अन्यत्व: Difference between revisions
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[[राजवार्तिक | राजवार्तिक]] अध्याय संख्या २/७,१३/११२/१ अन्यत्वमपि साधारणं सर्वद्रव्याणां परस्परतोऽन्यत्वात्। कर्मोदयाद्यपेक्षाभावात् तदपि पारिणामिकम्।<br>= एक द्रव्य दूसरेसे भिन्न होता है, अतः अन्यत्व भी सर्वसाधारण है। कर्मोदय आदिकी अपेक्षाका अभाव होनेके कारण, यह पारिणामिक भाव है, अर्थात् स्वभावसे ही सबमें पाया जाता है।< | [[राजवार्तिक | राजवार्तिक]] अध्याय संख्या २/७,१३/११२/१ अन्यत्वमपि साधारणं सर्वद्रव्याणां परस्परतोऽन्यत्वात्। कर्मोदयाद्यपेक्षाभावात् तदपि पारिणामिकम्।<br> | ||
<p class="HindiSentence">= एक द्रव्य दूसरेसे भिन्न होता है, अतः अन्यत्व भी सर्वसाधारण है। कर्मोदय आदिकी अपेक्षाका अभाव होनेके कारण, यह पारिणामिक भाव है, अर्थात् स्वभावसे ही सबमें पाया जाता है।</p> | |||
[[समयसार]] / [[ समयसार आत्मख्याति | आत्मख्याति]] गाथा संख्या ३५५/क.२१३ वस्तु चैकमिह नान्यवस्तुनः, येन तेन खलु वस्तु वस्तु तत्। निश्चयोऽयमपरोऽपरस्य कः, किं करोति हि बहिर्लुठन्नपि ।।२१३।।<br> | |||
<p class="HindiSentence">= इस लोकमें एक वस्तु अन्य वस्तुकी नहीं है, इसलिए वास्तवमें वस्तु वस्तु ही है। ऐसा होनेसे कोई अन्य वस्तु अन्य वस्तुके बाहर लोटती हुई भी उसका क्या कर सकती है।</p> | |||
[[प्रवचनसार]] / [[ प्रवचनसार तत्त्वप्रदीपिका | तत्त्वप्रदीपिका ]] / गाथा संख्या १०६ अतद्भावो ह्यन्यत्वस्य लक्षणं तत्तु सत्ताद्रव्ययोर्विद्यत एव गुणगुणिनोस्तद्भावस्याभावात् शुक्लोत्तरीयवदेव।<br> | |||
<p class="HindiSentence">= अतद्भाव अन्यत्वका लक्षण है, वह तो सत्ता और द्रव्यके है ही, क्योंकि गुण और गुणीके तद्भावका अभाव होता है-शुक्ल व वस्त्रकी भाँति।</p> | |||
<UL start=0 class="BulletedList"> <LI> दो पदार्थोंके मध्य अन्यत्वका विशेष रूप-<b>देखे </b>[[कारक, कारण]] । </LI> </UL> | |||
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राजवार्तिक अध्याय संख्या २/७,१३/११२/१ अन्यत्वमपि साधारणं सर्वद्रव्याणां परस्परतोऽन्यत्वात्। कर्मोदयाद्यपेक्षाभावात् तदपि पारिणामिकम्।
= एक द्रव्य दूसरेसे भिन्न होता है, अतः अन्यत्व भी सर्वसाधारण है। कर्मोदय आदिकी अपेक्षाका अभाव होनेके कारण, यह पारिणामिक भाव है, अर्थात् स्वभावसे ही सबमें पाया जाता है।
समयसार / आत्मख्याति गाथा संख्या ३५५/क.२१३ वस्तु चैकमिह नान्यवस्तुनः, येन तेन खलु वस्तु वस्तु तत्। निश्चयोऽयमपरोऽपरस्य कः, किं करोति हि बहिर्लुठन्नपि ।।२१३।।
= इस लोकमें एक वस्तु अन्य वस्तुकी नहीं है, इसलिए वास्तवमें वस्तु वस्तु ही है। ऐसा होनेसे कोई अन्य वस्तु अन्य वस्तुके बाहर लोटती हुई भी उसका क्या कर सकती है।
प्रवचनसार / तत्त्वप्रदीपिका / गाथा संख्या १०६ अतद्भावो ह्यन्यत्वस्य लक्षणं तत्तु सत्ताद्रव्ययोर्विद्यत एव गुणगुणिनोस्तद्भावस्याभावात् शुक्लोत्तरीयवदेव।
= अतद्भाव अन्यत्वका लक्षण है, वह तो सत्ता और द्रव्यके है ही, क्योंकि गुण और गुणीके तद्भावका अभाव होता है-शुक्ल व वस्त्रकी भाँति।
- दो पदार्थोंके मध्य अन्यत्वका विशेष रूप-देखे कारक, कारण ।