गुणपाल: Difference between revisions
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<p id="1"> (1) पुष्कलावती देश की | <p id="1"> (1) पुष्कलावती देश की पुंडरीकिणी नगरी का नृप । यह वसुपाल का पिता था । अपने प्रिय सेठ कुबेरप्रिय की पुत्री वारिषेणा के साथ इसने अपने पुत्र वसुपाल का विवाह किया था । संसार से विरक्त होकर इसने वसुपाल को राज्य दे दिया और श्रीपाल को युवराज बनाया इसके पश्चात् यह सेठ कुबेरप्रिय तथा अन्य अनेक राजाओं के साथ दीक्षित हो गया । कठोर तपस्या करके यह सुरगिरि पर्वत पर केवली हुआ । <span class="GRef"> महापुराण 46.289, 298, 332-341, 47. 3.6 </span></p> | ||
<p id="2">(2) | <p id="2">(2) पुंडरीकिणी नगरी के चक्रवर्ती श्रीपाल और उसकी रानी जयावती का पुत्र । इस पुत्र के उत्पन्न होते ही श्रीपाल की आयुधशाला मे चक्ररत्न भी प्रकट हुआ था । <span class="GRef"> महापुराण 47.170-172 </span></p> | ||
<p id="3">(3) राजपुर नगर के सेठ वृषभदत्त का दीक्षागुरु । <span class="GRef"> महापुराण 75.314 </span></p> | <p id="3">(3) राजपुर नगर के सेठ वृषभदत्त का दीक्षागुरु । <span class="GRef"> महापुराण 75.314 </span></p> | ||
<p id="4">(4) विदेशक्षेत्र के एक तीर्थंकर । श्रीपाल उनके समवसरण में गया था । <span class="GRef"> महापुराण 47.160-163 </span></p> | <p id="4">(4) विदेशक्षेत्र के एक तीर्थंकर । श्रीपाल उनके समवसरण में गया था । <span class="GRef"> महापुराण 47.160-163 </span></p> |
Revision as of 16:22, 19 August 2020
(1) पुष्कलावती देश की पुंडरीकिणी नगरी का नृप । यह वसुपाल का पिता था । अपने प्रिय सेठ कुबेरप्रिय की पुत्री वारिषेणा के साथ इसने अपने पुत्र वसुपाल का विवाह किया था । संसार से विरक्त होकर इसने वसुपाल को राज्य दे दिया और श्रीपाल को युवराज बनाया इसके पश्चात् यह सेठ कुबेरप्रिय तथा अन्य अनेक राजाओं के साथ दीक्षित हो गया । कठोर तपस्या करके यह सुरगिरि पर्वत पर केवली हुआ । महापुराण 46.289, 298, 332-341, 47. 3.6
(2) पुंडरीकिणी नगरी के चक्रवर्ती श्रीपाल और उसकी रानी जयावती का पुत्र । इस पुत्र के उत्पन्न होते ही श्रीपाल की आयुधशाला मे चक्ररत्न भी प्रकट हुआ था । महापुराण 47.170-172
(3) राजपुर नगर के सेठ वृषभदत्त का दीक्षागुरु । महापुराण 75.314
(4) विदेशक्षेत्र के एक तीर्थंकर । श्रीपाल उनके समवसरण में गया था । महापुराण 47.160-163
(5) राजा लोकपाल का पुत्र और प्रियदत्ता की पुत्री कुबेरश्री का पति । महापुराण 46.243-246