आचार: Difference between revisions
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<p>1. आचार सामान्यके भेद व लक्षण </p> | <p>1. आचार सामान्यके भेद व लक्षण </p> | ||
<p> सागार धर्मामृत अधिकार 7/35.../....वीर्याच्छुद्धेषु तेषु तु ॥35॥</p> | <p class="SanskritText">सागार धर्मामृत अधिकार 7/35.../....वीर्याच्छुद्धेषु तेषु तु ॥35॥</p> | ||
<p>= अपनी शक्तिके अनुसार निर्मल किये गये सम्यग्दर्शनादिमें जो यत्न किया जाता है उसे आचार कहते हैं।</p> | <p class="HindiText">= अपनी शक्तिके अनुसार निर्मल किये गये सम्यग्दर्शनादिमें जो यत्न किया जाता है उसे आचार कहते हैं।</p> | ||
<p> मूलाचार / आचारवृत्ति / गाथा 199 दंसणणाणचरित्ते तव्वे विरियाचरिह्मि पंचविहे। वोच्छं अदिचारेऽहं कारिदं अणुमोदिदे अ कदो ॥199॥</p> | <p class="SanskritText">मूलाचार / आचारवृत्ति / गाथा 199 दंसणणाणचरित्ते तव्वे विरियाचरिह्मि पंचविहे। वोच्छं अदिचारेऽहं कारिदं अणुमोदिदे अ कदो ॥199॥</p> | ||
<p>= सम्यग्दर्शनाचार, ज्ञानाचार, चारित्ताचार, तपाचार और वीर्याचार-इस तरह पाँच आचारोमें कृत कारित अनुमोदनासे होनेवाले अतिचारोंको मैं कहता हूँ।</p> | <p class="HindiText">= सम्यग्दर्शनाचार, ज्ञानाचार, चारित्ताचार, तपाचार और वीर्याचार-इस तरह पाँच आचारोमें कृत कारित अनुमोदनासे होनेवाले अतिचारोंको मैं कहता हूँ।</p> | ||
<p>(न.च.336), ( प्रवचनसार / तत्त्वप्रदीपिका / गाथा 202), ( नियमसार / तात्पर्यवृत्तिगाथा 73)</p> | <p>(न.च.336), ( प्रवचनसार / तत्त्वप्रदीपिका / गाथा 202), ( नियमसार / तात्पर्यवृत्तिगाथा 73)</p> | ||
<p>2. दर्शनाचारके भेद व लक्षण</p> | <p>2. दर्शनाचारके भेद व लक्षण</p> | ||
<p> मूलाचार / आचारवृत्ति / गाथा 200-201 दंसणचरणविसुद्धी अट्ठविहा जिणवरेहिं णिद्दिट्ठा..॥200॥ णिस्संकिद णिक्कंखिद णिव्विदगिच्छा अमूढदिट्ठी य। उवगूहण ठिदिकरणं वच्छल्लपहावणा य ते अट्ठ ॥201॥</p> | <p class="SanskritText">मूलाचार / आचारवृत्ति / गाथा 200-201 दंसणचरणविसुद्धी अट्ठविहा जिणवरेहिं णिद्दिट्ठा..॥200॥ णिस्संकिद णिक्कंखिद णिव्विदगिच्छा अमूढदिट्ठी य। उवगूहण ठिदिकरणं वच्छल्लपहावणा य ते अट्ठ ॥201॥</p> | ||
<p>= दर्शनाचारकी निर्मलता जिनेन्द्र भगवानने अष्ट प्रकारकी कही है-। निःशंकित, निष्कांक्षित, निर्विचिकित्सा, अमूढदृष्टि, उपगूहन, स्थितीकरण, वात्सल्य और प्रभावना ये आठ सम्यक्त्वके गुण जानना ॥201॥</p> | <p class="HindiText">= दर्शनाचारकी निर्मलता जिनेन्द्र भगवानने अष्ट प्रकारकी कही है-। निःशंकित, निष्कांक्षित, निर्विचिकित्सा, अमूढदृष्टि, उपगूहन, स्थितीकरण, वात्सल्य और प्रभावना ये आठ सम्यक्त्वके गुण जानना ॥201॥</p> | ||
<p> प्रवचनसार / तत्त्वप्रदीपिका / गाथा 202/250 अहो निःशिङ्कितत्वनिःकाङ्क्षितत्वनिर्विचिकित्सत्वनिर्मूढदृष्टित्वोपबृंहणस्थितिकरणवात्सल्यप्रभावनालक्षणदर्शनाचारः।</p> | <p class="SanskritText">प्रवचनसार / तत्त्वप्रदीपिका / गाथा 202/250 अहो निःशिङ्कितत्वनिःकाङ्क्षितत्वनिर्विचिकित्सत्वनिर्मूढदृष्टित्वोपबृंहणस्थितिकरणवात्सल्यप्रभावनालक्षणदर्शनाचारः।</p> | ||
<p>= अहो! निःशंकितत्व, निःकांक्षितत्व, निर्विचिकित्सत्व, निमूढदृष्टित्व, उपबृंहण, स्थितिकरण, वात्सल्य और प्रभावना स्वरूप दर्शनाचार है। </p> | <p class="HindiText">= अहो! निःशंकितत्व, निःकांक्षितत्व, निर्विचिकित्सत्व, निमूढदृष्टित्व, उपबृंहण, स्थितिकरण, वात्सल्य और प्रभावना स्वरूप दर्शनाचार है। </p> | ||
<p>( परमात्मप्रकाश / मूल या टीका अधिकार 7/13)</p> | <p>( परमात्मप्रकाश / मूल या टीका अधिकार 7/13)</p> | ||
