उपमान: Difference between revisions
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<p>न्या./सू./मू. व भाष्य 1/1/6 प्रसिद्धसाधर्म्यात्साध्यसाधन मुपमानम् ।6। प्रज्ञातेन सामान्यात्प्रज्ञापनीयस्य प्रज्ञापनमुपमानमिति। यथा गौरेवं गवय इति।</p> | <p class="SanskritText">न्या./सू./मू. व भाष्य 1/1/6 प्रसिद्धसाधर्म्यात्साध्यसाधन मुपमानम् ।6। प्रज्ञातेन सामान्यात्प्रज्ञापनीयस्य प्रज्ञापनमुपमानमिति। यथा गौरेवं गवय इति।</p> | ||
<p>= प्रसिद्ध पदार्थकी तुल्यतासे साध्यके साधनको उपमान कहते हैं। प्रज्ञातके द्वारा सामान्य होनेसे प्रज्ञापनीयका प्रज्ञापन करना उपमान है जैसे `गौ की भाँति गवय होता है' ऐसे कहकर `गवय' का रूप समझाना।</p> | <p class="HindiText">= प्रसिद्ध पदार्थकी तुल्यतासे साध्यके साधनको उपमान कहते हैं। प्रज्ञातके द्वारा सामान्य होनेसे प्रज्ञापनीयका प्रज्ञापन करना उपमान है जैसे `गौ की भाँति गवय होता है' ऐसे कहकर `गवय' का रूप समझाना।</p> | ||
<p>( न्यायबिन्दु / मूल या टीका श्लोक 3/85/361); (राजवार्तिक अध्याय 1/20/15/78/17)</p> | <p>( न्यायबिन्दु / मूल या टीका श्लोक 3/85/361); (राजवार्तिक अध्याय 1/20/15/78/17)</p> | ||
<p>2. उपमान प्रमाणका श्रुतज्ञानमें अन्तर्भाव</p> | <p>2. उपमान प्रमाणका श्रुतज्ञानमें अन्तर्भाव</p> | ||
<p>राजवार्तिक अध्याय 1/20/15/78/18 इत्युपमानमपि स्वपरप्रतिपत्तिविषयत्वादक्षरानक्षरश्रुते अन्तर्भावयति।</p> | <p class="SanskritText">राजवार्तिक अध्याय 1/20/15/78/18 इत्युपमानमपि स्वपरप्रतिपत्तिविषयत्वादक्षरानक्षरश्रुते अन्तर्भावयति।</p> | ||
<p>= क्योंकि इसके द्वारा स्व व परकी प्रतिपत्ति हो जाती है। इसलिए इसका अक्षर व अनवक्षर श्रुतज्ञानमें अन्तर्भाव हो जाता है।</p> | <p class="HindiText">= क्योंकि इसके द्वारा स्व व परकी प्रतिपत्ति हो जाती है। इसलिए इसका अक्षर व अनवक्षर श्रुतज्ञानमें अन्तर्भाव हो जाता है।</p> | ||
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Revision as of 13:48, 10 July 2020
न्या./सू./मू. व भाष्य 1/1/6 प्रसिद्धसाधर्म्यात्साध्यसाधन मुपमानम् ।6। प्रज्ञातेन सामान्यात्प्रज्ञापनीयस्य प्रज्ञापनमुपमानमिति। यथा गौरेवं गवय इति।
= प्रसिद्ध पदार्थकी तुल्यतासे साध्यके साधनको उपमान कहते हैं। प्रज्ञातके द्वारा सामान्य होनेसे प्रज्ञापनीयका प्रज्ञापन करना उपमान है जैसे `गौ की भाँति गवय होता है' ऐसे कहकर `गवय' का रूप समझाना।
( न्यायबिन्दु / मूल या टीका श्लोक 3/85/361); (राजवार्तिक अध्याय 1/20/15/78/17)
2. उपमान प्रमाणका श्रुतज्ञानमें अन्तर्भाव
राजवार्तिक अध्याय 1/20/15/78/18 इत्युपमानमपि स्वपरप्रतिपत्तिविषयत्वादक्षरानक्षरश्रुते अन्तर्भावयति।
= क्योंकि इसके द्वारा स्व व परकी प्रतिपत्ति हो जाती है। इसलिए इसका अक्षर व अनवक्षर श्रुतज्ञानमें अन्तर्भाव हो जाता है।