योगसार - अजीव-अधिकार गाथा 62: Difference between revisions
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<p><b> अन्वय </b>:- अत्र पुद्गला: मूर्तिन्त:, (शेषा:) सर्वे (अजीवा:) अमूर्ता: निष्क्रिया: सन्ति । रूप-गन्ध-रस-स्पर्श-व्यवस्था मूर्ति: उच्यते । </p> | <p class="GathaAnvaya"><b> अन्वय </b>:- अत्र पुद्गला: मूर्तिन्त:, (शेषा:) सर्वे (अजीवा:) अमूर्ता: निष्क्रिया: सन्ति । रूप-गन्ध-रस-स्पर्श-व्यवस्था मूर्ति: उच्यते । </p> | ||
<p><b> सरलार्थ </b>:- धर्मादि इन पाँचों अजीव द्रव्यों में पुद्गल द्रव्य मूर्तिक है । शेष धर्म, अधर्म, आकाश एवं काल ये चारों द्रव्य अमूर्तिक और निष्क्रिय हैं । वर्ण-गंध-रस-स्पर्श की व्यवस्था को मूर्तिक कहते हैं । </p> | <p class="GathaArth"><b> सरलार्थ </b>:- धर्मादि इन पाँचों अजीव द्रव्यों में पुद्गल द्रव्य मूर्तिक है । शेष धर्म, अधर्म, आकाश एवं काल ये चारों द्रव्य अमूर्तिक और निष्क्रिय हैं । वर्ण-गंध-रस-स्पर्श की व्यवस्था को मूर्तिक कहते हैं । </p> | ||
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Latest revision as of 10:12, 15 May 2009
अजीवद्रव्यों का विभाजन एवं मूर्तित्व का लक्षण -
अर्मूता निष्क्रिया: सर्वे मूर्तिन्तोsत्र पुद्गला: ।
रूप-गन्ध-रस-स्पर्श-व्यवस्था मूर्तिरुच्यते ।।६२।।
अन्वय :- अत्र पुद्गला: मूर्तिन्त:, (शेषा:) सर्वे (अजीवा:) अमूर्ता: निष्क्रिया: सन्ति । रूप-गन्ध-रस-स्पर्श-व्यवस्था मूर्ति: उच्यते ।
सरलार्थ :- धर्मादि इन पाँचों अजीव द्रव्यों में पुद्गल द्रव्य मूर्तिक है । शेष धर्म, अधर्म, आकाश एवं काल ये चारों द्रव्य अमूर्तिक और निष्क्रिय हैं । वर्ण-गंध-रस-स्पर्श की व्यवस्था को मूर्तिक कहते हैं ।