<p> परमात्मप्रकाश / मूल या टीका अधिकार 7/13/3 यच्चिदानन्दैकस्वभावं शुद्धात्मत्त्वं तदेव...सर्वप्रकारोपादेयभूतं तस्माच्च यदन्यत्तद्धेयमिति। चलमलिनावगाढरहितत्वेन निश्चयश्रद्धानबुद्धिः सम्यक्त्वं तत्राचरणं परिणमनं दर्शनाचारः।</p> | <p class="SanskritText">परमात्मप्रकाश / मूल या टीका अधिकार 7/13/3 यच्चिदानन्दैकस्वभावं शुद्धात्मत्त्वं तदेव...सर्वप्रकारोपादेयभूतं तस्माच्च यदन्यत्तद्धेयमिति। चलमलिनावगाढरहितत्वेन निश्चयश्रद्धानबुद्धिः सम्यक्त्वं तत्राचरणं परिणमनं दर्शनाचारः।</p> | ||
<p>= जो चिदानन्दरूप शुद्धात्मक तत्त्व है वही सब प्रकार आराधने योग्य है, उससे भिन्न जो पर वस्तु हैं वह सब त्याज्य हैं। ऐसी दृढं प्रतीति चंचलता रहति निर्मल अवगाढ परम श्रद्धा है, उसको सम्यक्त्व कहते हैं, उसका जो आचरण अर्थात् उस स्वरूप परिणमन वह दर्शनाचार कहा जाता है।</p> | <p class="HindiText">= जो चिदानन्दरूप शुद्धात्मक तत्त्व है वही सब प्रकार आराधने योग्य है, उससे भिन्न जो पर वस्तु हैं वह सब त्याज्य हैं। ऐसी दृढं प्रतीति चंचलता रहति निर्मल अवगाढ परम श्रद्धा है, उसको सम्यक्त्व कहते हैं, उसका जो आचरण अर्थात् उस स्वरूप परिणमन वह दर्शनाचार कहा जाता है।</p> | ||
<p> द्रव्यसंग्रह / मूल या टीका गाथा 52/218 परमचैतन्यविलासलक्षणः स्वशुद्धात्मैवोपादेय इति रुचिरूपं सम्यग्दर्शन, तत्राचरणं परिणमनं निश्चयदर्शनाचारः। </p> | <p class="SanskritText">द्रव्यसंग्रह / मूल या टीका गाथा 52/218 परमचैतन्यविलासलक्षणः स्वशुद्धात्मैवोपादेय इति रुचिरूपं सम्यग्दर्शन, तत्राचरणं परिणमनं निश्चयदर्शनाचारः। </p> | ||
<p>= (समस्त पर द्रव्योंसे भिन्न) और परम चैतन्यका विलासरूप लक्षणवाली, यह निज शुद्धात्मा ही उपादेय है; ऐसी रुचि रूप सम्यग्दर्शन है, उस सम्यग्दर्शनमें जो आचारण अर्थात् परिणमन सो निश्चय दर्शनाचार है।</p> | <p class="HindiText">= (समस्त पर द्रव्योंसे भिन्न) और परम चैतन्यका विलासरूप लक्षणवाली, यह निज शुद्धात्मा ही उपादेय है; ऐसी रुचि रूप सम्यग्दर्शन है, उस सम्यग्दर्शनमें जो आचारण अर्थात् परिणमन सो निश्चय दर्शनाचार है।</p> | ||
<p>3. ज्ञानाचारके भेद व लक्षण</p> | <p>3. ज्ञानाचारके भेद व लक्षण</p> | ||
<p> मूलाचार / आचारवृत्ति / गाथा 269 काले विणए उवहाणे बहुमाणे तहेव णिण्हवणे। वंजण अत्थ तदुभयं णाणाचारो दु अट्ठविहो ॥269॥</p> | <p class="SanskritText">मूलाचार / आचारवृत्ति / गाथा 269 काले विणए उवहाणे बहुमाणे तहेव णिण्हवणे। वंजण अत्थ तदुभयं णाणाचारो दु अट्ठविहो ॥269॥</p> | ||
<p>= स्वाध्यायका काल, मन वच कायसे शास्त्रका विनय यत्नसे करना, पूजा-सत्कारादिसे पाठ करना, अपने पढ़ानेवाले गुरुका तथा पड़े हुए शास्त्रका नाम प्रगट करना छिपाना नहीं, वर्ण पद वाक्यकी शुद्धिसे पढ़ना, अनेकान्तस्वरूप अर्थको शुद्धि अर्थ सहित पाठादिककी शुद्धि होना, इस तरह ज्ञानाचारके आठ भेद हैं।</p> | <p class="HindiText">= स्वाध्यायका काल, मन वच कायसे शास्त्रका विनय यत्नसे करना, पूजा-सत्कारादिसे पाठ करना, अपने पढ़ानेवाले गुरुका तथा पड़े हुए शास्त्रका नाम प्रगट करना छिपाना नहीं, वर्ण पद वाक्यकी शुद्धिसे पढ़ना, अनेकान्तस्वरूप अर्थको शुद्धि अर्थ सहित पाठादिककी शुद्धि होना, इस तरह ज्ञानाचारके आठ भेद हैं।</p> | ||
<p> प्रवचनसार / तत्त्वप्रदीपिका / गाथा 202/249 काल विनयोपधानबहुमानानिह्ववार्थव्यञ्जनतदुभयसंपन्नत्वलक्षणज्ञानाचारः।</p> | <p class="SanskritText">प्रवचनसार / तत्त्वप्रदीपिका / गाथा 202/249 काल विनयोपधानबहुमानानिह्ववार्थव्यञ्जनतदुभयसंपन्नत्वलक्षणज्ञानाचारः।</p> | ||
