योगसार - आस्रव-अधिकार गाथा 119: Difference between revisions
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<p><b> अन्वय </b>:- (पूर्वोक्तम्) अयं परिणामस्य कार्य-कारण-भाव: (जीवस्य) कर्मणा (सह विद्यते) । एष: (कार्य-कारण-भाव:) कर्म-चेतनयो: कदाचन न विद्यते । </p> | <p class="GathaAnvaya"><b> अन्वय </b>:- (पूर्वोक्तम्) अयं परिणामस्य कार्य-कारण-भाव: (जीवस्य) कर्मणा (सह विद्यते) । एष: (कार्य-कारण-भाव:) कर्म-चेतनयो: कदाचन न विद्यते । </p> | ||
<p><b> सरलार्थ </b>:- संसारी जीव के मोह-राग-द्वेषादि परिणामों के साथ ज्ञानावरणादि आठ कर्मो का निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध विद्यमान है; परंतु कार्माणवर्गणारूप पुद्गलद्रव्य का अनादि-निधन/ त्रिकाली चेतन स्वभाव के साथ निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध नहीं | <p class="GathaArth"><b> सरलार्थ </b>:- संसारी जीव के मोह-राग-द्वेषादि परिणामों के साथ ज्ञानावरणादि आठ कर्मो का निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध विद्यमान है; परंतु कार्माणवर्गणारूप पुद्गलद्रव्य का अनादि-निधन/ त्रिकाली चेतन स्वभाव के साथ निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध नहीं है । </p> | ||
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निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध मात्र दो पर्यायों में होता है -
कार्य-कारण-भावोsयं परिणामस्य कर्मणा ।
कर्म-चेतनयोरेष विद्यते न कदाचन ।।११९।।
अन्वय :- (पूर्वोक्तम्) अयं परिणामस्य कार्य-कारण-भाव: (जीवस्य) कर्मणा (सह विद्यते) । एष: (कार्य-कारण-भाव:) कर्म-चेतनयो: कदाचन न विद्यते ।
सरलार्थ :- संसारी जीव के मोह-राग-द्वेषादि परिणामों के साथ ज्ञानावरणादि आठ कर्मो का निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध विद्यमान है; परंतु कार्माणवर्गणारूप पुद्गलद्रव्य का अनादि-निधन/ त्रिकाली चेतन स्वभाव के साथ निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध नहीं है ।