द्वैपायन: Difference between revisions
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<p class="HindiText">( | <p class="HindiText">( हरिवंशपुराण/61/ श्लो.) रोहिणी का भाई बलदेव का मामा भगवान् से यह सुनकर कि उसके द्वारा द्वारिका जलेगी; तो वह विरक्त होकर मुनि हो गया (28)। कठिन तपश्चरण के द्वारा तैजस ऋद्धि प्राप्त हो गयी, तब भ्रान्तिवश बारह वर्ष से कुछ पहले ही द्वारिका देखने के लिए आये (44)। मदिरा पीने के द्वारा उन्मत्त हुए कृष्ण के भाइयों ने उसको अपशब्द कहे तथा उस पर पत्थर मारे (55)। जिसके कारण उसे क्रोध आ गया और तैजस समुद्घात द्वारा द्वारिका को भस्म कर दिया। बड़ी अनुनय और विनय करने के पश्चात् केवल कृष्ण व बलदेव दो ही बचने पाये (56-86)। यह भाविकाल की चौबीसी में स्वयम्भू नाम के 19 वें तीर्थंकर होंगे।–देखें [[ तीर्थंकर#5 | तीर्थंकर - 5]]।<br /> | ||
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<li><span class="HindiText"><strong> द्वैपायन के उत्तरभव सम्बन्धी</strong> </span><br /> | <li><span class="HindiText"><strong> द्वैपायन के उत्तरभव सम्बन्धी</strong> </span><br /> | ||
हरिवंशपुराण/61/69 <span class="SanskritGatha">मृत्वा क्रोधाग्निर्दग्धतप: सारधनश्च स:। बभूवाग्निकुमाराख्यो मिथ्यादृग्भवनामर:।69। </span>=<span class="HindiText">क्रोधरूपी अग्नि के द्वारा जिनका तपरूप श्रेष्ठ धन भस्म हो चुका था ऐसे द्वैपायन मुनि मरकर अग्निकुमार नामक मिथ्यादृष्टि भवनवासी देव हुए। ( धवला 12/4,2,7,19/21/4 ) </span></li> | |||
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Revision as of 19:11, 17 July 2020
== सिद्धांतकोष से ==
( हरिवंशपुराण/61/ श्लो.) रोहिणी का भाई बलदेव का मामा भगवान् से यह सुनकर कि उसके द्वारा द्वारिका जलेगी; तो वह विरक्त होकर मुनि हो गया (28)। कठिन तपश्चरण के द्वारा तैजस ऋद्धि प्राप्त हो गयी, तब भ्रान्तिवश बारह वर्ष से कुछ पहले ही द्वारिका देखने के लिए आये (44)। मदिरा पीने के द्वारा उन्मत्त हुए कृष्ण के भाइयों ने उसको अपशब्द कहे तथा उस पर पत्थर मारे (55)। जिसके कारण उसे क्रोध आ गया और तैजस समुद्घात द्वारा द्वारिका को भस्म कर दिया। बड़ी अनुनय और विनय करने के पश्चात् केवल कृष्ण व बलदेव दो ही बचने पाये (56-86)। यह भाविकाल की चौबीसी में स्वयम्भू नाम के 19 वें तीर्थंकर होंगे।–देखें तीर्थंकर - 5।
- द्वैपायन के उत्तरभव सम्बन्धी
हरिवंशपुराण/61/69 मृत्वा क्रोधाग्निर्दग्धतप: सारधनश्च स:। बभूवाग्निकुमाराख्यो मिथ्यादृग्भवनामर:।69। =क्रोधरूपी अग्नि के द्वारा जिनका तपरूप श्रेष्ठ धन भस्म हो चुका था ऐसे द्वैपायन मुनि मरकर अग्निकुमार नामक मिथ्यादृष्टि भवनवासी देव हुए। ( धवला 12/4,2,7,19/21/4 )
पुराणकोष से
रोहिणी का भाई एक मुनि । बारहवें वर्ष मे मदिरा के निमित्त से निजीत्पन्न क्रोध से द्वारिका-दहन की बात तीर्थंकर नेमि से जानकर यह ससार से विरक्त हो गया और तप करने लगा था । भ्रान्तिवश बारहवें वर्ष को पूर्ण हुआ जान द्वारिका आया । कृष्ण ने मदिरा फिकवा दीं थी परन्तु प्रक्षिप्त मदिरा कदम्ब-वन के कुण्डों में अश्मपाक विशेष के कारण भरी रही जिसे शम्ब आदि कुमारों ने तुषाकुलित होकर पी ली । उनके भाव विकृत हो गये । इसे द्वारिका-दहन का कारण जानकर उन्होने तब तक मारा जब तक यह पृथिवी पर गिर नहीं पड़ा । इस अपमान से इसे क्रोध उत्पन्न हुआ । बड़ी अनुनयविनय करने से कृष्ण और बलभद्र ही बच सकेंगे ऐसा कहकर अन्त में यह मरकर अग्निकुमार नामक मिथ्यादृष्टि भवनवासी देव हुआ । इसने विभगावधिज्ञान से द्वारिकावासियों को अपना हन्ता जानकर द्वारिका को जलाना आरम्भ किया और छ: मास में उसे भस्म करके नष्ट कर दिया । इस दहन मे कृष्ण और बलराम दोनों ही बच पाये । अन्य कोई भी नगर से बाहर नहीं निकल पाया । अपरनाम द्वीपायन । यह आगामी अठारहवाँ तीर्थंकर होगा । महापुराण 72.178-185, 76. 474, हरिवंशपुराण 1.118,61. 28-74, 90, पांडवपुराण 22.78-85