आचारांग: Difference between revisions
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<p> द्वादशांगरूप | <p> द्वादशांगरूप श्रुतस्कंध का प्रथम अंग । इसमें अठारह हजार पद है जिनमें मुनियों के आचार का वर्णन किया गया है । <span class="GRef"> महापुराण 34. 133-135, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 2.92, 10.27 </span></p> | ||
Revision as of 16:19, 19 August 2020
== सिद्धांतकोष से ==
द्रव्य श्रुतज्ञानका एक भेद - देखें श्रुतज्ञान - III।
पुराणकोष से
द्वादशांगरूप श्रुतस्कंध का प्रथम अंग । इसमें अठारह हजार पद है जिनमें मुनियों के आचार का वर्णन किया गया है । महापुराण 34. 133-135, हरिवंशपुराण 2.92, 10.27