ऊहा: Difference between revisions
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<p class="SanskritText">षट्खण्डागम पुस्तक 13/5,5/सू. 38/242 ईहा ऊहा अपोहा मग्गणा गवेसणा मीमांसा 38।</p> | |||
<p>= ईहा, ऊहा, अपोहा, मार्गणा, गवेषणा और मीमांसा ये ईहाके पर्याय नाम हैं।</p> | <p class="HindiText">= ईहा, ऊहा, अपोहा, मार्गणा, गवेषणा और मीमांसा ये ईहाके पर्याय नाम हैं।</p> | ||
<p>तत्त्वार्थाधिगम भाष्य 1/15 ईहाऊहातर्कपरीक्षाविचारणाजिज्ञासा इत्यनर्थान्तरम्।</p> | <p class="SanskritText">तत्त्वार्थाधिगम भाष्य 1/15 ईहाऊहातर्कपरीक्षाविचारणाजिज्ञासा इत्यनर्थान्तरम्।</p> | ||
<p>= ईहा, ऊहा, तर्क, परीक्षा, विचारणा, जिज्ञासा ये सब शब्द एकार्थवाची हैं।</p> | <p class="HindiText">= ईहा, ऊहा, तर्क, परीक्षा, विचारणा, जिज्ञासा ये सब शब्द एकार्थवाची हैं।</p> | ||
<p> सर्वार्थसिद्धि अध्याय 9/43/455/6 तर्कणमूहनं वितर्कः श्रुतज्ञानमित्यर्थः।</p> | <p class="SanskritText">सर्वार्थसिद्धि अध्याय 9/43/455/6 तर्कणमूहनं वितर्कः श्रुतज्ञानमित्यर्थः।</p> | ||
<p>= तर्कणा करना, अर्थात् ऊहा करना, वितर्क अर्थात् श्रुतज्ञान कहलाता है।</p> | <p class="HindiText">= तर्कणा करना, अर्थात् ऊहा करना, वितर्क अर्थात् श्रुतज्ञान कहलाता है।</p> | ||
<p> धवला पुस्तक 13/5,5,38/242/8 अवगृहीतार्थस्य अनधिगतविशेषः उह्यते तर्क्यते अनया इति ऊहा।</p> | <p class="SanskritText">धवला पुस्तक 13/5,5,38/242/8 अवगृहीतार्थस्य अनधिगतविशेषः उह्यते तर्क्यते अनया इति ऊहा।</p> | ||
<p>= जिससे अवग्रहके द्वारा ग्रहण किये अर्थमें नहीं जाने गये विशेषकी `ऊह्यते' अर्थात् तर्कणा करते हैं वह ऊहा है।</p> | <p class="HindiText">= जिससे अवग्रहके द्वारा ग्रहण किये अर्थमें नहीं जाने गये विशेषकी `ऊह्यते' अर्थात् तर्कणा करते हैं वह ऊहा है।</p> | ||
<p> परीक्षामुख परिच्छेद 3/11-13/2 उपलम्भानुपलम्भनिमित्तं व्याप्तिज्ञानमूहः ।11। इदमस्मिन्सत्येव भवत्यसति न भवत्येवेति च ।12। यथाग्नावेव घूमस्तदभावे न भवत्येवेति च ।13।</p> | <p class="SanskritText">परीक्षामुख परिच्छेद 3/11-13/2 उपलम्भानुपलम्भनिमित्तं व्याप्तिज्ञानमूहः ।11। इदमस्मिन्सत्येव भवत्यसति न भवत्येवेति च ।12। यथाग्नावेव घूमस्तदभावे न भवत्येवेति च ।13।</p> | ||
<p>= उपलब्धि और अनुपलब्धिकी सहायतासे होनेवाले व्याप्तिज्ञानको तर्क कहते हैं। और उसका स्वरूप ऐसा है-`इसके होते ही यह होता है और इसके न होते होता ही नहीं है' जैसे-अग्निके होते ही धुआँ होता है, अग्निके न होते होता ही नहीं ।11-13।</p> | <p class="HindiText">= उपलब्धि और अनुपलब्धिकी सहायतासे होनेवाले व्याप्तिज्ञानको तर्क कहते हैं। और उसका स्वरूप ऐसा है-`इसके होते ही यह होता है और इसके न होते होता ही नहीं है' जैसे-अग्निके होते ही धुआँ होता है, अग्निके न होते होता ही नहीं ।11-13।</p> | ||
<p>(स./म.28/321/27)</p> | <p>(स./म.28/321/27)</p> | ||
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Revision as of 13:48, 10 July 2020
== सिद्धांतकोष से ==
षट्खण्डागम पुस्तक 13/5,5/सू. 38/242 ईहा ऊहा अपोहा मग्गणा गवेसणा मीमांसा 38।
= ईहा, ऊहा, अपोहा, मार्गणा, गवेषणा और मीमांसा ये ईहाके पर्याय नाम हैं।
तत्त्वार्थाधिगम भाष्य 1/15 ईहाऊहातर्कपरीक्षाविचारणाजिज्ञासा इत्यनर्थान्तरम्।
= ईहा, ऊहा, तर्क, परीक्षा, विचारणा, जिज्ञासा ये सब शब्द एकार्थवाची हैं।
सर्वार्थसिद्धि अध्याय 9/43/455/6 तर्कणमूहनं वितर्कः श्रुतज्ञानमित्यर्थः।
= तर्कणा करना, अर्थात् ऊहा करना, वितर्क अर्थात् श्रुतज्ञान कहलाता है।
धवला पुस्तक 13/5,5,38/242/8 अवगृहीतार्थस्य अनधिगतविशेषः उह्यते तर्क्यते अनया इति ऊहा।
= जिससे अवग्रहके द्वारा ग्रहण किये अर्थमें नहीं जाने गये विशेषकी `ऊह्यते' अर्थात् तर्कणा करते हैं वह ऊहा है।
परीक्षामुख परिच्छेद 3/11-13/2 उपलम्भानुपलम्भनिमित्तं व्याप्तिज्ञानमूहः ।11। इदमस्मिन्सत्येव भवत्यसति न भवत्येवेति च ।12। यथाग्नावेव घूमस्तदभावे न भवत्येवेति च ।13।
= उपलब्धि और अनुपलब्धिकी सहायतासे होनेवाले व्याप्तिज्ञानको तर्क कहते हैं। और उसका स्वरूप ऐसा है-`इसके होते ही यह होता है और इसके न होते होता ही नहीं है' जैसे-अग्निके होते ही धुआँ होता है, अग्निके न होते होता ही नहीं ।11-13।
(स./म.28/321/27)
पुराणकोष से
भरतक्षेत्र के आर्यखण्ड की एक नदी । भरत की सेना ने इस नदी को पार किया था । महापुराण 29.62