<p>= काल, विनय, उपधान, बहुमान, अनिह्नव, अर्थ, व्यंजन और तदुभय सम्पन्न ज्ञानाचार है।</p> | <p class="HindiText">= काल, विनय, उपधान, बहुमान, अनिह्नव, अर्थ, व्यंजन और तदुभय सम्पन्न ज्ञानाचार है।</p> | ||
<p>प.प्र.7/13 तत्रेव संशयविपर्यासानध्यवसायरहितत्वेन स्वसंवेदनज्ञानरूपेण ग्राहकबुद्धिः सम्यग्ज्ञानं तत्राचरणं परिणमनं ज्ञानाचारः।</p> | <p class="SanskritText">प.प्र.7/13 तत्रेव संशयविपर्यासानध्यवसायरहितत्वेन स्वसंवेदनज्ञानरूपेण ग्राहकबुद्धिः सम्यग्ज्ञानं तत्राचरणं परिणमनं ज्ञानाचारः।</p> | ||
<p>= और उसी निज स्वरूपमें, संशय-विमोह विभ्रम रहित जो स्वसंवेदनज्ञानरूपग्राहक बुद्धि वह सम्यग्ज्ञान हुआ, उसका जो आचरण अर्थात् उस रूप परिणमन वह (निश्चय) ज्ञानाचार है।</p> | <p class="HindiText">= और उसी निज स्वरूपमें, संशय-विमोह विभ्रम रहित जो स्वसंवेदनज्ञानरूपग्राहक बुद्धि वह सम्यग्ज्ञान हुआ, उसका जो आचरण अर्थात् उस रूप परिणमन वह (निश्चय) ज्ञानाचार है।</p> | ||
<p> द्रव्यसंग्रह / मूल या टीका गाथा 52/218 तस्यैव शुद्धात्मनो निरुपाधिस्वसंवेदनलक्षणभेदज्ञानेन मिथ्यात्वरागादिपरभावेभ्यः पृथकपरिच्छेदनं, सम्यग्ज्ञानं, तत्राचरणं परिणमनं निश्चयज्ञानाचारः।</p> | <p class="SanskritText">द्रव्यसंग्रह / मूल या टीका गाथा 52/218 तस्यैव शुद्धात्मनो निरुपाधिस्वसंवेदनलक्षणभेदज्ञानेन मिथ्यात्वरागादिपरभावेभ्यः पृथकपरिच्छेदनं, सम्यग्ज्ञानं, तत्राचरणं परिणमनं निश्चयज्ञानाचारः।</p> | ||
<p>= उसी शुद्धात्माको उपाधि रहित स्वसंवेदन रूप भेदज्ञान-द्वारा मिथ्यात्व रागादि परभावोंसे भिन्न जानना सम्यग्ज्ञान है, उस सम्यग्ज्ञानमें आचरण अर्थात् परिणमन वह निश्चयज्ञानाचार है।</p> | <p class="HindiText">= उसी शुद्धात्माको उपाधि रहित स्वसंवेदन रूप भेदज्ञान-द्वारा मिथ्यात्व रागादि परभावोंसे भिन्न जानना सम्यग्ज्ञान है, उस सम्यग्ज्ञानमें आचरण अर्थात् परिणमन वह निश्चयज्ञानाचार है।</p> | ||
<p>4. चारित्राचारके भेद व लक्षण</p> | <p>4. चारित्राचारके भेद व लक्षण</p> | ||
<p> मूलाचार / आचारवृत्ति / गाथा 288,297 पाणिवहमुसावाद अदत्तमेवहुणपरिग्गहाविरदी। एस चरित्ताचारो पंचविहो होदि णादव्वो ॥288॥ पणिधाणजोगजुत्तो पंचमु समिदीसु तीसु गुत्तीसु। एस चरित्ताचारो अट्ठविधो होई णायव्वो ॥297॥</p> | <p class="SanskritText">मूलाचार / आचारवृत्ति / गाथा 288,297 पाणिवहमुसावाद अदत्तमेवहुणपरिग्गहाविरदी। एस चरित्ताचारो पंचविहो होदि णादव्वो ॥288॥ पणिधाणजोगजुत्तो पंचमु समिदीसु तीसु गुत्तीसु। एस चरित्ताचारो अट्ठविधो होई णायव्वो ॥297॥</p> | ||
<p>= प्राणियोंकी हिंसा, झूठ बोलना, चोरी, मैथुन, सेवा, परिग्रह-इनका त्याग करना वह अहिंसा आदि पाँच प्रकारका चारित्रचार जानना ॥288॥ परिणामके संयोगसे; पाँच समिति तीन गुप्तियोंमे अकषाय रूप प्रवृत्ति आठ भेदवाला चारित्रचार है।</p> | <p class="HindiText">= प्राणियोंकी हिंसा, झूठ बोलना, चोरी, मैथुन, सेवा, परिग्रह-इनका त्याग करना वह अहिंसा आदि पाँच प्रकारका चारित्रचार जानना ॥288॥ परिणामके संयोगसे; पाँच समिति तीन गुप्तियोंमे अकषाय रूप प्रवृत्ति आठ भेदवाला चारित्रचार है।</p> | ||
<p> प्रवचनसार / तत्त्वप्रदीपिका / गाथा 202/250 मोक्षमार्गप्रवृत्तिकारणपञ्चमहाव्रतोपेतकायवाङ्मनोगुप्तीर्याभाषैषणादाननिक्षेपणप्रतिष्ठापणसमितिलक्षणचारित्राचारः।</p> | <p class="SanskritText">प्रवचनसार / तत्त्वप्रदीपिका / गाथा 202/250 मोक्षमार्गप्रवृत्तिकारणपञ्चमहाव्रतोपेतकायवाङ्मनोगुप्तीर्याभाषैषणादाननिक्षेपणप्रतिष्ठापणसमितिलक्षणचारित्राचारः।</p> | ||
