विहायोगति: Difference between revisions
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स.सि./ | स.सि./8/11/391/7 <span class="SanskritText">विहाय आकाशम्। तत्र गतिनिर्वर्तकं तद्विहायोगतिनाम। </span>= <span class="HindiText">विहायस् का अर्थ आकाश है। उसमें गतिका निर्वर्तक कर्म विहायोगति नामकर्म है। (रा.वा./8/11/18/578/11); (ध.6/1, 9-1, 28/61/1); (गो.क./जी.प्र./33/29/22)। </span><br /> | ||
ध. | ध.13/5, 5, 101/365/2 <span class="PrakritText">जस्स कमस्सुदएण भूमिमोट्ठहियअणोट्ठहिय वा जीवाणमागा से गमणं होदि तं विहायगदिणामं।</span> = <span class="HindiText">जिस कर्म के उदय से भूमिका आश्रय लेकर या बिना उसका आश्रय लिये भी जीवों का आकाश में गमन होता है वह विहायोगति नामकर्म है। </span><br /> | ||
ध. | ध.6/1, 9-1, 28/61/2 <span class="PrakritText">तिरिक्ख-मणुसाणं भूमीए गमणं कस्स कम्मस्स उदएण। विहायगदिणामस्स। कुदो। विहत्थिमेत्तप्पायजीवपदेसेहि भूमिमोट्ठहिय सयलजीवपएसाणामाया से गमणुवलंभा। </span>= <span class="HindiText"><strong>प्रश्न–</strong>तिर्यंच और मनुष्यों का भूमि पर गमन किस कर्म के उदय से होता है? <strong>उत्तर–</strong>विहायोगति नामकर्म के उदय से, क्योंकि विहस्तिमात्र (बारह अंगुल प्रमाण) पाँव वाले जीव प्रदेशों के द्वारा भूमि को व्याप्त करके जीव के समस्त प्रदेशों का आकाश में गमन पाया जाता है। <br /> | ||
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ष. खं. | ष. खं.6, 4, 9-1/सूत्र 43/76 <span class="PrakritText">जं तं विहायगइणामकम्मं तं दुविहं, पसत्थविहायोगदी अप्पसत्थविहायोगदी चेदि।43।</span> =<span class="HindiText"> जो विहायोगति नामकर्म है वह दो प्रकार का है–प्रशस्त विहायोगति और अप्रशस्तविहायोगति। (पं.सं./प्रा./2/4 /वयाख्या/48/11); (स.सि./8/11/391/7); (रा.वा./8/11/18/578/12); (गो.क./जी.प्र./33/29/ 22)। <br /> | ||
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रा.वा./ | रा.वा./8/11/18/578/12<span class="SanskritText"> वरवृषभद्विरदादिप्रशस्तगतिकारणं प्रशस्तविहायोगतिनाम। उष्टन्खराद्यप्रशस्तगतिनिमित्त-मप्रशस्तविहायोगतिनाम चेति।</span> = <span class="HindiText">हाथी बैल आदि की प्रशस्त गति में कारण प्रशस्त विहायोगति नामकर्म होता है और ऊँट, गधा आदि की अप्रशस्त गति में कारण अप्रशस्त विहायोगति नामकर्म होता है। <br /> | ||
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रा.वा./ | रा.वा./8/11/18/578/14<span class="SanskritText"> सिद्घ्यज्जीवपुद्गलानां विहायोगतिः कुत इति चेत्। सा स्वाभाविकी। ननु च विहायोगतिनामकर्मोदयः पक्ष्यादिष्वेव प्राप्नोति न मनुष्यादिषु। कुतः। विहायसि गत्यभावात्; नैष दोषः सर्वेषां विहायस्येव गतिरवगाहनशक्तियोगात्।</span> = <span class="HindiText"><strong>प्रश्न–</strong>नाम कर्म के अभाव में मुक्तजीवों और पुद्गलों में गति कैसे होती है? <strong>उत्तर–</strong>उनकी गति स्वाभाविक है (देखें [[ गति#1 | गति - 1]])। <strong>प्रश्न–</strong>विहायेागति नामकर्म का ऐसा लक्षण करने से वह पक्षियों में ही घटित होगा, मनुष्यादिकों में नहीं, क्योंकि उनके आकाश में गमन का अभाव है? <strong>उत्तर–</strong>यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि अवगाहना शक्ति के योग से सभी प्राणियों के आकाश में ही गति होती है।–(और भी देखें [[ विहायोगति#1 | विहायोगति - 1 ]]में ध./6)। <br /> | ||
