श्रुतज्ञान: Difference between revisions
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<span class="HindiText">इन्द्रियों द्वारा विवक्षित पदार्थ को ग्रहण करके उससे सम्बन्धित अन्य पदार्थ को जानना श्रुतज्ञान है। वह दो प्रकार का है - अर्थलिंगज व शब्दलिंगज। पदार्थ को जानकर उसमें इष्टता अनिष्टता का ज्ञान अथवा धूम को देखकर अग्नि का ज्ञान अर्थलिंगज श्रुतज्ञान है। वाचक शब्द को सुनकर या पढ़कर वाच्य का ज्ञान शब्दलिंगज है। वह लौकिक भी होता है लोकोत्तर भी। लोकोत्तर श्रुतज्ञान | == सिद्धांतकोष से == | ||
<span class="HindiText">इन्द्रियों द्वारा विवक्षित पदार्थ को ग्रहण करके उससे सम्बन्धित अन्य पदार्थ को जानना श्रुतज्ञान है। वह दो प्रकार का है - अर्थलिंगज व शब्दलिंगज। पदार्थ को जानकर उसमें इष्टता अनिष्टता का ज्ञान अथवा धूम को देखकर अग्नि का ज्ञान अर्थलिंगज श्रुतज्ञान है। वाचक शब्द को सुनकर या पढ़कर वाच्य का ज्ञान शब्दलिंगज है। वह लौकिक भी होता है लोकोत्तर भी। लोकोत्तर श्रुतज्ञान 12 अंग 14 पूर्वों आदि रूप से अनेक प्रकार है। पहला अर्थलिंगज तो क्षुद्र जीवों से लेकर क्रम से वृद्धिंगत होता हुआ ऋद्धिधारी मुनियों तक को होता है। पर दूसरा अर्थलिंगज व शब्दलिंगज संज्ञी पञ्चेन्द्रिय जीवों को ही सम्भव है। श्रुतकेवली को यह उत्कृष्ट होता है।</span> | |||
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<li>वस्तु स्वरूप के निर्णय का उपाय। - देखें | <li>वस्तु स्वरूप के निर्णय का उपाय। - देखें [[ न्याय ]], अनुमान, आगम व नय।</li> | ||
<li>श्रुतज्ञान का स्वामित्व। - | <li>श्रुतज्ञान का स्वामित्व। - देखें [[ ज्ञान#I.4 | ज्ञान - I.4]]।</li> | ||
<li>एकेन्द्रियों व संज्ञियों के श्रुतज्ञान कैसे - देखें | <li>एकेन्द्रियों व संज्ञियों के श्रुतज्ञान कैसे - देखें [[ संज्ञी ]]।</li> | ||
<li>श्रुतज्ञान क्षयोपशमिक कैसे है औदयिक क्यों नहीं - | <li>श्रुतज्ञान क्षयोपशमिक कैसे है औदयिक क्यों नहीं - देखें [[ मतिज्ञान#2.4 | मतिज्ञान - 2.4]]।</li> | ||
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<li>श्रुतज्ञान के स्वामित्व सम्बन्धी सत्, संख्या, क्षेत्र, स्पर्शन, काल, अन्तर, भाव, अल्पबहुत्व रूप आठ प्ररूपणाएँ - | <li>श्रुतज्ञान के स्वामित्व सम्बन्धी सत्, संख्या, क्षेत्र, स्पर्शन, काल, अन्तर, भाव, अल्पबहुत्व रूप आठ प्ररूपणाएँ - देखें [[ वह वह नाम ]]।</li> | ||
<li>सभी मार्गणा स्थानों में आय के अनुसार व्यय होने का नियम - देखें | <li>सभी मार्गणा स्थानों में आय के अनुसार व्यय होने का नियम - देखें [[ मार्गणा ]]।</li> | ||
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<li id="II.1.1">[[अर्थलिंगज श्रुतज्ञान विशेष निर्देश#II.1.1 | अर्थलिंगज | <li id="II.1.1">[[अर्थलिंगज श्रुतज्ञान विशेष निर्देश#II.1.1 | अर्थलिंगज 20 प्रकार का है।]]</li> | ||
<li id="II.1.2">[[अर्थलिंगज श्रुतज्ञान विशेष निर्देश#II.1.2 | अर्थ लिंग के | <li id="II.1.2">[[अर्थलिंगज श्रुतज्ञान विशेष निर्देश#II.1.2 | अर्थ लिंग के 20 भेदों के नाम निर्देश।]]</li> | ||