<p>= मोक्षमार्गमें प्रवृत्तिके कारणभूत पंचमहाव्रत सहित कायवचन गुप्ति और ईर्या, भाषा, ऐषणा आदान निक्षेपण और प्रतिष्ठापन समिति स्वरूप चारित्राचार है।</p> | <p class="HindiText">= मोक्षमार्गमें प्रवृत्तिके कारणभूत पंचमहाव्रत सहित कायवचन गुप्ति और ईर्या, भाषा, ऐषणा आदान निक्षेपण और प्रतिष्ठापन समिति स्वरूप चारित्राचार है।</p> | ||
<p> परमात्मप्रकाश / मूल या टीका अधिकार 7/13 तत्रैव शुभाशुभसङ्कल्पविकल्पतहितत्वेन नित्यानन्दमयसुखरसास्वादस्थिरानुभवं च सम्यग्चारित्रं तत्राचरणं परिणमनं चारित्राचारः।</p> | <p class="SanskritText">परमात्मप्रकाश / मूल या टीका अधिकार 7/13 तत्रैव शुभाशुभसङ्कल्पविकल्पतहितत्वेन नित्यानन्दमयसुखरसास्वादस्थिरानुभवं च सम्यग्चारित्रं तत्राचरणं परिणमनं चारित्राचारः।</p> | ||
<p>= उसी शुद्ध स्वरूपमें शुभ अशुभ समस्त सङ्कल्प रहित जो नित्यानन्दमें निजरसका स्वाद, अनिश्चय अनुभव, वह सम्यग्चारित्र है। उसका जो आचरण, उस रूप परिणमन वह चारित्राचार है।</p> | <p class="HindiText">= उसी शुद्ध स्वरूपमें शुभ अशुभ समस्त सङ्कल्प रहित जो नित्यानन्दमें निजरसका स्वाद, अनिश्चय अनुभव, वह सम्यग्चारित्र है। उसका जो आचरण, उस रूप परिणमन वह चारित्राचार है।</p> | ||
<p> द्रव्यसंग्रह / मूल या टीका गाथा 52/218 तत्रैव रागादिविकल्पोपाधिरहितस्वभाविकसुखास्वादेन निश्चलचित्तं वीतरागचारित्रं, तत्राचरणं परिणमनं निश्चयचारित्राचारः।</p> | <p class="SanskritText">द्रव्यसंग्रह / मूल या टीका गाथा 52/218 तत्रैव रागादिविकल्पोपाधिरहितस्वभाविकसुखास्वादेन निश्चलचित्तं वीतरागचारित्रं, तत्राचरणं परिणमनं निश्चयचारित्राचारः।</p> | ||
<p>= उसी शुद्ध आत्मामें रागादिविकल्प रूप उपाधिसे रहित स्वभाविक सुखास्वादसे निश्चल चित्त होना, वीतराग चारित्र है, उसमें आचारण अर्थात् परिणमन निश्चय चारित्राचार है।</p> | <p class="HindiText">= उसी शुद्ध आत्मामें रागादिविकल्प रूप उपाधिसे रहित स्वभाविक सुखास्वादसे निश्चल चित्त होना, वीतराग चारित्र है, उसमें आचारण अर्थात् परिणमन निश्चय चारित्राचार है।</p> | ||
<p>5. तपाचारके भेद व लक्षण </p> | <p>5. तपाचारके भेद व लक्षण </p> | ||
<p>पू.आ.345,346,360 दुविहो य तवाचारो बाहिर अब्भंतरो मुणेयव्वो। एक्केक्को विय छद्धा जधाकमं तं परुवेमो ॥345॥ अणसण अवमोदरियं रसपरिचाओ य वृत्तिपरिसंखा। कायस्स च परितावो विवित्तसयणासणं छट्ठं ॥346॥ पायच्छित्तं विणयं वेज्जावच्चं तहेव सज्झायं। झाणं च विउस्सगो अब्भन्तरओ तवो एसो ॥360॥</p> | <p class="SanskritText">पू.आ.345,346,360 दुविहो य तवाचारो बाहिर अब्भंतरो मुणेयव्वो। एक्केक्को विय छद्धा जधाकमं तं परुवेमो ॥345॥ अणसण अवमोदरियं रसपरिचाओ य वृत्तिपरिसंखा। कायस्स च परितावो विवित्तसयणासणं छट्ठं ॥346॥ पायच्छित्तं विणयं वेज्जावच्चं तहेव सज्झायं। झाणं च विउस्सगो अब्भन्तरओ तवो एसो ॥360॥</p> | ||
<p>= तपाचार के दो भेद हैं-बाह्य, आभ्यन्तर। उनमें-से भी एक एकके छह छह भेद जानना। उनको मैं क्रमसे कहता हूँ ॥345॥ अनशन, अवमौदर्य, रसपरित्याग, वृत्ति-परिसंख्यान, काय-शोषण और छट्ठा विविक्तशय्यासन इस तरह बाह्य तपके छः भेद हैं ॥346॥ प्रायश्चित्त, विनय, वैयावृत्य, स्वाध्याय, ध्यान, व्युतसर्ग-ये छः भेद अन्तरङ्ग तपके हैं।</p> | <p class="HindiText">= तपाचार के दो भेद हैं-बाह्य, आभ्यन्तर। उनमें-से भी एक एकके छह छह भेद जानना। उनको मैं क्रमसे कहता हूँ ॥345॥ अनशन, अवमौदर्य, रसपरित्याग, वृत्ति-परिसंख्यान, काय-शोषण और छट्ठा विविक्तशय्यासन इस तरह बाह्य तपके छः भेद हैं ॥346॥ प्रायश्चित्त, विनय, वैयावृत्य, स्वाध्याय, ध्यान, व्युतसर्ग-ये छः भेद अन्तरङ्ग तपके हैं।</p> | ||
