विनय: Difference between revisions
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| <p>मोक्षमार्ग में विनय का प्रधान स्थान है। वह दो प्रकार का है–निश्चय व व्यवहार। अपने रत्नत्रयरूप गुण की विनय निश्चय है और रत्नत्रयधारी साधुओं आदि की विनय व्यवहार या उपचार विनय है। यह दोनों ही अत्यन्त प्रयोजनीय है। ज्ञान प्राप्ति में गुरु विनय अत्यन्त प्रधान है। साधु आर्य का आदि चतुर्विध संघ में परस्पर में विनय करने सम्बन्धी जो नियम है उन्हें पालन करना एक तप है। मिथ्यादृष्टियों व कुलिंगियों की विनय योग्य नहीं। <br /> | ||
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<li>[[भेद व लक्षण#1.2 | विनय के सामान्य भेद। (लोकानुवृत्त्यादि) ]]<br /> | <li>[[<strong>भेद व लक्षण</strong>#1.2 | विनय के सामान्य भेद। (लोकानुवृत्त्यादि) ]]<br /> | ||
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<li>[[भेद व लक्षण#1.3 | मोक्षविनय के सामान्य भेद। (ज्ञानदर्शनादि)]] <br /> | <li>[[<strong>भेद व लक्षण</strong>#1.3 | मोक्षविनय के सामान्य भेद। (ज्ञानदर्शनादि)]] <br /> | ||
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<li>[[भेद व लक्षण#1.4 | उपचारविनय के भेद। (कायिक वाचिकादि)]] </li> | <li>[[<strong>भेद व लक्षण</strong>#1.4 | उपचारविनय के भेद। (कायिक वाचिकादि)]] </li> | ||
<li>[[भेद व लक्षण#1.5 | लोकानुवृत्त्यादि सामान्य विनयों के लक्षण। ]]<br /> | <li>[[<strong>भेद व लक्षण</strong>#1.5 | लोकानुवृत्त्यादि सामान्य विनयों के लक्षण। ]]<br /> | ||
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<li> [[भेद व लक्षण#1.6 | ज्ञान दर्शन आदि विनयों के लक्षण। ]]<br /> | <li> [[<strong>भेद व लक्षण</strong>#1.6 | ज्ञान दर्शन आदि विनयों के लक्षण। ]]<br /> | ||
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<li>[[उपचार विनय विधि#3.1 | विनय व्यवहार में शब्द प्रयोग आदि सम्बन्धी कुछ नियम। ]]<br /> | <li>[[<strong>उपचार विनय विधि</strong><strong></strong>#3.1 | विनय व्यवहार में शब्द प्रयोग आदि सम्बन्धी कुछ नियम। ]]<br /> | ||
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<li>साधु व आर्यिका की संगति व वचनालाप सम्बन्धी कुछ नियम।–देखें | <li>साधु व आर्यिका की संगति व वचनालाप सम्बन्धी कुछ नियम।–देखें [[ संगति ]]। <br /> | ||
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<li>[[उपचार विनय विधि#3.2 | विनय व्यवहार के योग्य व अयोग्य अवस्थाएँ। ]]<br /> | <li>[[<strong>उपचार विनय विधि</strong><strong></strong>#3.2 | विनय व्यवहार के योग्य व अयोग्य अवस्थाएँ। ]]<br /> | ||
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<li>[[उपचार विनय विधि#3.3 | उपचार विनय की आवश्यकता ही क्या?]]<br /> | <li>[[<strong>उपचार विनय विधि</strong><strong></strong>#3.3 | उपचार विनय की आवश्यकता ही क्या?]]<br /> | ||
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<li>[[उपचार विनय के योग्यायोग्य पात्र#4.1 | यथार्थ साधु आर्यिका आदि वन्दना के पात्र हैं।]] <br /> | <li>[[<strong>उपचार विनय के योग्यायोग्य पात्र</strong><strong></strong><strong></strong>#4.1 | यथार्थ साधु आर्यिका आदि वन्दना के पात्र हैं।]] <br /> | ||
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<li>[[उपचार विनय के योग्यायोग्य पात्र#4.2 | जो इन्हें वन्दना नहीं करता सो मिथ्यादृष्टि है।]] <br /> | <li>[[<strong>उपचार विनय के योग्यायोग्य पात्र</strong><strong></strong><strong></strong>#4.2 | जो इन्हें वन्दना नहीं करता सो मिथ्यादृष्टि है।]] <br /> | ||
