अर्थापत्ति: Difference between revisions
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[[राजवार्तिक | राजवार्तिक]] अध्याय संख्या ६/९/६/५१६/९ यथा हि असति हि मेघे वृष्टिर्नास्तीत्युक्ते अर्थादापन्नं सति मेघे वृष्टिस्तीति।<br>= जैसे `मेघके अभावमें वृष्टि नहीं होती' ऐसा कहने पर अर्थापत्तिसे ही जाना जाता है कि मेघके होनेपर वृष्टि होती है।< | [[राजवार्तिक | राजवार्तिक]] अध्याय संख्या ६/९/६/५१६/९ यथा हि असति हि मेघे वृष्टिर्नास्तीत्युक्ते अर्थादापन्नं सति मेघे वृष्टिस्तीति।<br> | ||
<p class="HindiSentence">= जैसे `मेघके अभावमें वृष्टि नहीं होती' ऐसा कहने पर अर्थापत्तिसे ही जाना जाता है कि मेघके होनेपर वृष्टि होती है।</p> | |||
<OL start=2 class="HindiNumberList"> <LI> अर्थापत्तिमें अनैकान्तिक दोषका निरास </LI> </OL> | |||
[[राजवार्तिक | राजवार्तिक]] अध्याय संख्या ६/९/६/५१६/१० सत्यपि मेघे कदाचिद्वृष्टिर्नास्तीत्यर्थापत्तिरनैकान्तिकीतिः तन्नः किं कारणम्। प्रयासमात्रत्वात्। प्रयासमात्रमेतत् अर्थापत्तिरनैकान्तिकीति? `अहिंसा धर्मः' इत्युक्ते अर्थापत्त्या `हिंसा अधर्मः' इति न सिद्ध्यति। सिद्ध्यत्येव। असति मेघे न वृष्टिरित्युक्ते सति मेघे वृष्टिरित्यत्रापि सत्येव मेघे इतिनास्तिदोषः।<br> | |||
<p class="HindiSentence">= प्रश्न-मेघोंके होनेपर भी कदाचित् वृष्टि नहीं होती है, इसलिए अर्थापत्ति अनैकान्तिकी है? उत्तर-नहीं, क्योंकि, इस प्रकार अर्थापत्तिकी अनैकान्तिकी सिद्ध करनेका यह आपका प्रयास मात्र है। `अहिंसा धर्म है' ऐसो कहनेपर अर्थापत्तिसे ही क्या यह सिद्ध नहीं हो जाता कि `हिंसा अधर्म है'? होता ही है। कभी मेघके होनेपर ही वृष्टिके न देखे जानेसे इतना ही कह सकते हैं, कि वृष्टि `मेघके होनेपर ही होगी' अभावमें नहीं।</p> | |||
<OL start=3 class="HindiNumberList"> <LI> अर्थापत्तिका श्रुतज्ञानमें अन्तर्भाव </LI> </OL> | |||
[[राजवार्तिक | राजवार्तिक]] अध्याय संख्या १/२०/१५/७८/२३ एतेषामप्यर्थापत्त्यादीनाम् अनुक्तानामनुमानसमानमिति पूर्ववत् श्रुतान्तर्भावः।<br> | |||
<p class="HindiSentence">= न कहे गये जो अर्थापत्ति आदि प्रमाण हैं उन सबका, अनुमान समान होनेके कारण श्रुतज्ञानमें अन्तर्भाव हो जाता है।</p> | |||
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Revision as of 01:44, 8 May 2009
राजवार्तिक अध्याय संख्या ६/९/६/५१६/९ यथा हि असति हि मेघे वृष्टिर्नास्तीत्युक्ते अर्थादापन्नं सति मेघे वृष्टिस्तीति।
= जैसे `मेघके अभावमें वृष्टि नहीं होती' ऐसा कहने पर अर्थापत्तिसे ही जाना जाता है कि मेघके होनेपर वृष्टि होती है।
- अर्थापत्तिमें अनैकान्तिक दोषका निरास
राजवार्तिक अध्याय संख्या ६/९/६/५१६/१० सत्यपि मेघे कदाचिद्वृष्टिर्नास्तीत्यर्थापत्तिरनैकान्तिकीतिः तन्नः किं कारणम्। प्रयासमात्रत्वात्। प्रयासमात्रमेतत् अर्थापत्तिरनैकान्तिकीति? `अहिंसा धर्मः' इत्युक्ते अर्थापत्त्या `हिंसा अधर्मः' इति न सिद्ध्यति। सिद्ध्यत्येव। असति मेघे न वृष्टिरित्युक्ते सति मेघे वृष्टिरित्यत्रापि सत्येव मेघे इतिनास्तिदोषः।
= प्रश्न-मेघोंके होनेपर भी कदाचित् वृष्टि नहीं होती है, इसलिए अर्थापत्ति अनैकान्तिकी है? उत्तर-नहीं, क्योंकि, इस प्रकार अर्थापत्तिकी अनैकान्तिकी सिद्ध करनेका यह आपका प्रयास मात्र है। `अहिंसा धर्म है' ऐसो कहनेपर अर्थापत्तिसे ही क्या यह सिद्ध नहीं हो जाता कि `हिंसा अधर्म है'? होता ही है। कभी मेघके होनेपर ही वृष्टिके न देखे जानेसे इतना ही कह सकते हैं, कि वृष्टि `मेघके होनेपर ही होगी' अभावमें नहीं।
- अर्थापत्तिका श्रुतज्ञानमें अन्तर्भाव
राजवार्तिक अध्याय संख्या १/२०/१५/७८/२३ एतेषामप्यर्थापत्त्यादीनाम् अनुक्तानामनुमानसमानमिति पूर्ववत् श्रुतान्तर्भावः।
= न कहे गये जो अर्थापत्ति आदि प्रमाण हैं उन सबका, अनुमान समान होनेके कारण श्रुतज्ञानमें अन्तर्भाव हो जाता है।