<p>प्र.सा.त./प्र.202/250 अनशनावमौदर्यवृत्तिपरिसंख्यानरसपरित्याग विविक्तशय्यासनकायक्लेशप्रायश्चित्तविनयवैयावृत्यस्वाध्यायव्युत्सर्ग लक्षणतपाचारः।</p> | <p class="SanskritText">प्र.सा.त./प्र.202/250 अनशनावमौदर्यवृत्तिपरिसंख्यानरसपरित्याग विविक्तशय्यासनकायक्लेशप्रायश्चित्तविनयवैयावृत्यस्वाध्यायव्युत्सर्ग लक्षणतपाचारः।</p> | ||
<p>= अनशन, अवमौदर्य, वृत्तिपरिसंख्यान, रसपरित्याग, विविक्त शय्यासन, कायक्लेश, प्रायश्चित्त, विनय, वैयावृत्य, स्वाध्याय, ध्यान और व्युत्सर्ग तपाचार है।</p> | <p class="HindiText">= अनशन, अवमौदर्य, वृत्तिपरिसंख्यान, रसपरित्याग, विविक्त शय्यासन, कायक्लेश, प्रायश्चित्त, विनय, वैयावृत्य, स्वाध्याय, ध्यान और व्युत्सर्ग तपाचार है।</p> | ||
<p> परमात्मप्रकाश / मूल या टीका अधिकार 7/13 तत्रैव परद्रव्येच्छाविरोधेन सहजानन्दैकरूपणे प्रतपनं तपश्चरणं, तत्राचरणं परिणमनं तपश्चरणाचार...।....अनशनादिद्वादशभेदरूपो बाह्यतपश्चरणाचारः।</p> | <p class="SanskritText">परमात्मप्रकाश / मूल या टीका अधिकार 7/13 तत्रैव परद्रव्येच्छाविरोधेन सहजानन्दैकरूपणे प्रतपनं तपश्चरणं, तत्राचरणं परिणमनं तपश्चरणाचार...।....अनशनादिद्वादशभेदरूपो बाह्यतपश्चरणाचारः।</p> | ||
<p>= उसी परमानन्द स्वरूपमें परद्रव्यकी इच्छाका निरोधकर सहज आनन्द रूप तपश्चरणस्वरूप परिणमन तपश्चरणाचार है।...अनशनादि बाह्यतप रूप बाह्य तपाचार है।</p> | <p class="HindiText">= उसी परमानन्द स्वरूपमें परद्रव्यकी इच्छाका निरोधकर सहज आनन्द रूप तपश्चरणस्वरूप परिणमन तपश्चरणाचार है।...अनशनादि बाह्यतप रूप बाह्य तपाचार है।</p> | ||
<p>द्र.संटी.52/219 समस्तपरद्रव्येच्छानिरोधेन तथैवानशन आदि द्वादशतपश्चरणबहिरङ्गसहकारिकारणेन च स्वस्वरूपे प्रतपनं विजयनं निश्चपतश्चरणं तत्राचरणं, परिणमनं निश्चयतपश्चरणाचारः।</p> | <p class="SanskritText">द्र.संटी.52/219 समस्तपरद्रव्येच्छानिरोधेन तथैवानशन आदि द्वादशतपश्चरणबहिरङ्गसहकारिकारणेन च स्वस्वरूपे प्रतपनं विजयनं निश्चपतश्चरणं तत्राचरणं, परिणमनं निश्चयतपश्चरणाचारः।</p> | ||
<p>= समस्त परद्रव्यकी इच्छाके रोकनेसे तथा अनशन आदि बारह तप रूप बहिरङ्ग सहकारि कारणसे जो निज स्वरूपमें प्रतपन अर्थात् विजयन, वह निश्चय तपश्चरण है। उनमें जो आचरण अर्थात् परिणमन निश्चयतपश्चरणाचार है।</p> | <p class="HindiText">= समस्त परद्रव्यकी इच्छाके रोकनेसे तथा अनशन आदि बारह तप रूप बहिरङ्ग सहकारि कारणसे जो निज स्वरूपमें प्रतपन अर्थात् विजयन, वह निश्चय तपश्चरण है। उनमें जो आचरण अर्थात् परिणमन निश्चयतपश्चरणाचार है।</p> | ||
<p>6. वीर्याचारका लक्षण</p> | <p>6. वीर्याचारका लक्षण</p> | ||
<p> मूलाचार / आचारवृत्ति / गाथा 413 अणिगूहियबलविरिओ परकामादि जो जहुत्तमाउत्तो। जुञ्जदि य जहाथाणं विरियाचारो त्ति णादव्वो ॥413॥</p> | <p class="SanskritText">मूलाचार / आचारवृत्ति / गाथा 413 अणिगूहियबलविरिओ परकामादि जो जहुत्तमाउत्तो। जुञ्जदि य जहाथाणं विरियाचारो त्ति णादव्वो ॥413॥</p> | ||
<p>= नहीं छिपाया है आहार आदिसे उत्पन्न बल तथा शक्ति जिसने ऐसा साधु यथोक्त चारित्रमें तीन प्रकार अनुमति रहित 17 प्रकार संयम विधान करनेके लिए आत्माको युक्त करता है वह वीर्याचार जानना ॥413॥</p> | <p class="HindiText">= नहीं छिपाया है आहार आदिसे उत्पन्न बल तथा शक्ति जिसने ऐसा साधु यथोक्त चारित्रमें तीन प्रकार अनुमति रहित 17 प्रकार संयम विधान करनेके लिए आत्माको युक्त करता है वह वीर्याचार जानना ॥413॥</p> | ||
<p> प्रवचनसार / तत्त्वप्रदीपिका / गाथा 202/251 समस्तेतराचारप्रवर्तकस्वशक्त्या निगूहनलक्षणं वीर्याचारः। </p> | <p class="SanskritText">प्रवचनसार / तत्त्वप्रदीपिका / गाथा 202/251 समस्तेतराचारप्रवर्तकस्वशक्त्या निगूहनलक्षणं वीर्याचारः। </p> | ||
