अपसिद्धांत: Difference between revisions
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| न्यायदर्शन सूत्र / मूल या टीका अध्याय 5/2/23 सिद्धान्तमभ्युपेत्यानियमात् कथाप्रसङ्गोऽपसिद्धान्तः। ( श्लोकवार्तिक पुस्तक 4/न्या.268/422/15)= किसी अर्थ के सिद्धान्तको मानकर नियम-विरुद्ध `कथाप्रसंग' करना `अपसिद्धान्त' नामक निग्रहस्थान होता है। अर्थात् स्वीकृत आगमके विरुद्ध अर्थका साधन करने लग जाना अपसिद्धान्त है। पंचाध्यायी / पूर्वार्ध श्लोक 568 जैसे शरीरको जीव बताना अपसिद्धान्त रूप विरुद्ध वचन है। | ||
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Revision as of 14:16, 20 July 2020
न्यायदर्शन सूत्र / मूल या टीका अध्याय 5/2/23 सिद्धान्तमभ्युपेत्यानियमात् कथाप्रसङ्गोऽपसिद्धान्तः। ( श्लोकवार्तिक पुस्तक 4/न्या.268/422/15)= किसी अर्थ के सिद्धान्तको मानकर नियम-विरुद्ध `कथाप्रसंग' करना `अपसिद्धान्त' नामक निग्रहस्थान होता है। अर्थात् स्वीकृत आगमके विरुद्ध अर्थका साधन करने लग जाना अपसिद्धान्त है। पंचाध्यायी / पूर्वार्ध श्लोक 568 जैसे शरीरको जीव बताना अपसिद्धान्त रूप विरुद्ध वचन है।