जंबूद्वीप: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
(Imported from text file) |
||
Line 1: | Line 1: | ||
<ol> | == सिद्धांतकोष से == | ||
<ol> | |||
<li class="HindiText"> यह मध्यलोक का प्रथम द्वीप है (देखो लोक/3/1)। </li> | <li class="HindiText"> यह मध्यलोक का प्रथम द्वीप है (देखो लोक/3/1)। </li> | ||
<li><span class="HindiText"><strong> | <li><span class="HindiText"><strong> जंबूद्वीप नाम की सार्थकता</strong> | ||
</span><br> | </span><br> | ||
सर्वार्थसिद्धि/3/9/212/8 <span class="SanskritText"> कोऽसौ। | सर्वार्थसिद्धि/3/9/212/8 <span class="SanskritText"> कोऽसौ। जंबूद्वीप:। कथं जंबूद्वीप:। जंबूवृक्षोपलक्षितत्वात् । उत्तरकुरूणां मध्ये जंबूवृक्षोऽनादिनिधन: पृथिवीपरिणामोऽकृत्रिम: सपरिवारस्तदुपलक्षितोऽयं द्वीप:।</span> =<span class="HindiText"><strong>प्रश्न</strong>–इसे जंबूद्वीप क्यों कहते हैं ? <strong>उत्तर</strong>–उत्तरकुरु में अनादिनिधन पृथिवीमयी अकृत्रिम और परिवार वृक्षों से युक्त जंबूवृक्ष है, जिसके कारण यह जंबूद्वीप कहलाता है। ( राजवार्तिक/3/7/1/169/14 )। | ||
</span></li> | </span></li> | ||
</ol> | </ol> | ||
<noinclude> | <noinclude> | ||
[[ | [[ जंबूद्रुम | पूर्व पृष्ठ ]] | ||
[[ जंबूद्वीप | [[ जंबूद्वीप निर्देश | अगला पृष्ठ ]] | ||
</noinclude> | </noinclude> | ||
[[Category: ज]] | |||
== पुराणकोष से == | |||
<p id="1"> (1) दो सुर्यों से विभूषित आद्य द्वीप । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 2.1, </span>यह मध्यलोक के मध्यभाग में स्थित चक्राकार, लवणसमुद्र से आवृत, एक लाख योजन विस्तृत, मेरु पर्वत और चौतीस क्षेत्रों (विदेह के बत्तीस एक भरत, एक ऐरावत) से युक्त है । <span class="GRef"> महापुराण 4.48-49, 5.187, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 3.32-33, 37-39, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 2. 1, 5-4-7, 10. 177 </span>इसमें छ: भोगभूमियाँ, आठ जिनालय, अड़सठ भवन (चौतीसों क्षेत्रों में दो-दो (और चौतीस सिंहासन हैं । भरत और ऐरावत क्षेत्र में रजतमय दो विजयार्ध पर्वत है । इन भोगभूमियों में ही देवकुरु और उत्तरकुरु है । इस द्वीप में स्थित भरतक्षेत्र की दक्षिणदिशा मै जिनालयों से युक्त राक्षसद्वीप, महाविदेहक्षेत्र की पश्चिम दिशा में किन्नरद्वीप ऐरावत क्षेत्र की उत्तर दिशा में गंधर्व द्वीप स्थित है । <span class="GRef"> पद्मपुराण 3.40-45 </span>इसकी परिधि तीन लाख सोलह हजार दो सौ सत्ताईस योजन तीन कोस एक सौ अट्ठाईस धनुष और साढ़े तेरह अंगुल प्रमाण तथा घनाकार क्षेत्र सात सौ नब्बे करोड़ छप्पन लाख चौरानवे हजार एक सौ पचास योजन माना गया है । इसमें कुल सात क्षेत्र, एक मेरु, दो कुरु, जंबू और शाल्मालि नामक दो वृक्ष, छ: कुलाचल, कुलाचलों पर स्थित छ: महासरोवर, चौदह महानदियां, बारह विभंगा नदियां, बीस वक्षारगिरि, चौतीस राजधानी, चौतीस रूप्याचल, चौतीस वृषभाचल, अड़सठ गुहाएं, चार गोलाकार नाभिगिरि और तीन हजार सात सौ चालीस विद्याधर राजाओं के नगर विद्यमान हैं । भरतक्षेत्र इसके दक्षिण में और ऐरावत क्षेत्र उत्तर में है । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.2-13 </span></p> | |||
