अग्निकुमार: Difference between revisions
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<p> दस प्रकार के भवनवासी देवों में नौवें प्रकार के देव । ये सदैव जाज्वल्यमान होकर पाताल में रहते हैं । ये देव समवसरण के सातवें कक्ष में बैठते हैं । <span class="GRef"> महापुराण 62.455, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 2.82, 4.64-65 </span>अग्निकेतु― | <p> दस प्रकार के भवनवासी देवों में नौवें प्रकार के देव । ये सदैव जाज्वल्यमान होकर पाताल में रहते हैं । ये देव समवसरण के सातवें कक्ष में बैठते हैं । <span class="GRef"> महापुराण 62.455, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 2.82, 4.64-65 </span>अग्निकेतु― गंधवती नगरी के राजपुरोहित का पुत्र, सुकेतु का भाई । सुकेतु के विवाहित हो जाने पर दोनों भाइयों को पृथक-पृथक् की गयी शयन-व्यवस्था से दु:खी होकर सुकेतु ने मुनि अनंतवीय से दीक्षा धारण कर ली तथा भाई के वियोग से दु:खी होकर यह तापस बन गया । अंत में सुकेतु ने अपने गुरु से उपाय जानकर इसे भी दिगंबर मुनि बना लिया । <span class="GRef"> महापुराण 41.115-136 </span></p> | ||
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Revision as of 16:16, 19 August 2020
दस प्रकार के भवनवासी देवों में नौवें प्रकार के देव । ये सदैव जाज्वल्यमान होकर पाताल में रहते हैं । ये देव समवसरण के सातवें कक्ष में बैठते हैं । महापुराण 62.455, हरिवंशपुराण 2.82, 4.64-65 अग्निकेतु― गंधवती नगरी के राजपुरोहित का पुत्र, सुकेतु का भाई । सुकेतु के विवाहित हो जाने पर दोनों भाइयों को पृथक-पृथक् की गयी शयन-व्यवस्था से दु:खी होकर सुकेतु ने मुनि अनंतवीय से दीक्षा धारण कर ली तथा भाई के वियोग से दु:खी होकर यह तापस बन गया । अंत में सुकेतु ने अपने गुरु से उपाय जानकर इसे भी दिगंबर मुनि बना लिया । महापुराण 41.115-136