संस्थान-विचय: Difference between revisions
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<p> धर्मध्यान के दस भेदों में आठवाँ भेद । आकाश के मध्य में स्थित लोक चारों ओर से तीन वातवलयों से वेष्ठित है । ऐसा लोक के आकार का विचार करना संस्थान-विचय धर्मध्यान कहलाता है । महापुराण 2. 148-154, हरिवंशपुराण 56.480</p> | <p> धर्मध्यान के दस भेदों में आठवाँ भेद । आकाश के मध्य में स्थित लोक चारों ओर से तीन वातवलयों से वेष्ठित है । ऐसा लोक के आकार का विचार करना संस्थान-विचय धर्मध्यान कहलाता है । <span class="GRef"> महापुराण 2. 148-154, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 56.480 </span></p> | ||
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Revision as of 21:49, 5 July 2020
धर्मध्यान के दस भेदों में आठवाँ भेद । आकाश के मध्य में स्थित लोक चारों ओर से तीन वातवलयों से वेष्ठित है । ऐसा लोक के आकार का विचार करना संस्थान-विचय धर्मध्यान कहलाता है । महापुराण 2. 148-154, हरिवंशपुराण 56.480