अनुगम: Difference between revisions
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[[धवला]] पुस्तक संख्या ३/१,२,१/८/६ यथावस्त्ववबोधः अनुगमः केवलिश्रुतकेवलिभिरनुगतानुरूपेणावगमो वा। < | <p class="SanskritPrakritSentence">[[धवला]] पुस्तक संख्या ३/१,२,१/८/६ यथावस्त्ववबोधः अनुगमः केवलिश्रुतकेवलिभिरनुगतानुरूपेणावगमो वा। </p> | ||
<p class="HindiSentence">= वस्तु के अनुरूप ज्ञानको अनुगम कहते हैं। अथवा केवली और श्रुतकेवलियों के द्वारा परम्परा से आये हुए अनुरूप ज्ञान को अनुगम कहते हैं।</p> | <p class="HindiSentence">= वस्तु के अनुरूप ज्ञानको अनुगम कहते हैं। अथवा केवली और श्रुतकेवलियों के द्वारा परम्परा से आये हुए अनुरूप ज्ञान को अनुगम कहते हैं।</p> | ||
[[धवला]] पुस्तक संख्या ९/४,१,४५/१४१/६ जम्हि जेण वा वत्तव्वं परुविज्जदि सो अणुगमो। अहियारसण्णिदाणमणिओगद्दाराणं जे अहियारा तेसिमणुगमो त्ति सण्णा, जहा वेयणाए पदमीमांसादिः।....अथवा अनुगम्यन्ते जीवादयः पदार्थाः अनेनेत्यनुगमः प्रमाणम्। < | <p class="SanskritPrakritSentence">[[धवला]] पुस्तक संख्या ९/४,१,४५/१४१/६ जम्हि जेण वा वत्तव्वं परुविज्जदि सो अणुगमो। अहियारसण्णिदाणमणिओगद्दाराणं जे अहियारा तेसिमणुगमो त्ति सण्णा, जहा वेयणाए पदमीमांसादिः।....अथवा अनुगम्यन्ते जीवादयः पदार्थाः अनेनेत्यनुगमः प्रमाणम्। </p> | ||
<p class="HindiSentence">= १. जहाँ या जिसके द्वारा वक्तव्य की प्ररूपणा की जाती है, वह अनुगम कहलाता है। २. अधिकार संज्ञा युक्त अनुयोगद्वारों के जो अधिकार होते हैं उनका `अनुगम' यह नाम है, जैसे-वेदनानुयोगद्वार के पदमीमांसा आदि अनुगम। ३. अथवा जिसके द्वारा जीवादि पदार्थ जाने जाते हैं वह अनुगम अर्थात् प्रमाण कहलाता है।</p> | <p class="HindiSentence">= १. जहाँ या जिसके द्वारा वक्तव्य की प्ररूपणा की जाती है, वह अनुगम कहलाता है। २. अधिकार संज्ञा युक्त अनुयोगद्वारों के जो अधिकार होते हैं उनका `अनुगम' यह नाम है, जैसे-वेदनानुयोगद्वार के पदमीमांसा आदि अनुगम। ३. अथवा जिसके द्वारा जीवादि पदार्थ जाने जाते हैं वह अनुगम अर्थात् प्रमाण कहलाता है।</p> | ||
[[धवला]] पुस्तक संख्या ९/४,१,४५/१६२/४ अथवा अनुगम्यन्ते परिच्छिद्यन्त इति अनुगमाः षड्द्रव्याणि त्रिकोटिपरिणामात्मकपाषण्ड्यविषयविभ्राङ्भावरूपाणि प्राप्तजात्यन्तराणि प्रमाणविषयतया अपसारितटुर्नयानि सविश्वरूपानन्तपर्यायसप्रतिपक्षविविधनियतभङ्गात्मकसत्तास्वरूपाणीति प्रतिपत्तव्यम्। एवमणुगमपरूवणा कदा। < | <p class="SanskritPrakritSentence">[[धवला]] पुस्तक संख्या ९/४,१,४५/१६२/४ अथवा अनुगम्यन्ते परिच्छिद्यन्त इति अनुगमाः षड्द्रव्याणि त्रिकोटिपरिणामात्मकपाषण्ड्यविषयविभ्राङ्भावरूपाणि प्राप्तजात्यन्तराणि प्रमाणविषयतया अपसारितटुर्नयानि सविश्वरूपानन्तपर्यायसप्रतिपक्षविविधनियतभङ्गात्मकसत्तास्वरूपाणीति प्रतिपत्तव्यम्। एवमणुगमपरूवणा कदा। </p> | ||