<p id="2">(2) संख्यात द्वीप समुद्रों के आगे एक दूसरा जंबूद्विप । यहाँ भी देवों के नगर है । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.166 </span></p> | |||
<noinclude> | |||
[[ जंबूद्रुम | पूर्व पृष्ठ ]] | |||
[[ जंबूद्वीप निर्देश | अगला पृष्ठ ]] | |||
</noinclude> | |||
[[Category: पुराण-कोष]] | |||
[[Category: ज]] | [[Category: ज]] |
Revision as of 16:23, 19 August 2020
== सिद्धांतकोष से ==
- यह मध्यलोक का प्रथम द्वीप है (देखो लोक/3/1)।
- जंबूद्वीप नाम की सार्थकता
सर्वार्थसिद्धि/3/9/212/8 कोऽसौ। जंबूद्वीप:। कथं जंबूद्वीप:। जंबूवृक्षोपलक्षितत्वात् । उत्तरकुरूणां मध्ये जंबूवृक्षोऽनादिनिधन: पृथिवीपरिणामोऽकृत्रिम: सपरिवारस्तदुपलक्षितोऽयं द्वीप:। =प्रश्न–इसे जंबूद्वीप क्यों कहते हैं ? उत्तर–उत्तरकुरु में अनादिनिधन पृथिवीमयी अकृत्रिम और परिवार वृक्षों से युक्त जंबूवृक्ष है, जिसके कारण यह जंबूद्वीप कहलाता है। ( राजवार्तिक/3/7/1/169/14 )।
पुराणकोष से
(1) दो सुर्यों से विभूषित आद्य द्वीप । हरिवंशपुराण 2.1, यह मध्यलोक के मध्यभाग में स्थित चक्राकार, लवणसमुद्र से आवृत, एक लाख योजन विस्तृत, मेरु पर्वत और चौतीस क्षेत्रों (विदेह के बत्तीस एक भरत, एक ऐरावत) से युक्त है । महापुराण 4.48-49, 5.187, पद्मपुराण 3.32-33, 37-39, हरिवंशपुराण 2. 1, 5-4-7, 10. 177 इसमें छ: भोगभूमियाँ, आठ जिनालय, अड़सठ भवन (चौतीसों क्षेत्रों में दो-दो (और चौतीस सिंहासन हैं । भरत और ऐरावत क्षेत्र में रजतमय दो विजयार्ध पर्वत है । इन भोगभूमियों में ही देवकुरु और उत्तरकुरु है । इस द्वीप में स्थित भरतक्षेत्र की दक्षिणदिशा मै जिनालयों से युक्त राक्षसद्वीप, महाविदेहक्षेत्र की पश्चिम दिशा में किन्नरद्वीप ऐरावत क्षेत्र की उत्तर दिशा में गंधर्व द्वीप स्थित है । पद्मपुराण 3.40-45 इसकी परिधि तीन लाख सोलह हजार दो सौ सत्ताईस योजन तीन कोस एक सौ अट्ठाईस धनुष और साढ़े तेरह अंगुल प्रमाण तथा घनाकार क्षेत्र सात सौ नब्बे करोड़ छप्पन लाख चौरानवे हजार एक सौ पचास योजन माना गया है । इसमें कुल सात क्षेत्र, एक मेरु, दो कुरु, जंबू और शाल्मालि नामक दो वृक्ष, छ: कुलाचल, कुलाचलों पर स्थित छ: महासरोवर, चौदह महानदियां, बारह विभंगा नदियां, बीस वक्षारगिरि, चौतीस राजधानी, चौतीस रूप्याचल, चौतीस वृषभाचल, अड़सठ गुहाएं, चार गोलाकार नाभिगिरि और तीन हजार सात सौ चालीस विद्याधर राजाओं के नगर विद्यमान हैं । भरतक्षेत्र इसके दक्षिण में और ऐरावत क्षेत्र उत्तर में है । हरिवंशपुराण 5.2-13
(2) संख्यात द्वीप समुद्रों के आगे एक दूसरा जंबूद्विप । यहाँ भी देवों के नगर है । हरिवंशपुराण 5.166