विरागविचय: Difference between revisions
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<p> घर्मध्यान का छठा भेद । शरीर अपवित्र है और भोग विपाक फल के समान मनोहर है अत: इनसे विरक्त रहना ही श्रेयस्कर है ऐसा चिन्तन करना विरागविचय धर्मध्यान है । हरिवंशपुराण 56.46</p> | <p> घर्मध्यान का छठा भेद । शरीर अपवित्र है और भोग विपाक फल के समान मनोहर है अत: इनसे विरक्त रहना ही श्रेयस्कर है ऐसा चिन्तन करना विरागविचय धर्मध्यान है । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 56.46 </span></p> | ||
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Revision as of 21:47, 5 July 2020
घर्मध्यान का छठा भेद । शरीर अपवित्र है और भोग विपाक फल के समान मनोहर है अत: इनसे विरक्त रहना ही श्रेयस्कर है ऐसा चिन्तन करना विरागविचय धर्मध्यान है । हरिवंशपुराण 56.46