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| == सिद्धांतकोष से ==
| | उत्कलिका ग्राम के समीप ‘मणवल्ली’ ग्राम में आपने आचार्य शुभनन्दि व रविनन्दि से ज्ञान व उपदेश प्राप्त करके षट्खण्ड के प्रथम 5 खण्डों पर 60000 श्लोक प्रमाण ‘व्याख्या प्रज्ञप्ति’ नाम की टीका तथा कषाय पाहुड़ की भी एक ‘उच्चारणा’ नाम की संक्षिप्त टीका लिखी । पीछे वाटग्राम (बड़ौदा) के जिनालय में इस टीका के दर्शन करके श्री वीरसेनस्वामी ने षट्खण्ड के पाँच खण्डों पर धवला नाम की टीका रची थी । समय - ई.श. 1 (विशेष देखें [[ परिशिष्ट ]]) । |
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| इन्द्रनन्दि कृत श्रुतावतार श्लोक नं.171-176 के अनुसार भागीरथी और कृष्णा नदी के मध्य अर्थात् धारवाड़ या बेलगांव जिले के अन्तर्गत उत्कलिका नगरी के समीप ‘मगणवल्ली’ ग्राम में आचार्य शुभनन्दि तथा शिवनन्दि (ई.श.2-3) से सिद्धान्त का श्रवण करके आपने कषायपाहुड़ सहित, षट्खंडागम के आद्य पाँच खण्डों पर 60,000 श्लोक प्रमाण और उसके महाबन्ध नामक षष्टम खण्ड पर 8000 श्लोक प्रमाण व्याख्या लिखी थी । (जै./1/271), (ती./2/95) । इन्होंने षट्खंडागम से ‘महाबन्ध’ नामक षष्टम खंड को पृथक् करके उसके स्थान पर उपर्युक्त ‘व्याख्या प्रज्ञप्ति’ का संक्षिप्त रूप उसमें मिला दिया था । समय–इनके गुरु शुभनन्दि को वी.नि.श.5 का विद्वान कल्पित करके डॉ. नेमिचन्द्र ने यद्यपि वी.नि.श.5-6 (ई.श.1) में प्रतिष्ठित किया है, परन्तु इन्द्रनन्दि कृत श्रुतावतार के अनुसार ये वि.श.7 (ई.श.6-7) के विद्वान हैं । (जै./1/386) । <br />
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| [[Category: ब]]
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| == पुराणकोष से ==
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| उत्कलिका ग्राम के समीप ‘मणवल्ली’ ग्राम में आपने आचार्य शुभनन्दि व रविनन्दि से ज्ञान व उपदेश प्राप्त करके षट्खण्ड के प्रथम 5 खण्डों पर 60000 श्लोक प्रमाण ‘व्याख्या प्रज्ञप्ति’ नाम की टीका तथा कषाय पाहुड़ की भी एक ‘उच्चारणा’ नाम की संक्षिप्त टीका लिखी । पीछे वाटग्राम (बड़ौदा) के जिनालय में इस टीका के दर्शन करके श्री वीरसेनस्वामी ने षट्खण्ड के पाँच खण्डों पर धवला नाम की टीका रची थी । समय - ई.श. 1 (विशेष देखें [[ परिशिष्ट ]]) ।
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Revision as of 22:42, 22 July 2020
उत्कलिका ग्राम के समीप ‘मणवल्ली’ ग्राम में आपने आचार्य शुभनन्दि व रविनन्दि से ज्ञान व उपदेश प्राप्त करके षट्खण्ड के प्रथम 5 खण्डों पर 60000 श्लोक प्रमाण ‘व्याख्या प्रज्ञप्ति’ नाम की टीका तथा कषाय पाहुड़ की भी एक ‘उच्चारणा’ नाम की संक्षिप्त टीका लिखी । पीछे वाटग्राम (बड़ौदा) के जिनालय में इस टीका के दर्शन करके श्री वीरसेनस्वामी ने षट्खण्ड के पाँच खण्डों पर धवला नाम की टीका रची थी । समय - ई.श. 1 (विशेष देखें परिशिष्ट ) ।
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