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<li>[[उपचार विनय के योग्यायोग्य पात्र#4.3 | चारित्रवृद्ध से भी ज्ञानवृद्ध अधिक पूज्य है।]] <br /> | <li>[[<strong>उपचार विनय के योग्यायोग्य पात्र</strong><strong></strong><strong></strong>#4.3 | चारित्रवृद्ध से भी ज्ञानवृद्ध अधिक पूज्य है।]] <br /> | ||
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<li>[[उपचार विनय के योग्यायोग्य पात्र#4.4 | मिथ्यादृष्टि जन व पार्श्वस्थादि साधु बन्द्य नहीं है। ]]<br /> | <li>[[<strong>उपचार विनय के योग्यायोग्य पात्र</strong><strong></strong><strong></strong>#4.4 | मिथ्यादृष्टि जन व पार्श्वस्थादि साधु बन्द्य नहीं है। ]]<br /> | ||
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<li> मिथ्यादृष्टि साधु श्रावक तुल्य भी नहीं | <li> मिथ्यादृष्टि साधु श्रावक तुल्य भी नहीं है।–देखें [[ साधु#4 | साधु - 4]]। <br /> | ||
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<li>[[उपचार विनय के योग्यायोग्य पात्र#4.5 | अधिक गुणी द्वारा हीन गुणी वन्द्य नहीं है। ]]<br /> | <li>[[<strong>उपचार विनय के योग्यायोग्य पात्र</strong><strong></strong><strong></strong>#4.5 | अधिक गुणी द्वारा हीन गुणी वन्द्य नहीं है। ]]<br /> | ||
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<li>[[उपचार विनय के योग्यायोग्य पात्र#4.6 | कुगुरु कुदेवादिकी वन्दना आदि का | <li>[[<strong>उपचार विनय के योग्यायोग्य पात्र</strong><strong></strong><strong></strong>#4.6 | कुगुरु कुदेवादिकी वन्दना आदि का कड़ा निषेध व उसका कारण। ]]<br /> | ||
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<li>[[उपचार विनय के योग्यायोग्य पात्र#4.7 | द्रव्यलिंगी भी | <li>[[<strong>उपचार विनय के योग्यायोग्य पात्र</strong><strong></strong><strong></strong>#4.7 | द्रव्यलिंगी भी कथंचित् वन्द्य है।]] <br /> | ||
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<li>[[उपचार विनय के योग्यायोग्य पात्र#4.8 | साधु को नमस्कार | <li>[[<strong>उपचार विनय के योग्यायोग्य पात्र</strong><strong></strong><strong></strong>#4.8 | साधु को नमस्कार क्यों? ]]<br /> | ||
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<li>[[उपचार विनय के योग्यायोग्य पात्र#4.9 | असंयत | <li>[[<strong>उपचार विनय के योग्यायोग्य पात्र</strong><strong></strong><strong></strong>#4.9 | असंयत सम्यग्दृष्टि वन्द्य क्यों नहीं?]]</li> | ||
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<li> सिद्ध से पहले अर्हन्त को नमस्कार क्यों?–देखें | <li> सिद्ध से पहले अर्हन्त को नमस्कार क्यों?–देखें [[ मन्त्र ]]। <br /> | ||
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<li>[[ साधु | <li><strong>[[ साधु परीक्षा का विधि निषेध</strong><strong>]] </strong><br /> | ||
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<li>[[साधु | <li>[[<strong>साधु परीक्षा का विधि निषेध</strong>#5.1 | आगन्तुक साधु की विनयपूर्वक परीक्षा विधि। ]]<br /> | ||
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<li>सहवास से व्यक्ति के गुप्त परिणाम भी जाने जा सकते | <li>सहवास से व्यक्ति के गुप्त परिणाम भी जाने जा सकते हैं।–देखें [[ प्रायश्चित्त#3.1 | प्रायश्चित्त - 3.1]]। <br /> | ||
