कांचनमाला: Difference between revisions
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<p> विजयार्ध पर्वत की दक्षिणश्रेणी के मेघकूट नगर के विद्याधरों के राजा कालसंवर की रानी । इसने शिला के नोचे दबे हुए शिशु प्रद्युम्न को नगर में लाकर उसका देवदत्त नाम रखा था । बड़ा होने पर एक समय यह प्रद्युम्न को देखकर कामासक्त भी हो गयी थी । इसने प्रद्युम्न से सहवास हेतु प्रार्थना भी की थी | <p> विजयार्ध पर्वत की दक्षिणश्रेणी के मेघकूट नगर के विद्याधरों के राजा कालसंवर की रानी । इसने शिला के नोचे दबे हुए शिशु प्रद्युम्न को नगर में लाकर उसका देवदत्त नाम रखा था । बड़ा होने पर एक समय यह प्रद्युम्न को देखकर कामासक्त भी हो गयी थी । इसने प्रद्युम्न से सहवास हेतु प्रार्थना भी की थी किंतु जब उसे यह ज्ञात हुआ कि यह व्रती है और उसके सहवास के योग्य नहीं है तब उसने उसे लांछन लगाकर पति से कहा कि यह कुचेष्टायुक्त है । कालसंवर ने उसकी बात का विश्वास करके प्रद्युम्न को मारने की योजना बनायी पर वह सफल नहीं हो सका । <span class="GRef"> महापुराण 72. 54-60, 72-88 </span></p> | ||
Revision as of 16:21, 19 August 2020
विजयार्ध पर्वत की दक्षिणश्रेणी के मेघकूट नगर के विद्याधरों के राजा कालसंवर की रानी । इसने शिला के नोचे दबे हुए शिशु प्रद्युम्न को नगर में लाकर उसका देवदत्त नाम रखा था । बड़ा होने पर एक समय यह प्रद्युम्न को देखकर कामासक्त भी हो गयी थी । इसने प्रद्युम्न से सहवास हेतु प्रार्थना भी की थी किंतु जब उसे यह ज्ञात हुआ कि यह व्रती है और उसके सहवास के योग्य नहीं है तब उसने उसे लांछन लगाकर पति से कहा कि यह कुचेष्टायुक्त है । कालसंवर ने उसकी बात का विश्वास करके प्रद्युम्न को मारने की योजना बनायी पर वह सफल नहीं हो सका । महापुराण 72. 54-60, 72-88