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Revision as of 21:47, 5 July 2020
- विहायोगति
स.सि./8/11/391/7 विहाय आकाशम्। तत्र गतिनिर्वर्तकं तद्विहायोगतिनाम। = विहायस् का अर्थ आकाश है। उसमें गतिका निर्वर्तक कर्म विहायोगति नामकर्म है। (रा.वा./8/11/18/578/11); (ध.6/1, 9-1, 28/61/1); (गो.क./जी.प्र./33/29/22)।
ध.13/5, 5, 101/365/2 जस्स कमस्सुदएण भूमिमोट्ठहियअणोट्ठहिय वा जीवाणमागा से गमणं होदि तं विहायगदिणामं। = जिस कर्म के उदय से भूमिका आश्रय लेकर या बिना उसका आश्रय लिये भी जीवों का आकाश में गमन होता है वह विहायोगति नामकर्म है।
ध.6/1, 9-1, 28/61/2 तिरिक्ख-मणुसाणं भूमीए गमणं कस्स कम्मस्स उदएण। विहायगदिणामस्स। कुदो। विहत्थिमेत्तप्पायजीवपदेसेहि भूमिमोट्ठहिय सयलजीवपएसाणामाया से गमणुवलंभा। = प्रश्न–तिर्यंच और मनुष्यों का भूमि पर गमन किस कर्म के उदय से होता है? उत्तर–विहायोगति नामकर्म के उदय से, क्योंकि विहस्तिमात्र (बारह अंगुल प्रमाण) पाँव वाले जीव प्रदेशों के द्वारा भूमि को व्याप्त करके जीव के समस्त प्रदेशों का आकाश में गमन पाया जाता है।
- विहायोगति नामकर्म के भेद
ष. खं.6, 4, 9-1/सूत्र 43/76 जं तं विहायगइणामकम्मं तं दुविहं, पसत्थविहायोगदी अप्पसत्थविहायोगदी चेदि।43। = जो विहायोगति नामकर्म है वह दो प्रकार का है–प्रशस्त विहायोगति और अप्रशस्तविहायोगति। (पं.सं./प्रा./2/4 /वयाख्या/48/11); (स.सि./8/11/391/7); (रा.वा./8/11/18/578/12); (गो.क./जी.प्र./33/29/ 22)।
- प्रशस्ताप्रशस्त विहायोगति नामकर्म
रा.वा./8/11/18/578/12 वरवृषभद्विरदादिप्रशस्तगतिकारणं प्रशस्तविहायोगतिनाम। उष्टन्खराद्यप्रशस्तगतिनिमित्त-मप्रशस्तविहायोगतिनाम चेति। = हाथी बैल आदि की प्रशस्त गति में कारण प्रशस्त विहायोगति नामकर्म होता है और ऊँट, गधा आदि की अप्रशस्त गति में कारण अप्रशस्त विहायोगति नामकर्म होता है।
- मनुष्यों आदि में विहायोगति का लक्षण कैसे घटित हो
रा.वा./8/11/18/578/14 सिद्घ्यज्जीवपुद्गलानां विहायोगतिः कुत इति चेत्। सा स्वाभाविकी। ननु च विहायोगतिनामकर्मोदयः पक्ष्यादिष्वेव प्राप्नोति न मनुष्यादिषु। कुतः। विहायसि गत्यभावात्; नैष दोषः सर्वेषां विहायस्येव गतिरवगाहनशक्तियोगात्। = प्रश्न–नाम कर्म के अभाव में मुक्तजीवों और पुद्गलों में गति कैसे होती है? उत्तर–उनकी गति स्वाभाविक है (देखें गति - 1)। प्रश्न–विहायेागति नामकर्म का ऐसा लक्षण करने से वह पक्षियों में ही घटित होगा, मनुष्यादिकों में नहीं, क्योंकि उनके आकाश में गमन का अभाव है? उत्तर–यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि अवगाहना शक्ति के योग से सभी प्राणियों के आकाश में ही गति होती है।–(और भी देखें विहायोगति - 1 में ध./6)।
- विहायोगति नाम कर्म के बंध उदय सत्त्व सम्बन्धी विषय देखें वह वह नाम ।