<p>= समस्त इतर आचारमें प्रवृत्ति करनेवाली स्वशक्तिके अगोपन स्वरूप वीर्याचार है।</p> | <p class="HindiText">= समस्त इतर आचारमें प्रवृत्ति करनेवाली स्वशक्तिके अगोपन स्वरूप वीर्याचार है।</p> | ||
<p> परमात्मप्रकाश / मूल या टीका अधिकार 7/14 तत्रैव शुद्धात्मस्वरूपे स्वशक्त्यानवगूहनेनाचारणं परिणमनं वीर्याचारः।...बाह्यस्वशक्त्यनवगूहनरूपो बाह्यवीर्याचारः।</p> | <p class="SanskritText">परमात्मप्रकाश / मूल या टीका अधिकार 7/14 तत्रैव शुद्धात्मस्वरूपे स्वशक्त्यानवगूहनेनाचारणं परिणमनं वीर्याचारः।...बाह्यस्वशक्त्यनवगूहनरूपो बाह्यवीर्याचारः।</p> | ||
<p>= उसी शुद्धात्म स्वरूपमें अपनी शक्तिको प्रकटकर आचरण परिणमन करना वह निश्चय वीर्चाचार है।..अपनी शक्ति प्रकटकर मुनिव्रतका आचरण वह व्यवहार वीर्याचार है।</p> | <p class="HindiText">= उसी शुद्धात्म स्वरूपमें अपनी शक्तिको प्रकटकर आचरण परिणमन करना वह निश्चय वीर्चाचार है।..अपनी शक्ति प्रकटकर मुनिव्रतका आचरण वह व्यवहार वीर्याचार है।</p> | ||
<p> द्रव्यसंग्रह / मूल या टीका गाथा 52/219 तस्यैव निश्चयचतुर्विधाचारस्य रक्षणार्थं स्वशक्त्यानवगूहनं... निश्चयवीर्याचारः।</p> | <p class="SanskritText">द्रव्यसंग्रह / मूल या टीका गाथा 52/219 तस्यैव निश्चयचतुर्विधाचारस्य रक्षणार्थं स्वशक्त्यानवगूहनं... निश्चयवीर्याचारः।</p> | ||
<p>= इन चार प्रकारके निश्चय आचारकी रक्षाके लिए अपनी शक्तिका नहीं छिपाना, निश्चयवीर्याचार है।</p> | <p class="HindiText">= इन चार प्रकारके निश्चय आचारकी रक्षाके लिए अपनी शक्तिका नहीं छिपाना, निश्चयवीर्याचार है।</p> | ||
<p>• निश्चय पञ्चाचारके अपर नाम - देखें [[ मोक्षमार्ग#2.5 | मोक्षमार्ग - 2.5]]।</p> | <p>• निश्चय पञ्चाचारके अपर नाम - देखें [[ मोक्षमार्ग#2.5 | मोक्षमार्ग - 2.5]]।</p> | ||
<p>• दर्शनादि आचार व विनयमें अन्तर - देखें [[ विनय#2 | विनय - 2]]।</p> | <p>• दर्शनादि आचार व विनयमें अन्तर - देखें [[ विनय#2 | विनय - 2]]।</p> | ||
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Revision as of 13:47, 10 July 2020
1. आचार सामान्यके भेद व लक्षण
सागार धर्मामृत अधिकार 7/35.../....वीर्याच्छुद्धेषु तेषु तु ॥35॥
= अपनी शक्तिके अनुसार निर्मल किये गये सम्यग्दर्शनादिमें जो यत्न किया जाता है उसे आचार कहते हैं।
मूलाचार / आचारवृत्ति / गाथा 199 दंसणणाणचरित्ते तव्वे विरियाचरिह्मि पंचविहे। वोच्छं अदिचारेऽहं कारिदं अणुमोदिदे अ कदो ॥199॥
= सम्यग्दर्शनाचार, ज्ञानाचार, चारित्ताचार, तपाचार और वीर्याचार-इस तरह पाँच आचारोमें कृत कारित अनुमोदनासे होनेवाले अतिचारोंको मैं कहता हूँ।
(न.च.336), ( प्रवचनसार / तत्त्वप्रदीपिका / गाथा 202), ( नियमसार / तात्पर्यवृत्तिगाथा 73)
2. दर्शनाचारके भेद व लक्षण
मूलाचार / आचारवृत्ति / गाथा 200-201 दंसणचरणविसुद्धी अट्ठविहा जिणवरेहिं णिद्दिट्ठा..॥200॥ णिस्संकिद णिक्कंखिद णिव्विदगिच्छा अमूढदिट्ठी य। उवगूहण ठिदिकरणं वच्छल्लपहावणा य ते अट्ठ ॥201॥
= दर्शनाचारकी निर्मलता जिनेन्द्र भगवानने अष्ट प्रकारकी कही है-। निःशंकित, निष्कांक्षित, निर्विचिकित्सा, अमूढदृष्टि, उपगूहन, स्थितीकरण, वात्सल्य और प्रभावना ये आठ सम्यक्त्वके गुण जानना ॥201॥
प्रवचनसार / तत्त्वप्रदीपिका / गाथा 202/250 अहो निःशिङ्कितत्वनिःकाङ्क्षितत्वनिर्विचिकित्सत्वनिर्मूढदृष्टित्वोपबृंहणस्थितिकरणवात्सल्यप्रभावनालक्षणदर्शनाचारः।
= अहो! निःशंकितत्व, निःकांक्षितत्व, निर्विचिकित्सत्व, निमूढदृष्टित्व, उपबृंहण, स्थितिकरण, वात्सल्य और प्रभावना स्वरूप दर्शनाचार है।
( परमात्मप्रकाश / मूल या टीका अधिकार 7/13)
