सत्यमहाव्रत: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
(Imported from text file) |
||
Line 1: | Line 1: | ||
<p> पाँच महाव्रतों में दूसरा महाव्रत । राग द्वेष मोहपूर्वक परतापकारी वचनों का त्याग करके हित-मित और प्रियवचन बोलना सत्य महाव्रत है । इसकी पाँच भावनाएं होती है― क्रोध, लोभ, भय और हास्य विरति तथा प्रशस्त वचन का बोलना । इसे मुनि पालते हैं । महापुराण 20.159-162, हरिवंशपुराण 2.118, 9.84, 58.119</p> | <p> पाँच महाव्रतों में दूसरा महाव्रत । राग द्वेष मोहपूर्वक परतापकारी वचनों का त्याग करके हित-मित और प्रियवचन बोलना सत्य महाव्रत है । इसकी पाँच भावनाएं होती है― क्रोध, लोभ, भय और हास्य विरति तथा प्रशस्त वचन का बोलना । इसे मुनि पालते हैं । <span class="GRef"> महापुराण 20.159-162, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 2.118, 9.84, 58.119 </span></p> | ||
<noinclude> | <noinclude> | ||
[[ | [[ सत्यमनोयोग | पूर्व पृष्ठ ]] | ||
[[ सत्ययश | अगला पृष्ठ ]] | [[ सत्ययश | अगला पृष्ठ ]] |
Revision as of 21:48, 5 July 2020
पाँच महाव्रतों में दूसरा महाव्रत । राग द्वेष मोहपूर्वक परतापकारी वचनों का त्याग करके हित-मित और प्रियवचन बोलना सत्य महाव्रत है । इसकी पाँच भावनाएं होती है― क्रोध, लोभ, भय और हास्य विरति तथा प्रशस्त वचन का बोलना । इसे मुनि पालते हैं । महापुराण 20.159-162, हरिवंशपुराण 2.118, 9.84, 58.119