श्रुतसागर: Difference between revisions
From जैनकोष
No edit summary |
(Imported from text file) |
||
Line 1: | Line 1: | ||
<span class="HindiText">नन्दिसंघ बलात्कार गण की सूरत शाखा में। (देखें | == सिद्धांतकोष से == | ||
<span class="HindiText">नन्दिसंघ बलात्कार गण की सूरत शाखा में। (देखें [[ इतिहास ]]) आप विद्यानन्दि सं.2 के शिष्य तथा श्रीचन्द्र के गुरु थे। कृति - यशस्तिलक चम्पू की टीका यशस्तिलकचन्द्रिका, तत्त्वार्थवृत्ति (श्रुतसागरी) तत्त्वत्रय प्रकाशिका (ज्ञानार्णव के गद्य भाग की टीका), प्राकृत व्याकरण, जिनसहस्रनाम टीका, विक्रमप्रबन्ध की टीका, औदार्यचिन्तामणि, तीर्थदीपक, श्रीपाल चरित, यशोधर चरित, महाभिषेक टीका (पं.आशाधर के नित्यमहोद्योत की टीका); श्रुतस्कन्ध पूजा, सिद्धचक्राष्टकपूजा, सिद्धभक्ति, वृहत् कथाकोष, षट् प्राभृत की टीका। व्रत कथाकोष। समय - महाभिषेक टीका वि.1582 में लिखी गयी है। तदनुसार इनका समय वि.1544-1590 (ई.1487-1533); (सभाष्य तत्त्वार्थाधिगम/प्र./2 टिप्पण प्रेमीजी); (पं.वि./प्र.35/A.N.Up.); (प.पु.प्र./63 A.N.Up.); (ती./3/391); (जै./2/376) (देखें [[ इतिहास ]]/7/4)।</span> | |||
<noinclude> | |||
[[ | [[ श्रुतशोणित | पूर्व पृष्ठ ]] | ||
[[Category:श]] | [[ श्रुतस्कंध पूजा | अगला पृष्ठ ]] | ||
</noinclude> | |||
[[Category: श]] | |||
== पुराणकोष से == | |||
<p id="1"> (1) अकम्पनाचार्य के संघस्थ एक मुनि । इन्होंने उज्जयिनी नगरी के राजा श्रीधर्मा के बलि, बृहस्पति आदि मंत्रियों से शास्त्रार्थ कर उन्हें पराजित किया था । मंत्री बलि रात्रि में इन्हें मारने के लिए उद्यत हुआ था किन्तु किसी देव के द्वारा कील दिये जाने से वह इनका कुछ भी नहीं बिगाड़ सका था । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 20. 3-11, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 7.39-48 </span></p> | |||
<p id="2">(2) विजयार्ध पर्वत की दक्षिणश्रेणी में रथनूपुर-चक्रवाल के राजा ज्वलनजटी विद्याधर का तीसरा मंत्री । यह राजपुत्री स्वयंप्रभा विद्याधर विद्युत्प्रभ को और विद्युत्प्रभ की बहिन ज्योतिर्माला राजकुमार अर्ककीर्ति को देने का प्रस्ताव लेकर राजा ज्वलनजटी के पास गया था । <span class="GRef"> महापुराण 62.25, 30, 69, 80, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 4.28 </span></p> | |||
<p id="3">(3) एक मुनि । इन्होंने भरतक्षेत्र में चित्रकारपुर के राजा प्रीतिभद्र के पुत्र प्रीतिकर तथा मंत्री के पुत्र विचित्रमति दोनों को मुनि दीक्षा दी थी । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 27.97-99 </span></p> | |||
<p id="4">(4) एक मुनि । जम्बूद्वीप के कौशल देश सम्बन्धी साकेत नगर के राजा वज्रसेन के पुत्र हरिषेण ने इन्हीं मुनि से दीक्षा ली थी । <span class="GRef"> महापुराण 74.231-233, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 5.13-14 </span></p> | |||
