व्याख्या प्रज्ञप्ति: Difference between revisions
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षट्खण्डागम के छः खंडों से अधिक वह अतिरिक्त खण्ड जिसे आचार्य भूतबली ने छोड़ दिया था और जिसे आचार्य बप्पदेव (वि. श. 7) ने 60,000 श्लोक प्रमाण व्याख्या लिखकर पूरा किया था । वाटग्राम (बड़ौदा) के जिनमन्दिर में इसे प्राप्त करके ही श्री ‘वीरसेन स्वामी’ ने ‘सत्कर्म’ नाम से धवला के परिशिष्ट रूप एक अतिरिक्त खंड की रचना की थी । (देखें [[ सत्कर्म ]]) (इन्द्रनन्दि श्रुतावतार श्लोक 173-181); (जै./1/279); (ती./2/96) ॥ | |||
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<li> आ.बप्पदेव (वि.श.7) कृत 60,000 श्लोक प्रमाण कर्म विषयक प्राकृत ग्रन्थ । (देखें [[ परिशिष्ट ]]) । </li> | |||
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Revision as of 21:47, 5 July 2020
== सिद्धांतकोष से ==
षट्खण्डागम के छः खंडों से अधिक वह अतिरिक्त खण्ड जिसे आचार्य भूतबली ने छोड़ दिया था और जिसे आचार्य बप्पदेव (वि. श. 7) ने 60,000 श्लोक प्रमाण व्याख्या लिखकर पूरा किया था । वाटग्राम (बड़ौदा) के जिनमन्दिर में इसे प्राप्त करके ही श्री ‘वीरसेन स्वामी’ ने ‘सत्कर्म’ नाम से धवला के परिशिष्ट रूप एक अतिरिक्त खंड की रचना की थी । (देखें सत्कर्म ) (इन्द्रनन्दि श्रुतावतार श्लोक 173-181); (जै./1/279); (ती./2/96) ॥
पुराणकोष से
- द्वादशांग का एक भेद–देखें श्रुतज्ञान - III।
- आ. अमितगति (ई. 983-1023) द्वारा रचित एक संस्कृत ग्रन्थ । (देखें अमितगति ) ।
- आ.बप्पदेव (वि.श.7) कृत 60,000 श्लोक प्रमाण कर्म विषयक प्राकृत ग्रन्थ । (देखें परिशिष्ट ) ।