श्रुतवाद: Difference between revisions
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<span class="SanskritText">ध. | <span class="SanskritText">ध.13/5,5,50/287/12 श्रुतं द्विविधं-अङ्गप्रविष्टमङ्गबाह्यमिति। तदुच्यते कथ्यते अनेन वचनकलापेनेति श्रुतवादो द्रव्यश्रुतम् । सुदवादो त्ति गदं।</span> = <span class="HindiText">श्रुत दो प्रकार का है - अंग प्रविष्ट और अंग बाह्य। इसका कथन जिस वचन कलाप के द्वारा किया जाता है वह द्रव्यश्रुत श्रुतवाद कहलाता है। इस प्रकार श्रुतवाद का कथन किया।</span> | ||
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Revision as of 21:48, 5 July 2020
ध.13/5,5,50/287/12 श्रुतं द्विविधं-अङ्गप्रविष्टमङ्गबाह्यमिति। तदुच्यते कथ्यते अनेन वचनकलापेनेति श्रुतवादो द्रव्यश्रुतम् । सुदवादो त्ति गदं। = श्रुत दो प्रकार का है - अंग प्रविष्ट और अंग बाह्य। इसका कथन जिस वचन कलाप के द्वारा किया जाता है वह द्रव्यश्रुत श्रुतवाद कहलाता है। इस प्रकार श्रुतवाद का कथन किया।