<p class="HindiSentence">= `अथवा जो जाने जाते हैं' इस निरुक्ति के अनुसार त्रिकोटि स्वरूप (द्रव्य, गुण, पर्याय स्वरूप) पाषण्डियों के अविषय भूत अविभ्राड्भाव सम्बन्ध अर्थात् कथंचित् तादात्म्य सहित, जात्यन्तर स्वरूप को प्राप्त, प्रमाण के विषय होनेसे दुर्नयों को दूर करनेवाले, अपनी नानारूप अनन्त पर्यायों की प्रतिपक्ष भूत असत्तासे सहित और उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य स्वरूप से संयुक्त, ऐसे छह द्रव्य अनुगम हैं, ऐसा जानना चाहिए। इस प्रकार अनुगम की प्ररूपणा की है।</p> | <p class="HindiSentence">= `अथवा जो जाने जाते हैं' इस निरुक्ति के अनुसार त्रिकोटि स्वरूप (द्रव्य, गुण, पर्याय स्वरूप) पाषण्डियों के अविषय भूत अविभ्राड्भाव सम्बन्ध अर्थात् कथंचित् तादात्म्य सहित, जात्यन्तर स्वरूप को प्राप्त, प्रमाण के विषय होनेसे दुर्नयों को दूर करनेवाले, अपनी नानारूप अनन्त पर्यायों की प्रतिपक्ष भूत असत्तासे सहित और उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य स्वरूप से संयुक्त, ऐसे छह द्रव्य अनुगम हैं, ऐसा जानना चाहिए। इस प्रकार अनुगम की प्ररूपणा की है।</p> | ||
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Revision as of 14:30, 24 May 2009
धवला पुस्तक संख्या ३/१,२,१/८/६ यथावस्त्ववबोधः अनुगमः केवलिश्रुतकेवलिभिरनुगतानुरूपेणावगमो वा।
= वस्तु के अनुरूप ज्ञानको अनुगम कहते हैं। अथवा केवली और श्रुतकेवलियों के द्वारा परम्परा से आये हुए अनुरूप ज्ञान को अनुगम कहते हैं।
धवला पुस्तक संख्या ९/४,१,४५/१४१/६ जम्हि जेण वा वत्तव्वं परुविज्जदि सो अणुगमो। अहियारसण्णिदाणमणिओगद्दाराणं जे अहियारा तेसिमणुगमो त्ति सण्णा, जहा वेयणाए पदमीमांसादिः।....अथवा अनुगम्यन्ते जीवादयः पदार्थाः अनेनेत्यनुगमः प्रमाणम्।
= १. जहाँ या जिसके द्वारा वक्तव्य की प्ररूपणा की जाती है, वह अनुगम कहलाता है। २. अधिकार संज्ञा युक्त अनुयोगद्वारों के जो अधिकार होते हैं उनका `अनुगम' यह नाम है, जैसे-वेदनानुयोगद्वार के पदमीमांसा आदि अनुगम। ३. अथवा जिसके द्वारा जीवादि पदार्थ जाने जाते हैं वह अनुगम अर्थात् प्रमाण कहलाता है।
धवला पुस्तक संख्या ९/४,१,४५/१६२/४ अथवा अनुगम्यन्ते परिच्छिद्यन्त इति अनुगमाः षड्द्रव्याणि त्रिकोटिपरिणामात्मकपाषण्ड्यविषयविभ्राङ्भावरूपाणि प्राप्तजात्यन्तराणि प्रमाणविषयतया अपसारितटुर्नयानि सविश्वरूपानन्तपर्यायसप्रतिपक्षविविधनियतभङ्गात्मकसत्तास्वरूपाणीति प्रतिपत्तव्यम्। एवमणुगमपरूवणा कदा।
= `अथवा जो जाने जाते हैं' इस निरुक्ति के अनुसार त्रिकोटि स्वरूप (द्रव्य, गुण, पर्याय स्वरूप) पाषण्डियों के अविषय भूत अविभ्राड्भाव सम्बन्ध अर्थात् कथंचित् तादात्म्य सहित, जात्यन्तर स्वरूप को प्राप्त, प्रमाण के विषय होनेसे दुर्नयों को दूर करनेवाले, अपनी नानारूप अनन्त पर्यायों की प्रतिपक्ष भूत असत्तासे सहित और उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य स्वरूप से संयुक्त, ऐसे छह द्रव्य अनुगम हैं, ऐसा जानना चाहिए। इस प्रकार अनुगम की प्ररूपणा की है।