<li id="II.1.3">[[अर्थलिंगज श्रुतज्ञान विशेष निर्देश#II.1.3 | बीस भेदों के लक्षण।]]</li> | <li id="II.1.3">[[अर्थलिंगज श्रुतज्ञान विशेष निर्देश#II.1.3 | बीस भेदों के लक्षण।]]</li> | ||
<li id="II.1.4">[[अर्थलिंगज श्रुतज्ञान विशेष निर्देश#II.1.4 | उपरोक्त ज्ञानों की वह संज्ञाएँ क्यों।]]</li> | <li id="II.1.4">[[अर्थलिंगज श्रुतज्ञान विशेष निर्देश#II.1.4 | उपरोक्त ज्ञानों की वह संज्ञाएँ क्यों।]]</li> | ||
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<li id="III.2"><strong>[[शब्द लिंगज श्रुतज्ञान विशेष#III.2 | शब्द लिंगज निर्देश।]]</strong> | <li id="III.2"><strong>[[शब्द लिंगज श्रुतज्ञान विशेष#III.2 | शब्द लिंगज निर्देश।]]</strong> | ||
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<li>श्रुत तीर्थ की उत्पत्ति - | <li>श्रुत तीर्थ की उत्पत्ति - देखें [[ इतिहास#4.5 | इतिहास - 4.5]]।</li> | ||
<li>श्रुतज्ञान का क्रमिक ह्रास - | <li>श्रुतज्ञान का क्रमिक ह्रास - देखें [[ इतिहास#4.6 | इतिहास - 4.6]]।</li> | ||
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== पुराणकोष से == | |||
<p> अर्हन्त-भाषित अंग और पूर्वगत श्रुत का ज्ञान । इससे स्वर्ग और मोक्ष के मूलभूत समीचीन धर्म का लक्षण जाना जाता है । इसके निम्न बीस भेद हैं―</p> | |||
<p>1. पर्याय 2. पर्याय समास</p> | |||
<p>3. अक्षर 4. अक्षर समास </p> | |||
<p>5. पद 6. पद-समास</p> | |||
<p>7. संघात 8. संघात-समास</p> | |||
<p>9. प्रतिपत्ति 10. प्रतिपत्ति-समास</p> | |||
<p>11. अनुयोग 12. अनुयोग समास</p> | |||
<p>13. प्राभृत-प्राभृत 14. प्राभृत-प्राभृत समास </p> | |||
<p>15. प्राभृत 16. प्राभृत समास</p> | |||
<p>17. वास्तु 18. वास्तु-समास</p> | |||
<p>19. पूर्व 20. पूर्व-समास</p> | |||
<p><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 10.11-12 </span></p> | |||
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[[ श्रुतकेवली | पूर्व पृष्ठ ]] | |||
[[ श्रुतज्ञान व्रत | अगला पृष्ठ ]] | |||
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[[Category: पुराण-कोष]] | |||
[[Category: श]] |
Revision as of 21:48, 5 July 2020
== सिद्धांतकोष से == इन्द्रियों द्वारा विवक्षित पदार्थ को ग्रहण करके उससे सम्बन्धित अन्य पदार्थ को जानना श्रुतज्ञान है। वह दो प्रकार का है - अर्थलिंगज व शब्दलिंगज। पदार्थ को जानकर उसमें इष्टता अनिष्टता का ज्ञान अथवा धूम को देखकर अग्नि का ज्ञान अर्थलिंगज श्रुतज्ञान है। वाचक शब्द को सुनकर या पढ़कर वाच्य का ज्ञान शब्दलिंगज है। वह लौकिक भी होता है लोकोत्तर भी। लोकोत्तर श्रुतज्ञान 12 अंग 14 पूर्वों आदि रूप से अनेक प्रकार है। पहला अर्थलिंगज तो क्षुद्र जीवों से लेकर क्रम से वृद्धिंगत होता हुआ ऋद्धिधारी मुनियों तक को होता है। पर दूसरा अर्थलिंगज व शब्दलिंगज संज्ञी पञ्चेन्द्रिय जीवों को ही सम्भव है। श्रुतकेवली को यह उत्कृष्ट होता है।
- श्रुतज्ञान सामान्य निर्देश
- भेद व लक्षण
- श्रुतज्ञान सामान्य का लक्षण।
- शब्द व अर्थलिंग रूप भेद व उनके लक्षण।
