विद्यानंदि: Difference between revisions
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Revision as of 15:19, 19 August 2020
- आप मगधराज अवनिपाल की सभा के एक प्रसिद्ध विद्वान् थे। पूर्व नाम पात्रकेसरी था। वैदिक धर्मानुयायी थे, परन्तु पार्श्वनाथ भगवान् के मन्दिर में चारित्रभूषण नामक मुनि के मुख से समन्तभद्र रचित देवागम स्त्रोत का पाठ सुनकर जैन धर्मानुयायी हो गये थे। आप अकलंकभट्ट की ही आम्नाय में उनके कुछ ही काल पश्चात् हुए थे। आपकी अनेकों रचनाएँ उपलब्ध हैं जो सभी न्याय व तर्क से पूर्ण हैं। कृतियाँ–
- प्रमाणपरीक्षा,
- प्रमाणमीमांसा,
- प्रमाणनिर्णय,
- पत्रपरीक्षा,
- आप्तपरीक्षा,
- सत्यशासन परीक्षा,
- जल्पनिर्णय,
- नयविवरण,
- युक्त्युनुशासन,
- अष्टसहस्रो,
- तत्त्वार्थ श्लोक वार्तिक,
- विद्यानन्द महोदय,
- बुद्धेशभवन व्याख्यान। समय–वि. स. 832-897 (ई. 775-840)। (जै./2/336)। (ती./2/352-353)।
- नन्दिसंघ बलात्कारगण की सूरत शाखा में आप देवेन्द्रकीर्ति के शिष्य और तत्त्वार्थ वृत्तिकार श्रुतसागर व मल्लिभूषण के गुरु थे। कृति-सुदर्शन चरित्र। समय–(वि. 1499-1538) (ई. 1442-1481)। (ती./3/369, 372)।
- भट्टारक विशालकीर्ति के शिष्य। ई. 1541 में इनका स्वर्गवास हुआ था। (जै./1/474)।
- आपका उल्लेख हुमुच्च के शिलालेख व वर्द्धमान मनीन्द्र के दशभक्त्यादि महाशास्त्र में आता है। आप सांगानेर वाले देवकीर्ति भट्टारक के शिष्य थे। समय–वि. 1647-1697 (ई. 1590-1640)। (स्याद्वाद सिद्धि/प्र.18/पं. दरबारी लाल); (भद्रबाहु चरित्र/प्र. 14/पं. उदयलाल)।