माघनंदि: Difference between revisions
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<li> मूलसंघ की पट्टावली के अनुसार आप आ. अर्हद्बलि के शिष्य होते हुए भी उनके तथा धरसेन से स्वामी के समकालीन थे। पूर्वधर तथा अत्यन्त ज्ञानी होते हुए भी आप बड़े तपस्वी थे। इसकी परीक्षा के लिये प्राप्त गुरु अर्हद्वली के आदेश के अनुसार एक बार आपने नन्दिवृक्ष (जो छायाहीन होता है) के नीचे वर्षायोग धारण किया था। इसी से इनको तथा इनके संघ को नन्दि की संज्ञा प्राप्त हो गयी थी। नन्दिसंघ की पट्टावली में आपका नाम क्योंकि भद्रबाहु तथा गुप्तिगुप्त (अर्हद्बलि) को नमस्कार करने के पश्चात् सबसे पहले आता है और वहाँ क्योंकि आपका पट्टकाल वी.नि. 575 से प्रारम्भ किया गया है, इसलिये अनुमान होता है कि उक्त घटना इसी काल में घटी थी और उसी समय आ. अर्हद्बलि के द्वारा स्थापित इस संघ का आद्य पट आपको प्राप्त हुआ था। यद्यपि नन्दिसंघ की पट्टावली में आपकी उत्तरावधि केवल 4 वर्ष पश्चात् वी.नि. 579 बताई गई, तदपि क्योंकि मूलसंघ की पट्टावली के अनुसार यह 614 है इसलिये आपका काल वी.नि. 575 से 614 सिद्ध होता है। (विशेष देखें [[ कोष#1. | कोष - 1.]]परिशिष्ट 2/9)। </li> | <li> मूलसंघ की पट्टावली के अनुसार आप आ. अर्हद्बलि के शिष्य होते हुए भी उनके तथा धरसेन से स्वामी के समकालीन थे। पूर्वधर तथा अत्यन्त ज्ञानी होते हुए भी आप बड़े तपस्वी थे। इसकी परीक्षा के लिये प्राप्त गुरु अर्हद्वली के आदेश के अनुसार एक बार आपने नन्दिवृक्ष (जो छायाहीन होता है) के नीचे वर्षायोग धारण किया था। इसी से इनको तथा इनके संघ को नन्दि की संज्ञा प्राप्त हो गयी थी। नन्दिसंघ की पट्टावली में आपका नाम क्योंकि भद्रबाहु तथा गुप्तिगुप्त (अर्हद्बलि) को नमस्कार करने के पश्चात् सबसे पहले आता है और वहाँ क्योंकि आपका पट्टकाल वी.नि. 575 से प्रारम्भ किया गया है, इसलिये अनुमान होता है कि उक्त घटना इसी काल में घटी थी और उसी समय आ. अर्हद्बलि के द्वारा स्थापित इस संघ का आद्य पट आपको प्राप्त हुआ था। यद्यपि नन्दिसंघ की पट्टावली में आपकी उत्तरावधि केवल 4 वर्ष पश्चात् वी.नि. 579 बताई गई, तदपि क्योंकि मूलसंघ की पट्टावली के अनुसार यह 614 है इसलिये आपका काल वी.नि. 575 से 614 सिद्ध होता है। (विशेष देखें [[ कोष#1. | कोष - 1.]]परिशिष्ट 2/9)। </li> | ||
<li> नन्दिसंघ के देशीयगण की गुर्वावली के अनुसार आप कुलचन्द्र के शिष्य तथा माघनन्दि त्रैविद्यदेव तथा देवकीर्ति के गुरु थे। ‘कोल्लापुरीय’ आपकी उपाधि थी। समय–वि. श. 1030-1058 (ई. 1108-1136)–(देखें [[ इतिहास#7.5 | इतिहास - 7.5]])। </li> | <li> नन्दिसंघ के देशीयगण की गुर्वावली के अनुसार आप कुलचन्द्र के शिष्य तथा माघनन्दि त्रैविद्यदेव तथा देवकीर्ति के गुरु थे। ‘कोल्लापुरीय’ आपकी उपाधि थी। समय–वि. श. 1030-1058 (ई. 1108-1136)–(देखें [[ इतिहास#7.5 | इतिहास - 7.5]])। </li> | ||