<p id="5">(5) एक मुनिराज । इन्होंने भगीरथ को उसके बाबा सगर के पुत्रों के एक साथ मरने का कारण बताया था । <span class="GRef"> पद्मपुराण 5.284-293 </span></p> | |||
<p id="6">(6) लंका के राजा महारक्ष विद्याधर के प्रमदोद्यान में आये एक मुनि । इन्हीं मुनि से धर्मोपदेश एवं अपने भवान्तर सुनकर महारक्ष ने तपस्या की थीं । <span class="GRef"> पद्मपुराण 5.296, 300, 315, 360-365 </span></p> | |||
<noinclude> | |||
[[ श्रुतशोणित | पूर्व पृष्ठ ]] | |||
[[ श्रुतस्कंध पूजा | अगला पृष्ठ ]] | |||
</noinclude> | |||
[[Category: पुराण-कोष]] | |||
[[Category: श]] |
Revision as of 21:48, 5 July 2020
== सिद्धांतकोष से == नन्दिसंघ बलात्कार गण की सूरत शाखा में। (देखें इतिहास ) आप विद्यानन्दि सं.2 के शिष्य तथा श्रीचन्द्र के गुरु थे। कृति - यशस्तिलक चम्पू की टीका यशस्तिलकचन्द्रिका, तत्त्वार्थवृत्ति (श्रुतसागरी) तत्त्वत्रय प्रकाशिका (ज्ञानार्णव के गद्य भाग की टीका), प्राकृत व्याकरण, जिनसहस्रनाम टीका, विक्रमप्रबन्ध की टीका, औदार्यचिन्तामणि, तीर्थदीपक, श्रीपाल चरित, यशोधर चरित, महाभिषेक टीका (पं.आशाधर के नित्यमहोद्योत की टीका); श्रुतस्कन्ध पूजा, सिद्धचक्राष्टकपूजा, सिद्धभक्ति, वृहत् कथाकोष, षट् प्राभृत की टीका। व्रत कथाकोष। समय - महाभिषेक टीका वि.1582 में लिखी गयी है। तदनुसार इनका समय वि.1544-1590 (ई.1487-1533); (सभाष्य तत्त्वार्थाधिगम/प्र./2 टिप्पण प्रेमीजी); (पं.वि./प्र.35/A.N.Up.); (प.पु.प्र./63 A.N.Up.); (ती./3/391); (जै./2/376) (देखें इतिहास /7/4)।
पुराणकोष से
(1) अकम्पनाचार्य के संघस्थ एक मुनि । इन्होंने उज्जयिनी नगरी के राजा श्रीधर्मा के बलि, बृहस्पति आदि मंत्रियों से शास्त्रार्थ कर उन्हें पराजित किया था । मंत्री बलि रात्रि में इन्हें मारने के लिए उद्यत हुआ था किन्तु किसी देव के द्वारा कील दिये जाने से वह इनका कुछ भी नहीं बिगाड़ सका था । हरिवंशपुराण 20. 3-11, पांडवपुराण 7.39-48
(2) विजयार्ध पर्वत की दक्षिणश्रेणी में रथनूपुर-चक्रवाल के राजा ज्वलनजटी विद्याधर का तीसरा मंत्री । यह राजपुत्री स्वयंप्रभा विद्याधर विद्युत्प्रभ को और विद्युत्प्रभ की बहिन ज्योतिर्माला राजकुमार अर्ककीर्ति को देने का प्रस्ताव लेकर राजा ज्वलनजटी के पास गया था । महापुराण 62.25, 30, 69, 80, पांडवपुराण 4.28
(3) एक मुनि । इन्होंने भरतक्षेत्र में चित्रकारपुर के राजा प्रीतिभद्र के पुत्र प्रीतिकर तथा मंत्री के पुत्र विचित्रमति दोनों को मुनि दीक्षा दी थी । हरिवंशपुराण 27.97-99
(4) एक मुनि । जम्बूद्वीप के कौशल देश सम्बन्धी साकेत नगर के राजा वज्रसेन के पुत्र हरिषेण ने इन्हीं मुनि से दीक्षा ली थी । महापुराण 74.231-233, वीरवर्द्धमान चरित्र 5.13-14
(5) एक मुनिराज । इन्होंने भगीरथ को उसके बाबा सगर के पुत्रों के एक साथ मरने का कारण बताया था । पद्मपुराण 5.284-293
(6) लंका के राजा महारक्ष विद्याधर के प्रमदोद्यान में आये एक मुनि । इन्हीं मुनि से धर्मोपदेश एवं अपने भवान्तर सुनकर महारक्ष ने तपस्या की थीं । पद्मपुराण 5.296, 300, 315, 360-365