जिनेश्वर: Difference between revisions
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<p id="1"> (1) तीर्थंकर, ये धर्मचक्र के प्रवर्तक होते हैं । इनकी संख्या चौबीस रहती है । अवसर्पिणी काल में हुए चौबीस जिन ये है—ऋषभ, अजित, शंभव, | <p id="1"> (1) तीर्थंकर, ये धर्मचक्र के प्रवर्तक होते हैं । इनकी संख्या चौबीस रहती है । अवसर्पिणी काल में हुए चौबीस जिन ये है—ऋषभ, अजित, शंभव, अभिनंदन, सुमति, पद्म, सुपार्श्व, चंद्रप्रभ, पुष्पदत्त, शीतल, श्रेयान्, वासुपूज्य, विमल, अनंत, धर्म, शांति, कुंथु, अर, मल्लि, मुनिसुव्रत, नमि, नेमि, पार्श्व और महावीर । <span class="GRef"> पद्मपुराण 5.186, 190, 206, 212-216 </span>आगामी दु:षमा काल में होने वाले चौबीस तीर्थंकर ये हैं― महापद्म, सुरदेव, सुपार्श्व, स्वयंप्रभ, सर्वात्मभूत, देवदेव, प्रभादेय, उदंक, प्रश्नकीर्ति, जयकीर्ति, सुव्रत, अर, पुण्यमूर्ति, निष्कषाय, विपुल, निर्मल, चित्रगुप्त, समाधिगुप्त, स्वयंभू, अनिवर्तक, जय, विमल, दिव्यपाद और अनंतवीर्य । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 60.560 </span></p> | ||
<p id="2">(2) | <p id="2">(2) सौधर्मेंद्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । <span class="GRef"> महापुराण 25.103 </span></p> | ||
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Revision as of 16:23, 19 August 2020
(1) तीर्थंकर, ये धर्मचक्र के प्रवर्तक होते हैं । इनकी संख्या चौबीस रहती है । अवसर्पिणी काल में हुए चौबीस जिन ये है—ऋषभ, अजित, शंभव, अभिनंदन, सुमति, पद्म, सुपार्श्व, चंद्रप्रभ, पुष्पदत्त, शीतल, श्रेयान्, वासुपूज्य, विमल, अनंत, धर्म, शांति, कुंथु, अर, मल्लि, मुनिसुव्रत, नमि, नेमि, पार्श्व और महावीर । पद्मपुराण 5.186, 190, 206, 212-216 आगामी दु:षमा काल में होने वाले चौबीस तीर्थंकर ये हैं― महापद्म, सुरदेव, सुपार्श्व, स्वयंप्रभ, सर्वात्मभूत, देवदेव, प्रभादेय, उदंक, प्रश्नकीर्ति, जयकीर्ति, सुव्रत, अर, पुण्यमूर्ति, निष्कषाय, विपुल, निर्मल, चित्रगुप्त, समाधिगुप्त, स्वयंभू, अनिवर्तक, जय, विमल, दिव्यपाद और अनंतवीर्य । हरिवंशपुराण 60.560
(2) सौधर्मेंद्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । महापुराण 25.103