विरत: Difference between revisions
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<p> सर्वार्थसिद्धि/9/45/458/10 <span class="SanskritText">स एवं पुनः प्रत्याख्यानावरणक्षयोपशमकारणपरिणामविशुद्धियोगाद् विरतव्यपदेशभाक् सन्...।</span> =<span class="HindiText"> वह (सम्यग्दृष्टि श्रावक) ही प्रत्याख्यानावरण के क्षयोपशम निमित्तक परिणामों की विशुद्धिवश विरत (संयत) संज्ञा को प्राप्त होता है। </span><br /> | |||
राजवार्तिक/9/45/-/636/8 <span class="SanskritText">पुनर्निर्द्दिष्टः ततो विशुद्धिप्रकर्षात् पुनरपि सर्वगृहस्थसंगविप्रमुक्तो निर्ग्रन्थतामनुभवन् विरत इत्यभिलप्यते।</span> = <span class="HindiText">फिर (वह श्रावक) विशुद्धि प्रकर्ष से समस्त गृहस्थ सम्बन्धी परिग्रहों से मुक्त हो निर्ग्रन्थता का अनुभव कर महाव्रती बन जाता है। उसी को ‘विरत’ ऐसा कहा जाता है।–विशेष देखें [[ संयत ]]। </span></p> | |||
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Revision as of 22:44, 22 July 2020
सर्वार्थसिद्धि/9/45/458/10 स एवं पुनः प्रत्याख्यानावरणक्षयोपशमकारणपरिणामविशुद्धियोगाद् विरतव्यपदेशभाक् सन्...। = वह (सम्यग्दृष्टि श्रावक) ही प्रत्याख्यानावरण के क्षयोपशम निमित्तक परिणामों की विशुद्धिवश विरत (संयत) संज्ञा को प्राप्त होता है।
राजवार्तिक/9/45/-/636/8 पुनर्निर्द्दिष्टः ततो विशुद्धिप्रकर्षात् पुनरपि सर्वगृहस्थसंगविप्रमुक्तो निर्ग्रन्थतामनुभवन् विरत इत्यभिलप्यते। = फिर (वह श्रावक) विशुद्धि प्रकर्ष से समस्त गृहस्थ सम्बन्धी परिग्रहों से मुक्त हो निर्ग्रन्थता का अनुभव कर महाव्रती बन जाता है। उसी को ‘विरत’ ऐसा कहा जाता है।–विशेष देखें संयत ।
एक ग्रह–देखें ग्रह ।