सुरेंद्रवर्धन: Difference between revisions
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<p> विजयार्ध पर्वत पर रहने वाला विद्याधर । किसी निमित्तज्ञानी ने इसकी पुत्री का और द्रौपदी का पति गाण्डीव-धनुष चढ़ाने वाला बताया था । निमित्तज्ञानी के कथनानुसार इसने और राजा द्रुपद ने गाण्डीव-धनुष के द्वारा राधा की नाक में पहनाये गये मोती को भेदने वाले वीर पुरुष के लिए अपनी-अपनी कन्या देने की घोषणा की थी । अन्त में अर्जुन ने बाण चढ़ाकर घूमती हुई राधा की नाक का मोती भेदकर शुभ लग्न में इस विद्याधर की कन्या और द्रौपदी दोनों का पाणिग्रहण किया था । हरिवंशपुराण 45.126-127, पांडवपुराण 15. 54-56, 65-67, 109-110, 219</p> | <p> विजयार्ध पर्वत पर रहने वाला विद्याधर । किसी निमित्तज्ञानी ने इसकी पुत्री का और द्रौपदी का पति गाण्डीव-धनुष चढ़ाने वाला बताया था । निमित्तज्ञानी के कथनानुसार इसने और राजा द्रुपद ने गाण्डीव-धनुष के द्वारा राधा की नाक में पहनाये गये मोती को भेदने वाले वीर पुरुष के लिए अपनी-अपनी कन्या देने की घोषणा की थी । अन्त में अर्जुन ने बाण चढ़ाकर घूमती हुई राधा की नाक का मोती भेदकर शुभ लग्न में इस विद्याधर की कन्या और द्रौपदी दोनों का पाणिग्रहण किया था । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 45.126-127, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 15. 54-56, 65-67, 109-110, 219 </span></p> | ||
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Revision as of 21:49, 5 July 2020
विजयार्ध पर्वत पर रहने वाला विद्याधर । किसी निमित्तज्ञानी ने इसकी पुत्री का और द्रौपदी का पति गाण्डीव-धनुष चढ़ाने वाला बताया था । निमित्तज्ञानी के कथनानुसार इसने और राजा द्रुपद ने गाण्डीव-धनुष के द्वारा राधा की नाक में पहनाये गये मोती को भेदने वाले वीर पुरुष के लिए अपनी-अपनी कन्या देने की घोषणा की थी । अन्त में अर्जुन ने बाण चढ़ाकर घूमती हुई राधा की नाक का मोती भेदकर शुभ लग्न में इस विद्याधर की कन्या और द्रौपदी दोनों का पाणिग्रहण किया था । हरिवंशपुराण 45.126-127, पांडवपुराण 15. 54-56, 65-67, 109-110, 219