोष से
(1) विजया पर्वत सम्बन्धी उत्तरश्रेणी की दूसरी नगरी । महापुराण 19. 78, 87
(2) भरतक्षेत्र के कौशल देश में वर्धकि अपर नाम वृद्ध ग्राम के मृगायण ब्राह्मण और उसकी स्त्री मधुरा की पुत्री । इसका पिता मरकर साकेत नगर का दिव्यबल अपर नाम अतिबल राजा हुआ था । सुमति उसकी रानी थी । यह मरकर उसकी हिरण्यवती पुत्री हुई जिसका विवाह पोदनपुर के राजा पूर्णचन्द्र से हुआ । पूर्वभव की इसकी मां मथुरा इस पर्याय में इसकी रामदत्ता नाम की पुत्री हुई । महापुराण 59.207-211, हरिवंशपुराण 27.61-64
(3) एक विद्या यह रावण को प्राप्त थी । पद्मपुराण 7.329-332
(4) काम्पिल्य नगर के धनद वैश्य की स्त्री । भूषण की यह जननी थी । पद्मपुराण 85.85-86