परमात्मप्रकाश / मूल या टीका अधिकार 7/13/3 यच्चिदानन्दैकस्वभावं शुद्धात्मत्त्वं तदेव...सर्वप्रकारोपादेयभूतं तस्माच्च यदन्यत्तद्धेयमिति। चलमलिनावगाढरहितत्वेन निश्चयश्रद्धानबुद्धिः सम्यक्त्वं तत्राचरणं परिणमनं दर्शनाचारः।
= जो चिदानन्दरूप शुद्धात्मक तत्त्व है वही सब प्रकार आराधने योग्य है, उससे भिन्न जो पर वस्तु हैं वह सब त्याज्य हैं। ऐसी दृढं प्रतीति चंचलता रहति निर्मल अवगाढ परम श्रद्धा है, उसको सम्यक्त्व कहते हैं, उसका जो आचरण अर्थात् उस स्वरूप परिणमन वह दर्शनाचार कहा जाता है।
द्रव्यसंग्रह / मूल या टीका गाथा 52/218 परमचैतन्यविलासलक्षणः स्वशुद्धात्मैवोपादेय इति रुचिरूपं सम्यग्दर्शन, तत्राचरणं परिणमनं निश्चयदर्शनाचारः।
= (समस्त पर द्रव्योंसे भिन्न) और परम चैतन्यका विलासरूप लक्षणवाली, यह निज शुद्धात्मा ही उपादेय है; ऐसी रुचि रूप सम्यग्दर्शन है, उस सम्यग्दर्शनमें जो आचारण अर्थात् परिणमन सो निश्चय दर्शनाचार है।
3. ज्ञानाचारके भेद व लक्षण
मूलाचार / आचारवृत्ति / गाथा 269 काले विणए उवहाणे बहुमाणे तहेव णिण्हवणे। वंजण अत्थ तदुभयं णाणाचारो दु अट्ठविहो ॥269॥
= स्वाध्यायका काल, मन वच कायसे शास्त्रका विनय यत्नसे करना, पूजा-सत्कारादिसे पाठ करना, अपने पढ़ानेवाले गुरुका तथा पड़े हुए शास्त्रका नाम प्रगट करना छिपाना नहीं, वर्ण पद वाक्यकी शुद्धिसे पढ़ना, अनेकान्तस्वरूप अर्थको शुद्धि अर्थ सहित पाठादिककी शुद्धि होना, इस तरह ज्ञानाचारके आठ भेद हैं।
प्रवचनसार / तत्त्वप्रदीपिका / गाथा 202/249 काल विनयोपधानबहुमानानिह्ववार्थव्यञ्जनतदुभयसंपन्नत्वलक्षणज्ञानाचारः।
= काल, विनय, उपधान, बहुमान, अनिह्नव, अर्थ, व्यंजन और तदुभय सम्पन्न ज्ञानाचार है।
प.प्र.7/13 तत्रेव संशयविपर्यासानध्यवसायरहितत्वेन स्वसंवेदनज्ञानरूपेण ग्राहकबुद्धिः सम्यग्ज्ञानं तत्राचरणं परिणमनं ज्ञानाचारः।
= और उसी निज स्वरूपमें, संशय-विमोह विभ्रम रहित जो स्वसंवेदनज्ञानरूपग्राहक बुद्धि वह सम्यग्ज्ञान हुआ, उसका जो आचरण अर्थात् उस रूप परिणमन वह (निश्चय) ज्ञानाचार है।
द्रव्यसंग्रह / मूल या टीका गाथा 52/218 तस्यैव शुद्धात्मनो निरुपाधिस्वसंवेदनलक्षणभेदज्ञानेन मिथ्यात्वरागादिपरभावेभ्यः पृथकपरिच्छेदनं, सम्यग्ज्ञानं, तत्राचरणं परिणमनं निश्चयज्ञानाचारः।
= उसी शुद्धात्माको उपाधि रहित स्वसंवेदन रूप भेदज्ञान-द्वारा मिथ्यात्व रागादि परभावोंसे भिन्न जानना सम्यग्ज्ञान है, उस सम्यग्ज्ञानमें आचरण अर्थात् परिणमन वह निश्चयज्ञानाचार है।
4. चारित्राचारके भेद व लक्षण
मूलाचार / आचारवृत्ति / गाथा 288,297 पाणिवहमुसावाद अदत्तमेवहुणपरिग्गहाविरदी। एस चरित्ताचारो पंचविहो होदि णादव्वो ॥288॥ पणिधाणजोगजुत्तो पंचमु समिदीसु तीसु गुत्तीसु। एस चरित्ताचारो अट्ठविधो होई णायव्वो ॥297॥
= प्राणियोंकी हिंसा, झूठ बोलना, चोरी, मैथुन, सेवा, परिग्रह-इनका त्याग करना वह अहिंसा आदि पाँच प्रकारका चारित्रचार जानना ॥288॥ परिणामके संयोगसे; पाँच समिति तीन गुप्तियोंमे अकषाय रूप प्रवृत्ति आठ भेदवाला चारित्रचार है।
प्रवचनसार / तत्त्वप्रदीपिका / गाथा 202/250 मोक्षमार्गप्रवृत्तिकारणपञ्चमहाव्रतोपेतकायवाङ्मनोगुप्तीर्याभाषैषणादाननिक्षेपणप्रतिष्ठापणसमितिलक्षणचारित्राचारः।
= मोक्षमार्गमें प्रवृत्तिके कारणभूत पंचमहाव्रत सहित कायवचन गुप्ति और ईर्या, भाषा, ऐषणा आदान निक्षेपण और प्रतिष्ठापन समिति स्वरूप चारित्राचार है।
परमात्मप्रकाश / मूल या टीका अधिकार 7/13 तत्रैव शुभाशुभसङ्कल्पविकल्पतहितत्वेन नित्यानन्दमयसुखरसास्वादस्थिरानुभवं च सम्यग्चारित्रं तत्राचरणं परिणमनं चारित्राचारः।
= उसी शुद्ध स्वरूपमें शुभ अशुभ समस्त सङ्कल्प रहित जो नित्यानन्दमें निजरसका स्वाद, अनिश्चय अनुभव, वह सम्यग्चारित्र है। उसका जो आचरण, उस रूप परिणमन वह चारित्राचार है।
