कुलंधर: Difference between revisions
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<p id="1"> (1) रजोवली नगरी का निवासी एक कुलपुत्रक । इसी नगरी का निवासी पुष्पभूति इसका मित्र था । कारणवशात् इनमें शत्रुता उत्पन्न हो गयी फलत: यह पुष्पभूति को मारना चाहता था, | <p id="1"> (1) रजोवली नगरी का निवासी एक कुलपुत्रक । इसी नगरी का निवासी पुष्पभूति इसका मित्र था । कारणवशात् इनमें शत्रुता उत्पन्न हो गयी फलत: यह पुष्पभूति को मारना चाहता था, किंतु मुनि से धर्मोंपदेश सुनकर शांत हो गया था । राजा ने परीक्षा लेकर इसे मंडलेश्वर बना दिया था । पुष्पभूति भी इसके वैभव को देखकर श्रावक हो गया और मरकर तीसरे स्वर्ग में देव हुआ । यह भी मरकर इसी स्वर्ग में गया । <span class="GRef"> पद्मपुराण 5.124-128 </span></p> | ||
<p id="2">(2) मथुरा नगरी का निवासी एक ब्राह्मण । यह रूपवान् तो था | <p id="2">(2) मथुरा नगरी का निवासी एक ब्राह्मण । यह रूपवान् तो था किंतु शीलवान् न था । एक बार राजा के न रहने पर इसे देखकर कामासक्त हुई उसकी रानी ने सखी के द्वारा इसे अपने निकट बुलाया । यह रानी के पास आसन पर बैठा ही था कि राजा वहाँ आ गया और उसकी कुचेष्टा को देखकर रानी के बहुत कहने पर भी उसने इसे नहीं छोड़ा । राज-सेवक इसे निग्रहार्थ नगर के बाहर ले जा रहे थे कि इसने किसी साधु को देखकर नमन किया और निर्ग्रंथ साधु बनने की स्वीकृति भी साधु को दी । साधु की प्रेरणा से इसे छोड़ दिया गया और यह भी बंधनों से मुक्त होते ही श्रमण हो गया । इसने कठिन तपश्चर्या की और मरने पर यह सौधर्म स्वर्ग के ऋतु विमान का स्वामी हुआ । <span class="GRef"> पद्मपुराण 91. 10-18 </span></p> | ||
Revision as of 16:21, 19 August 2020
(1) रजोवली नगरी का निवासी एक कुलपुत्रक । इसी नगरी का निवासी पुष्पभूति इसका मित्र था । कारणवशात् इनमें शत्रुता उत्पन्न हो गयी फलत: यह पुष्पभूति को मारना चाहता था, किंतु मुनि से धर्मोंपदेश सुनकर शांत हो गया था । राजा ने परीक्षा लेकर इसे मंडलेश्वर बना दिया था । पुष्पभूति भी इसके वैभव को देखकर श्रावक हो गया और मरकर तीसरे स्वर्ग में देव हुआ । यह भी मरकर इसी स्वर्ग में गया । पद्मपुराण 5.124-128
(2) मथुरा नगरी का निवासी एक ब्राह्मण । यह रूपवान् तो था किंतु शीलवान् न था । एक बार राजा के न रहने पर इसे देखकर कामासक्त हुई उसकी रानी ने सखी के द्वारा इसे अपने निकट बुलाया । यह रानी के पास आसन पर बैठा ही था कि राजा वहाँ आ गया और उसकी कुचेष्टा को देखकर रानी के बहुत कहने पर भी उसने इसे नहीं छोड़ा । राज-सेवक इसे निग्रहार्थ नगर के बाहर ले जा रहे थे कि इसने किसी साधु को देखकर नमन किया और निर्ग्रंथ साधु बनने की स्वीकृति भी साधु को दी । साधु की प्रेरणा से इसे छोड़ दिया गया और यह भी बंधनों से मुक्त होते ही श्रमण हो गया । इसने कठिन तपश्चर्या की और मरने पर यह सौधर्म स्वर्ग के ऋतु विमान का स्वामी हुआ । पद्मपुराण 91. 10-18