अन्यदृष्टिप्रशंसा: Difference between revisions
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[[सर्वार्थसिद्धि]] अध्याय संख्या ७/२३/३६४ प्रशंसासंस्तवयोः को विशेषः। मनसा मिथ्यादृष्टेर्ज्ञानचारित्रगुणोद्भावनं प्रशंसा, भूताभूतगुणोद्भाववचनं संस्तव इत्ययमनयोर्भेदः।< | <p class="SanskritPrakritSentence">[[सर्वार्थसिद्धि]] अध्याय संख्या ७/२३/३६४ प्रशंसासंस्तवयोः को विशेषः। मनसा मिथ्यादृष्टेर्ज्ञानचारित्रगुणोद्भावनं प्रशंसा, भूताभूतगुणोद्भाववचनं संस्तव इत्ययमनयोर्भेदः।</p> | ||
<p class="HindiSentence">= प्रश्न-प्रशंसा और संस्तवमें क्या अन्तर है? उत्तर-मिथ्यादृष्टिके ज्ञान और चारित्र गुणोंको मनसे उद्भावन करना प्रशंसा है; और मिथ्यादृष्टिमें जो गुण है या जो गुण नहीं है इन दोनोंका सद्भाव बतलाते हुए कथन करना संस्तव है, इस प्रकार इन दोनों में अन्तर है।</p> | <p class="HindiSentence">= प्रश्न-प्रशंसा और संस्तवमें क्या अन्तर है? उत्तर-मिथ्यादृष्टिके ज्ञान और चारित्र गुणोंको मनसे उद्भावन करना प्रशंसा है; और मिथ्यादृष्टिमें जो गुण है या जो गुण नहीं है इन दोनोंका सद्भाव बतलाते हुए कथन करना संस्तव है, इस प्रकार इन दोनों में अन्तर है।</p> | ||
([[राजवार्तिक | राजवार्तिक]] अध्याय संख्या ७/२३,१/५५२) ([[चारित्रसार]] पृष्ठ संख्या ७/२)।<br> | ([[राजवार्तिक | राजवार्तिक]] अध्याय संख्या ७/२३,१/५५२) ([[चारित्रसार]] पृष्ठ संख्या ७/२)।<br> |
Revision as of 20:16, 24 May 2009
सर्वार्थसिद्धि अध्याय संख्या ७/२३/३६४ प्रशंसासंस्तवयोः को विशेषः। मनसा मिथ्यादृष्टेर्ज्ञानचारित्रगुणोद्भावनं प्रशंसा, भूताभूतगुणोद्भाववचनं संस्तव इत्ययमनयोर्भेदः।
= प्रश्न-प्रशंसा और संस्तवमें क्या अन्तर है? उत्तर-मिथ्यादृष्टिके ज्ञान और चारित्र गुणोंको मनसे उद्भावन करना प्रशंसा है; और मिथ्यादृष्टिमें जो गुण है या जो गुण नहीं है इन दोनोंका सद्भाव बतलाते हुए कथन करना संस्तव है, इस प्रकार इन दोनों में अन्तर है।
( राजवार्तिक अध्याय संख्या ७/२३,१/५५२) (चारित्रसार पृष्ठ संख्या ७/२)।