द्रव्यसंग्रह / मूल या टीका गाथा 52/218 तत्रैव रागादिविकल्पोपाधिरहितस्वभाविकसुखास्वादेन निश्चलचित्तं वीतरागचारित्रं, तत्राचरणं परिणमनं निश्चयचारित्राचारः।
= उसी शुद्ध आत्मामें रागादिविकल्प रूप उपाधिसे रहित स्वभाविक सुखास्वादसे निश्चल चित्त होना, वीतराग चारित्र है, उसमें आचारण अर्थात् परिणमन निश्चय चारित्राचार है।
5. तपाचारके भेद व लक्षण
पू.आ.345,346,360 दुविहो य तवाचारो बाहिर अब्भंतरो मुणेयव्वो। एक्केक्को विय छद्धा जधाकमं तं परुवेमो ॥345॥ अणसण अवमोदरियं रसपरिचाओ य वृत्तिपरिसंखा। कायस्स च परितावो विवित्तसयणासणं छट्ठं ॥346॥ पायच्छित्तं विणयं वेज्जावच्चं तहेव सज्झायं। झाणं च विउस्सगो अब्भन्तरओ तवो एसो ॥360॥
= तपाचार के दो भेद हैं-बाह्य, आभ्यन्तर। उनमें-से भी एक एकके छह छह भेद जानना। उनको मैं क्रमसे कहता हूँ ॥345॥ अनशन, अवमौदर्य, रसपरित्याग, वृत्ति-परिसंख्यान, काय-शोषण और छट्ठा विविक्तशय्यासन इस तरह बाह्य तपके छः भेद हैं ॥346॥ प्रायश्चित्त, विनय, वैयावृत्य, स्वाध्याय, ध्यान, व्युतसर्ग-ये छः भेद अन्तरङ्ग तपके हैं।
प्र.सा.त./प्र.202/250 अनशनावमौदर्यवृत्तिपरिसंख्यानरसपरित्याग विविक्तशय्यासनकायक्लेशप्रायश्चित्तविनयवैयावृत्यस्वाध्यायव्युत्सर्ग लक्षणतपाचारः।
= अनशन, अवमौदर्य, वृत्तिपरिसंख्यान, रसपरित्याग, विविक्त शय्यासन, कायक्लेश, प्रायश्चित्त, विनय, वैयावृत्य, स्वाध्याय, ध्यान और व्युत्सर्ग तपाचार है।
परमात्मप्रकाश / मूल या टीका अधिकार 7/13 तत्रैव परद्रव्येच्छाविरोधेन सहजानन्दैकरूपणे प्रतपनं तपश्चरणं, तत्राचरणं परिणमनं तपश्चरणाचार...।....अनशनादिद्वादशभेदरूपो बाह्यतपश्चरणाचारः।
= उसी परमानन्द स्वरूपमें परद्रव्यकी इच्छाका निरोधकर सहज आनन्द रूप तपश्चरणस्वरूप परिणमन तपश्चरणाचार है।...अनशनादि बाह्यतप रूप बाह्य तपाचार है।
द्र.संटी.52/219 समस्तपरद्रव्येच्छानिरोधेन तथैवानशन आदि द्वादशतपश्चरणबहिरङ्गसहकारिकारणेन च स्वस्वरूपे प्रतपनं विजयनं निश्चपतश्चरणं तत्राचरणं, परिणमनं निश्चयतपश्चरणाचारः।
= समस्त परद्रव्यकी इच्छाके रोकनेसे तथा अनशन आदि बारह तप रूप बहिरङ्ग सहकारि कारणसे जो निज स्वरूपमें प्रतपन अर्थात् विजयन, वह निश्चय तपश्चरण है। उनमें जो आचरण अर्थात् परिणमन निश्चयतपश्चरणाचार है।
6. वीर्याचारका लक्षण
मूलाचार / आचारवृत्ति / गाथा 413 अणिगूहियबलविरिओ परकामादि जो जहुत्तमाउत्तो। जुञ्जदि य जहाथाणं विरियाचारो त्ति णादव्वो ॥413॥
= नहीं छिपाया है आहार आदिसे उत्पन्न बल तथा शक्ति जिसने ऐसा साधु यथोक्त चारित्रमें तीन प्रकार अनुमति रहित 17 प्रकार संयम विधान करनेके लिए आत्माको युक्त करता है वह वीर्याचार जानना ॥413॥
प्रवचनसार / तत्त्वप्रदीपिका / गाथा 202/251 समस्तेतराचारप्रवर्तकस्वशक्त्या निगूहनलक्षणं वीर्याचारः।
= समस्त इतर आचारमें प्रवृत्ति करनेवाली स्वशक्तिके अगोपन स्वरूप वीर्याचार है।
परमात्मप्रकाश / मूल या टीका अधिकार 7/14 तत्रैव शुद्धात्मस्वरूपे स्वशक्त्यानवगूहनेनाचारणं परिणमनं वीर्याचारः।...बाह्यस्वशक्त्यनवगूहनरूपो बाह्यवीर्याचारः।
= उसी शुद्धात्म स्वरूपमें अपनी शक्तिको प्रकटकर आचरण परिणमन करना वह निश्चय वीर्चाचार है।..अपनी शक्ति प्रकटकर मुनिव्रतका आचरण वह व्यवहार वीर्याचार है।
द्रव्यसंग्रह / मूल या टीका गाथा 52/219 तस्यैव निश्चयचतुर्विधाचारस्य रक्षणार्थं स्वशक्त्यानवगूहनं... निश्चयवीर्याचारः।
= इन चार प्रकारके निश्चय आचारकी रक्षाके लिए अपनी शक्तिका नहीं छिपाना, निश्चयवीर्याचार है।
• निश्चय पञ्चाचारके अपर नाम - देखें मोक्षमार्ग - 2.5।
• दर्शनादि आचार व विनयमें अन्तर - देखें विनय - 2।