- द्रव्यभाव श्रुत रूप भेद व उनके लक्षण।
- सम्यक् व मिथ्या श्रुतज्ञान के लक्षण।
- सम्यक् लब्धि व भावना रूप भेद।
- अष्टांग निमित्त ज्ञान। - देखें निमित्त - 2।
- अष्ट प्रवचन माता का लक्षण। - देखें प्रवचन ।
- स्थित जित आदि श्रुतज्ञानों के लक्षण। - देखें निक्षेप - 5.8।
- श्रुतज्ञान के असंख्यात भेद। - देखें ज्ञान - 1.4।
- श्रुतज्ञान निर्देश
- श्रुतज्ञान सम्बन्धी दर्शन। - देखें दर्शन - 6।
- श्रुतज्ञान अधिगम ही होता है। - देखें अधिगम ।
- द्रव्य श्रुत की अल्पता। - देखें आगम - 1.11।
- एक आत्मा जानना ही सर्व को जानना है - देखें श्रुतकेवली - 6।
- शब्द व अर्थलिंगज में शब्दलिंगज ज्ञान प्रधान।
- द्रव्य व भावश्रुत में भावश्रुत की प्रधानता।
- श्रुतज्ञान केवल शब्दज नहीं होता।
- द्रव्य व भाव श्रुतज्ञान निर्देश। - देखें आगम - 2।
- श्रुतज्ञान के अतिचार। - देखें आगम - 1।
- वस्तु स्वरूप के निर्णय का उपाय। - देखें न्याय , अनुमान, आगम व नय।
- श्रुतज्ञान का स्वामित्व। - देखें ज्ञान - I.4।
- एकेन्द्रियों व संज्ञियों के श्रुतज्ञान कैसे - देखें संज्ञी ।
- श्रुतज्ञान क्षयोपशमिक कैसे है औदयिक क्यों नहीं - देखें मतिज्ञान - 2.4।
- श्रुतज्ञान की ओघ व आदेश 20 प्ररूपणाएँ - देखें सत् ।
- श्रुतज्ञान के स्वामित्व सम्बन्धी सत्, संख्या, क्षेत्र, स्पर्शन, काल, अन्तर, भाव, अल्पबहुत्व रूप आठ प्ररूपणाएँ - देखें वह वह नाम ।
- सभी मार्गणा स्थानों में आय के अनुसार व्यय होने का नियम - देखें मार्गणा ।
- मतिज्ञान व श्रुतज्ञान में अन्तर
- दोनों में कथंचित् एकता।
- मति व श्रुतज्ञान में भेद।
- श्रोतज मतिज्ञान व श्रुतज्ञान में अन्तर।
- मनोमति ज्ञान व श्रुतज्ञान में अन्तर।
- ईहादि मतिज्ञान व श्रुतज्ञान में अन्तर।
- स्मृति से अनुमान तक के ज्ञानों की उत्पत्ति का क्रम - देखें मतिज्ञान - 3।
- अनुमान उपमान आदि सब श्रुतज्ञान के विकल्प हैं - देखें वह वह नाम ।
- श्रुतज्ञान व केवलज्ञान में कथंचित् समानता असमानता
- श्रुतज्ञान कथंचित् त्रिकाल ग्राहक है। - देखें श्रुतज्ञान - I.2.5।
- मति श्रुतज्ञान की कथंचित् प्रत्यक्षता-परोक्षता
- श्रुतज्ञान परोक्ष है - देखें परोक्ष - 4।
- मतिज्ञान सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष है - देखें प्रत्यक्ष - 1.4।
- श्रुतज्ञान की कथंचित् निर्विकल्पता। - देखें विकल्प ।
- भेद व लक्षण
- अर्थलिंगज श्रुतज्ञान विशेष निर्देश
- शब्द लिंगज श्रुतज्ञान विशेष
- भेद व लक्षण
- शब्द लिंगज निर्देश।
- श्रुत तीर्थ की उत्पत्ति - देखें इतिहास - 4.5।
- श्रुतज्ञान का क्रमिक ह्रास - देखें इतिहास - 4.6।
पुराणकोष से
अर्हन्त-भाषित अंग और पूर्वगत श्रुत का ज्ञान । इससे स्वर्ग और मोक्ष के मूलभूत समीचीन धर्म का लक्षण जाना जाता है । इसके निम्न बीस भेद हैं―
1. पर्याय 2. पर्याय समास
3. अक्षर 4. अक्षर समास
5. पद 6. पद-समास
7. संघात 8. संघात-समास
9. प्रतिपत्ति 10. प्रतिपत्ति-समास
11. अनुयोग 12. अनुयोग समास
13. प्राभृत-प्राभृत 14. प्राभृत-प्राभृत समास
15. प्राभृत 16. प्राभृत समास
17. वास्तु 18. वास्तु-समास
19. पूर्व 20. पूर्व-समास
हरिवंशपुराण 10.11-12