योगसार - अजीव-अधिकार गाथा 100: Difference between revisions
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<p><b> अन्वय </b>:- अचेतने देहे स्तुते ज्ञानलक्षण: (जीव:) स्तुत: न अस्ति यथा कोशे वर्णिते नूनं सायकस्य वर्णना न अस्ति । </p> | <p class="GathaAnvaya"><b> अन्वय </b>:- अचेतने देहे स्तुते ज्ञानलक्षण: (जीव:) स्तुत: न अस्ति यथा कोशे वर्णिते नूनं सायकस्य वर्णना न अस्ति । </p> | ||
<p><b> सरलार्थ </b>:- अचेतन देह की स्तुति करने पर जीव की स्तुति नहीं होती; क्योंकि म्यान के सौंदर्य का वर्णन करने से म्यान के भीतर रहनेवाली तलवार का वर्णन नहीं होता । </p> | <p class="GathaArth"><b> सरलार्थ </b>:- अचेतन देह की स्तुति करने पर जीव की स्तुति नहीं होती; क्योंकि म्यान के सौंदर्य का वर्णन करने से म्यान के भीतर रहनेवाली तलवार का वर्णन नहीं होता । </p> | ||
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Latest revision as of 10:23, 15 May 2009
देह की स्तुति से आत्मा की स्तुति नहीं होती -
नाचेतने स्तुते देहे स्तुतोsस्ति ज्ञानलक्षण: ।
न कोशे वर्णिते नूनं सायकस्यास्ति वर्णना ।।१००।।
अन्वय :- अचेतने देहे स्तुते ज्ञानलक्षण: (जीव:) स्तुत: न अस्ति यथा कोशे वर्णिते नूनं सायकस्य वर्णना न अस्ति ।
सरलार्थ :- अचेतन देह की स्तुति करने पर जीव की स्तुति नहीं होती; क्योंकि म्यान के सौंदर्य का वर्णन करने से म्यान के भीतर रहनेवाली तलवार का वर्णन नहीं होता ।