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<li>[[साधु | <li>[[<strong>साधु परीक्षा का विधि निषेध</strong>#5.2 | साधु की परीक्षा करने का निषेध। ]]<br /> | ||
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<li>[[साधु | <li>[[<strong>साधु परीक्षा का विधि निषेध</strong>#5.3 | साधु परीक्षा सम्बन्धी शंका-समाधान ]]<br /> | ||
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<li>[[साधु | <li>[[<strong>साधु परीक्षा का विधि निषेध</strong>#5.3.1 | शील संयमादि तो पालते ही हैं?]]<br /> | ||
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<li>[[साधु | <li>[[<strong>साधु परीक्षा का विधि निषेध</strong>#5.3.2 | पञ्चम काल में ऐसे ही साधु सम्भव है?]]<br /> | ||
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<li>[[साधु | <li>[[<strong>साधु परीक्षा का विधि निषेध</strong>#5.3.3 | जैसे श्रावक वैसे साधु?]]<br /> | ||
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<li>[[साधु | <li>[[<strong>साधु परीक्षा का विधि निषेध</strong>#5.3.4 | इनमें ही सच्चे साधु की स्थापना कर लें। ]]<br /> | ||
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<li> | <li> सत् साधु ही प्रतिमावत् पूज्य हैं।–देखें [[ पूजा#3 | पूजा - 3]]। </li> | ||
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Revision as of 21:47, 5 July 2020
मोक्षमार्ग में विनय का प्रधान स्थान है। वह दो प्रकार का है–निश्चय व व्यवहार। अपने रत्नत्रयरूप गुण की विनय निश्चय है और रत्नत्रयधारी साधुओं आदि की विनय व्यवहार या उपचार विनय है। यह दोनों ही अत्यन्त प्रयोजनीय है। ज्ञान प्राप्ति में गुरु विनय अत्यन्त प्रधान है। साधु आर्य का आदि चतुर्विध संघ में परस्पर में विनय करने सम्बन्धी जो नियम है उन्हें पालन करना एक तप है। मिथ्यादृष्टियों व कुलिंगियों की विनय योग्य नहीं।
- [[ भेद व लक्षण ]]
- [[भेद व लक्षण#1.1 | विनय सामान्य का लक्षण। ]]
- [[भेद व लक्षण#1.2 | विनय के सामान्य भेद। (लोकानुवृत्त्यादि) ]]
- [[भेद व लक्षण#1.3 | मोक्षविनय के सामान्य भेद। (ज्ञानदर्शनादि)]]
- [[भेद व लक्षण#1.4 | उपचारविनय के भेद। (कायिक वाचिकादि)]]
- [[भेद व लक्षण#1.5 | लोकानुवृत्त्यादि सामान्य विनयों के लक्षण। ]]
- [[भेद व लक्षण#1.6 | ज्ञान दर्शन आदि विनयों के लक्षण। ]]
- [[भेद व लक्षण#1.7 | उपचार विनय सामान्य का लक्षण।]]
- [[भेद व लक्षण#1.8 | कायिकादि उपचार विनयों के लक्षण। ]]
- [[भेद व लक्षण#1.1 | विनय सामान्य का लक्षण। ]]
- विनय सम्पन्नता का लक्षण।–देखें विनय - 1.1।
- [[ सामान्य विनय निर्देश]]
- [[सामान्य विनय निर्देश#2.1 | आचार व विनय में अन्तर। ]]
- [[सामान्य विनय निर्देश#2.2 | ज्ञान के आठ अंगों को ज्ञान विनय कहने का कारण। ]]
- [[सामान्य विनय निर्देश#2.3 | एक विनयसम्पन्नता में शेष 15 भावनाओं का समावेश।]]
- [[सामान्य विनय निर्देश#2.4 | विनय तप का माहात्म्य । ]]
- देव-शास्त्र गुरु की विनय निर्जरा का कारण है।–देखें पूजा - 2।
- [[सामान्य विनय निर्देश#2.5 | मोक्षमार्ग में विनय का स्थान व प्रयोजन। ]]
- [[सामान्य विनय निर्देश#2.1 | आचार व विनय में अन्तर। ]]
- [[ उपचार विनय विधि ]]
- [[उपचार विनय विधि#3.1 | विनय व्यवहार में शब्द प्रयोग आदि सम्बन्धी कुछ नियम। ]]
- साधु व आर्यिका की संगति व वचनालाप सम्बन्धी कुछ नियम।–देखें संगति ।
- [[उपचार विनय विधि#3.2 | विनय व्यवहार के योग्य व अयोग्य अवस्थाएँ। ]]
- [[उपचार विनय विधि#3.3 | उपचार विनय की आवश्यकता ही क्या?]]
