अवगाहनत्व: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
(Imported from text file) |
||
Line 1: | Line 1: | ||
<p> सिद्ध जीव के आठ गुणों में एक गुण । गहन वन में तप करने वाले मुनि को प्राप्य यह गुण तीनों लोकों के जीवों को स्थान देने में समर्थ होता है । <span class="GRef"> महापुराण 20.222-223, 39.187 </span>देखें [[ सिद्ध अवग्रह ]]― मतिज्ञान के चार भेदों में पहला भेद― पांच | <p> सिद्ध जीव के आठ गुणों में एक गुण । गहन वन में तप करने वाले मुनि को प्राप्य यह गुण तीनों लोकों के जीवों को स्थान देने में समर्थ होता है । <span class="GRef"> महापुराण 20.222-223, 39.187 </span>देखें [[ सिद्ध अवग्रह ]]― मतिज्ञान के चार भेदों में पहला भेद― पांच इंद्रियों और मन इन छ: से होने वाला वस्तु का प्रथम दर्शन और उस दर्शन से होने वाला वस्तु का सामान्य बोध । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 10.146-147 </span>दे मतिज्ञान</p> | ||
Revision as of 16:18, 19 August 2020
सिद्ध जीव के आठ गुणों में एक गुण । गहन वन में तप करने वाले मुनि को प्राप्य यह गुण तीनों लोकों के जीवों को स्थान देने में समर्थ होता है । महापुराण 20.222-223, 39.187 देखें सिद्ध अवग्रह ― मतिज्ञान के चार भेदों में पहला भेद― पांच इंद्रियों और मन इन छ: से होने वाला वस्तु का प्रथम दर्शन और उस दर्शन से होने वाला वस्तु का सामान्य बोध । हरिवंशपुराण 10.146-147 दे मतिज्ञान