वंशधर: Difference between revisions
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<p> दण्डकवन का एक पर्वत । यह वंशस्थलद्युति नगर के निकट था । इसमें बांस के वृक्ष थे । वनवास के समय राम, लक्ष्मण ओर सीता यहाँ आये थे । उन्होने यहाँ सर्प और बिच्छुओं से घिरे हुए देशभूषण और कुलभूषण दो मुनिराजों की सेवा की थी । सर्प और बिच्छुओं को हटाकर उनके उन्होंने पैर धोये थे और उन पर लेप लगाया था । वन्दना करके उनकी पूजा की थी । इसी पर्वत पर उन मुनियों को केवलज्ञान प्रकटा था और इसी पर्वत पर क्रौंचरवा नदी के तट पर एक वंश की झाड़ी में बैठकर शम्बूक ने सूर्यहास | <p> दण्डकवन का एक पर्वत । यह वंशस्थलद्युति नगर के निकट था । इसमें बांस के वृक्ष थे । वनवास के समय राम, लक्ष्मण ओर सीता यहाँ आये थे । उन्होने यहाँ सर्प और बिच्छुओं से घिरे हुए देशभूषण और कुलभूषण दो मुनिराजों की सेवा की थी । सर्प और बिच्छुओं को हटाकर उनके उन्होंने पैर धोये थे और उन पर लेप लगाया था । वन्दना करके उनकी पूजा की थी । इसी पर्वत पर उन मुनियों को केवलज्ञान प्रकटा था और इसी पर्वत पर क्रौंचरवा नदी के तट पर एक वंश की झाड़ी में बैठकर शम्बूक ने सूर्यहास खड्ग पाने के लिए साधना की थी । <span class="GRef"> पद्मपुराण 1. 84, 39.9-11, 39-46, 43.44-48, 61, 82. 12-13, 85.1-3 </span></p> | ||
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Revision as of 21:47, 5 July 2020
दण्डकवन का एक पर्वत । यह वंशस्थलद्युति नगर के निकट था । इसमें बांस के वृक्ष थे । वनवास के समय राम, लक्ष्मण ओर सीता यहाँ आये थे । उन्होने यहाँ सर्प और बिच्छुओं से घिरे हुए देशभूषण और कुलभूषण दो मुनिराजों की सेवा की थी । सर्प और बिच्छुओं को हटाकर उनके उन्होंने पैर धोये थे और उन पर लेप लगाया था । वन्दना करके उनकी पूजा की थी । इसी पर्वत पर उन मुनियों को केवलज्ञान प्रकटा था और इसी पर्वत पर क्रौंचरवा नदी के तट पर एक वंश की झाड़ी में बैठकर शम्बूक ने सूर्यहास खड्ग पाने के लिए साधना की थी । पद्मपुराण 1. 84, 39.9-11, 39-46, 43.44-48, 61, 82. 12-13, 85.1-3