- [[उपचार विनय विधि#3.1 | विनय व्यवहार में शब्द प्रयोग आदि सम्बन्धी कुछ नियम। ]]
- [[ उपचार विनय के योग्यायोग्य पात्र ]]
- [[उपचार विनय के योग्यायोग्य पात्र#4.1 | यथार्थ साधु आर्यिका आदि वन्दना के पात्र हैं।]]
- सत् साधु प्रतिमावत् पूज्य हैं।–देखें पूजा - 3।
- [[उपचार विनय के योग्यायोग्य पात्र#4.2 | जो इन्हें वन्दना नहीं करता सो मिथ्यादृष्टि है।]]
- [[उपचार विनय के योग्यायोग्य पात्र#4.3 | चारित्रवृद्ध से भी ज्ञानवृद्ध अधिक पूज्य है।]]
- [[उपचार विनय के योग्यायोग्य पात्र#4.4 | मिथ्यादृष्टि जन व पार्श्वस्थादि साधु बन्द्य नहीं है। ]]
- मिथ्यादृष्टि साधु श्रावक तुल्य भी नहीं है।–देखें साधु - 4।
- [[उपचार विनय के योग्यायोग्य पात्र#4.5 | अधिक गुणी द्वारा हीन गुणी वन्द्य नहीं है। ]]
- [[उपचार विनय के योग्यायोग्य पात्र#4.6 | कुगुरु कुदेवादिकी वन्दना आदि का कड़ा निषेध व उसका कारण। ]]
- [[उपचार विनय के योग्यायोग्य पात्र#4.7 | द्रव्यलिंगी भी कथंचित् वन्द्य है।]]
- [[उपचार विनय के योग्यायोग्य पात्र#4.8 | साधु को नमस्कार क्यों? ]]
- [[उपचार विनय के योग्यायोग्य पात्र#4.9 | असंयत सम्यग्दृष्टि वन्द्य क्यों नहीं?]]
- सिद्ध से पहले अर्हन्त को नमस्कार क्यों?–देखें मन्त्र ।
- 14 पूर्वी से पहले 10 पूर्वी को नमस्कार क्यों?–देखें श्रुतकेवली - 1।
- [[उपचार विनय के योग्यायोग्य पात्र#4.1 | यथार्थ साधु आर्यिका आदि वन्दना के पात्र हैं।]]
- [[ साधु परीक्षा का विधि निषेध]]
- [[साधु परीक्षा का विधि निषेध#5.1 | आगन्तुक साधु की विनयपूर्वक परीक्षा विधि। ]]
- सहवास से व्यक्ति के गुप्त परिणाम भी जाने जा सकते हैं।–देखें प्रायश्चित्त - 3.1।
- [[साधु परीक्षा का विधि निषेध#5.2 | साधु की परीक्षा करने का निषेध। ]]
- [[साधु परीक्षा का विधि निषेध#5.3 | साधु परीक्षा सम्बन्धी शंका-समाधान ]]
- [[साधु परीक्षा का विधि निषेध#5.3.1 | शील संयमादि तो पालते ही हैं?]]
- [[साधु परीक्षा का विधि निषेध#5.3.2 | पञ्चम काल में ऐसे ही साधु सम्भव है?]]
- [[साधु परीक्षा का विधि निषेध#5.3.3 | जैसे श्रावक वैसे साधु?]]
- [[साधु परीक्षा का विधि निषेध#5.3.4 | इनमें ही सच्चे साधु की स्थापना कर लें। ]]
- सत् साधु ही प्रतिमावत् पूज्य हैं।–देखें पूजा - 3।
- [[साधु परीक्षा का विधि निषेध#5.3.1 | शील संयमादि तो पालते ही हैं?]]
- [[साधु परीक्षा का विधि निषेध#5.1 | आगन्तुक साधु की विनयपूर्वक परीक्षा विधि। ]]