विशुद्धयंग: Difference between revisions
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Revision as of 21:47, 5 July 2020
आजीविका के षट्कर्मों में हुई हिंसा की विशुद्धि के तीन अंग-पक्ष, चर्या और साधन । इनमें मंत्री, प्रमोद, कारुण्य और माध्यस्थभाव से समस्त हिंसा का त्याग करना पक्ष है । किसी देवी-देवता के लिए, मंत्र की सिद्धि के लिए, औषधि और आहार के लिए हिंसा नहीं करना चर्या तथा आयु के अन्त में शरीर का आहार और समस्त चेष्टाओं का परित्याग करके ध्यान की शुद्धि से आत्मा को शुद्ध करना साधन कहलाता है । महापुराण 39.143-149