पैशुन्य: Difference between revisions
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<p> | <p> राजवार्तिक/1/20/12/73/13 <span class="SanskritText">पृष्ठतो दोषाविष्करणं पैशुन्यम्।</span> = <span class="HindiText">पीछे से दोष प्रकट करने को पैशुन्य वचन कहते हैं। ( धवला 1/1,1,2/116/12 ); ( धवला 9/4/1,45/217/3 )। </span><br /> | ||
धवला 9/4,2,8,10/285/5 <span class="SanskritText">परेषां क्रोधादिना दोषोद्भावनं पैशुन्यम्। </span>= <span class="HindiText">क्रोधादि के कारण दूसरों के दोषों को प्रकट करना पैशुन्य कहा जाता है। ( गोम्मटसार जीवकाण्ड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/365/778/20 )। </span><br /> | |||
नियमसार / तात्पर्यवृत्ति/62 <span class="SanskritText"> कर्णेजपमुखविनिर्गतं नृपतिकर्णाभ्यर्णगतं चैकपुरुषस्य एककुटुम्बस्य एकग्रामस्य वा महद्विपत्कारणं वचःपैशुन्यम्।</span> =<span class="HindiText"> चुगलखोर मनुष्य के मुँह से निकले हुए और राजा के कान तक पहुँचे हुए, किसी एक पुरुष, किसी एक कुटुम्ब अथवा किसी एक ग्राम को महाविपत्ति के कारणभूत ऐसे वचन वह पैशुन्य है। <br /> | |||
राजवार्तिक हिं./6/11/500 पैशुन्य कहिये पर तै अदेख सका भावकरि खोटी कहना। </span></p> | |||
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Revision as of 19:12, 17 July 2020
राजवार्तिक/1/20/12/73/13 पृष्ठतो दोषाविष्करणं पैशुन्यम्। = पीछे से दोष प्रकट करने को पैशुन्य वचन कहते हैं। ( धवला 1/1,1,2/116/12 ); ( धवला 9/4/1,45/217/3 )।
धवला 9/4,2,8,10/285/5 परेषां क्रोधादिना दोषोद्भावनं पैशुन्यम्। = क्रोधादि के कारण दूसरों के दोषों को प्रकट करना पैशुन्य कहा जाता है। ( गोम्मटसार जीवकाण्ड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/365/778/20 )।
नियमसार / तात्पर्यवृत्ति/62 कर्णेजपमुखविनिर्गतं नृपतिकर्णाभ्यर्णगतं चैकपुरुषस्य एककुटुम्बस्य एकग्रामस्य वा महद्विपत्कारणं वचःपैशुन्यम्। = चुगलखोर मनुष्य के मुँह से निकले हुए और राजा के कान तक पहुँचे हुए, किसी एक पुरुष, किसी एक कुटुम्ब अथवा किसी एक ग्राम को महाविपत्ति के कारणभूत ऐसे वचन वह पैशुन्य है।
राजवार्तिक हिं./6/11/500 पैशुन्य कहिये पर तै अदेख सका भावकरि खोटी कहना।