कालानुयोग - संयम मार्गणा: Difference between revisions
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Revision as of 22:39, 22 July 2020
8. <a name="3.8" id="3.8"></a>संयम मार्गणा—
मार्गणा |
गुणस्थान |
नाना जीवापेक्षया |
एक जीवापेक्षया |
|||||||||||
प्रमाण |
जघन्य |
विशेष |
उत्कृष्ट |
विशेष |
प्रमाण |
जघन्य |
विशेष |
उत्कृष्ट |
विशेष |
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नं.1 |
नं.2 |
नं.1 |
नं.3 |
|||||||||||
|
||||||||||||||
संयम सामान्य |
|
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33-34 |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
|
148-149 |
अन्तर्मु. |
संयमी से असंयमी |
8 वर्ष कम 1 पूर्व कोड़ |
8 वर्ष की आयु में संयम धार उत्कृष्ट मनुष्य आयु पर्यन्त संयम सहित रहे |
|
सामायिक छेदो. |
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33-34 |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
|
151-152 |
1 समय |
उपशम श्रेणी से उतरते हुए मृत्यु |
8 वर्ष कम 1 पूर्व कोड़ |
8 वर्ष की आयु में संयम धार उत्कृष्ट मनुष्य आयु पर्यन्त संयम सहित रहे |
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परिहार विशुद्धि |
|
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33-34 |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
|
148-149 |
अन्तर्मु. |
|
38 वर्ष कम 1 पूर्व कोड़ |
सर्व लघु काल 8 वर्ष में संयम धार 30 साल पश्चात् तीर्थंकर के पादमूल में प्रत्याख्यान पूर्व को पढ़कर परिहार विशुद्धि संयत हुआ। |
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सूक्ष्म साम्पराय |
उप. |
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35-37 |
1 समय |
1 जीववत् |
अन्तर्मु. |
जघन्यवत् प्रवाह |
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154-155 |
1 समय |
प्रथम समय प्रवेश द्वितीय समय मरण |
अन्तर्मुहूर्त |
इससे अधिक न रहे |
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क्षप. |
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33-34 |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
|
156-157 |
अन्तर्मु. |
मरण का यहा̐ अभाव है |
अन्तर्मुहूर्त |
|
|
यथाख्यात |
उप. |
|
35-37 |
1 समय |
1 जीववत् |
अन्तर्मु. |
जघन्यवत् प्रवाह |
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159-160 |
1 समय |
प्रथम समय प्रवेश द्वितीय समय मरण |
अन्तर्मुहूर्त |
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क्षप. |
|
33-34 |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
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161-162 |
अन्तर्मु. |
मरण का अभाव |
8 वर्ष कम 1 पूर्व कोड़ अन्त. |
संयम सामान्यवत् पर यथा योग्य अन्त.पश्चात् यथाख्यात धारण करे |
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संयतासंयत |
|
|
33-34 |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
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148-149 |
अन्तर्मुहूर्त |
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अन्तर्मु.कम 1 पूर्व कोड़ |
सम्मूर्च्छिम तिर्यंच मेंढकादि की अपेक्षा |
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असंयत (अभ.) |
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33-34 |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
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164 |
— |
अनादि अनन्त |
— |
— |
|
असंयत (भव्य) |
|
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33-34 |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
|
165-166 |
सादि सान्त |
संयत से असंयत हो पुन: संयत |
अनादि सान्त |
प्रथम बार संयम धारे तो |
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(सादि सान्त) |
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33-34 |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
|
167-168 |
अन्तर्मु. |
संयत से असंयत हो पुन: संयत |
अर्ध.पु.परि. |
इतने काल मिथ्यात्व में रहकर पुन: सं. |
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संयम सामान्य |
6-14 |
269 |
— |
— |
मूलओघवत् |
— |
— |
269 |
— |
— |
मूलोघवत् |
— |
— |
सामायिक छेदो. |
6-9 |
270 |
— |
— |
मूलोघवत् |
— |
— |
270 |
— |
— |
मूलोघवत् |
— |
— |
परिहार विशुद्धि |
6-7 |
271 |
|
|
मूलोघवत् |
|
|
271 |
|
|
मूलोघवत् |
|
|
सूक्ष्म साम्पराय उप.क्षप. |
272 |
|
|
मूलोघवत् |
मूलोघवत् |
|
272 |
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|
मूलोघवत् |
|
|
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यथाख्यात |
13-14 |
273 |
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|
मूलोघवत् |
|
|
273 |
|
|
मूलोघवत् |
|
|
संयतासंयत |
5 |
274 |
|
|
मूलोघवत् |
|
|
274 |
|
|
मूलोघवत् |
|
|
असंयत |
1-4 |
275 |
|
|
मूलोघवत् |
|
|
275 |
|
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मूलोघवत् |
|
|