सुप्रीतिक्रिया: Difference between revisions
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<p> गर्भान्वय की त्रेपन क्रियाओं में तीसरी क्रिया । यह क्रिया गर्भाधान के पश्चात् पाँचवें माह में की जाती है । इसमें मन्त्र और क्रियाओं को जानने वाले श्रावकों को अग्नि देवता की साक्षी में अर्हन्त की प्रतिमा के समीप उनकी पूजा करके आहुतियाँ देना पड़ती है । आहुतियां देते समय निम्न मन्त्र बोले जाते हैं―</p> | <p> गर्भान्वय की त्रेपन क्रियाओं में तीसरी क्रिया । यह क्रिया गर्भाधान के पश्चात् पाँचवें माह में की जाती है । इसमें मन्त्र और क्रियाओं को जानने वाले श्रावकों को अग्नि देवता की साक्षी में अर्हन्त की प्रतिमा के समीप उनकी पूजा करके आहुतियाँ देना पड़ती है । आहुतियां देते समय निम्न मन्त्र बोले जाते हैं―</p> | ||
<p>अवतारकल्याणभागीभव, मन्दरेन्द्राभिषेककल्याणभागीभव, निष्कान्तिकल्याणभागीभव, | <p>अवतारकल्याणभागीभव, मन्दरेन्द्राभिषेककल्याणभागीभव, निष्कान्तिकल्याणभागीभव, आर्हन्त्यकल्याणभागीभव, परमनिर्वाणकल्याणभागीभव । <span class="GRef"> महापुराण 38.51-55, 80-81, 40. 97-100 </span></p> | ||
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Revision as of 21:49, 5 July 2020
गर्भान्वय की त्रेपन क्रियाओं में तीसरी क्रिया । यह क्रिया गर्भाधान के पश्चात् पाँचवें माह में की जाती है । इसमें मन्त्र और क्रियाओं को जानने वाले श्रावकों को अग्नि देवता की साक्षी में अर्हन्त की प्रतिमा के समीप उनकी पूजा करके आहुतियाँ देना पड़ती है । आहुतियां देते समय निम्न मन्त्र बोले जाते हैं―
अवतारकल्याणभागीभव, मन्दरेन्द्राभिषेककल्याणभागीभव, निष्कान्तिकल्याणभागीभव, आर्हन्त्यकल्याणभागीभव, परमनिर्वाणकल्याणभागीभव । महापुराण 38.51-55, 80-81, 40. 97-100