<li> | <li> शास्त्रसार समुच्चय के कर्ता। माघनन्दि नं. 4 (वि. 1317) के दादा गुरु। समय–ई. श. 12 का अन्त। (जै. /2/385)। 4</li> | ||
<li> माघनन्दि नं. 3 के प्रशिष्य और कुमुद चन्द्र के शिष्य। | <li> माघनन्दि नं. 3 के प्रशिष्य और कुमुद चन्द्र के शिष्य। कृति–शास्त्रसार समुच्चय की कन्नड़ टीका। समय–वि. 1317 (ई. 1260)। (जै. /2/366)। </li> | ||
<li> माघनन्दि कोल्हापुरीय के शिष्य (ई. 1133)। (देखें [[ इतिहास#7.5 | इतिहास - 7.5]])। </li> | <li> माघनन्दि कोल्हापुरीय के शिष्य (ई. 1133)। (देखें [[ इतिहास#7.5 | इतिहास - 7.5]])। </li> | ||
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Revision as of 14:27, 20 July 2020
- मूलसंघ की पट्टावली के अनुसार आप आ. अर्हद्बलि के शिष्य होते हुए भी उनके तथा धरसेन से स्वामी के समकालीन थे। पूर्वधर तथा अत्यन्त ज्ञानी होते हुए भी आप बड़े तपस्वी थे। इसकी परीक्षा के लिये प्राप्त गुरु अर्हद्वली के आदेश के अनुसार एक बार आपने नन्दिवृक्ष (जो छायाहीन होता है) के नीचे वर्षायोग धारण किया था। इसी से इनको तथा इनके संघ को नन्दि की संज्ञा प्राप्त हो गयी थी। नन्दिसंघ की पट्टावली में आपका नाम क्योंकि भद्रबाहु तथा गुप्तिगुप्त (अर्हद्बलि) को नमस्कार करने के पश्चात् सबसे पहले आता है और वहाँ क्योंकि आपका पट्टकाल वी.नि. 575 से प्रारम्भ किया गया है, इसलिये अनुमान होता है कि उक्त घटना इसी काल में घटी थी और उसी समय आ. अर्हद्बलि के द्वारा स्थापित इस संघ का आद्य पट आपको प्राप्त हुआ था। यद्यपि नन्दिसंघ की पट्टावली में आपकी उत्तरावधि केवल 4 वर्ष पश्चात् वी.नि. 579 बताई गई, तदपि क्योंकि मूलसंघ की पट्टावली के अनुसार यह 614 है इसलिये आपका काल वी.नि. 575 से 614 सिद्ध होता है। (विशेष देखें कोष - 1.परिशिष्ट 2/9)।
- नन्दिसंघ के देशीयगण की गुर्वावली के अनुसार आप कुलचन्द्र के शिष्य तथा माघनन्दि त्रैविद्यदेव तथा देवकीर्ति के गुरु थे। ‘कोल्लापुरीय’ आपकी उपाधि थी। समय–वि. श. 1030-1058 (ई. 1108-1136)–(देखें इतिहास - 7.5)।
- शास्त्रसार समुच्चय के कर्ता। माघनन्दि नं. 4 (वि. 1317) के दादा गुरु। समय–ई. श. 12 का अन्त। (जै. /2/385)। 4
- माघनन्दि नं. 3 के प्रशिष्य और कुमुद चन्द्र के शिष्य। कृति–शास्त्रसार समुच्चय की कन्नड़ टीका। समय–वि. 1317 (ई. 1260)। (जै. /2/366)।
- माघनन्दि कोल्हापुरीय के शिष्य (ई. 1133)। (देखें इतिहास - 7.5)।