दृष्टांत: Difference between revisions
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<p class="HindiText">हेतु की सिद्धि में साधनभूत कोई दृष्ट पदार्थ जिससे कि वादी व प्रतिवादी दोनों सम्मत हों, | <p class="HindiText">हेतु की सिद्धि में साधनभूत कोई दृष्ट पदार्थ जिससे कि वादी व प्रतिवादी दोनों सम्मत हों, दृष्टांत कहलाता है। और उसको बताने के लिए जिन वचनों का प्रयोग किया जाता है वह उदाहरण कहलाता है। अनुमान ज्ञान में इसका एक प्रमुख स्थान है।</p> | ||
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<li><span class="HindiText"><strong name="1" id="1"> | <li><span class="HindiText"><strong name="1" id="1">दृष्टांत व उदाहरणों में भेद व लक्षण</strong><br /> | ||
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<li><span class="HindiText"><strong name="1.1" id="1.1"> | <li><span class="HindiText"><strong name="1.1" id="1.1"> दृष्टांत व उदाहरण सामान्य का लक्षण</strong> </span><br /> | ||
न्यायदर्शन सूत्र/ मू./1/1/25/30 <span class="SanskritText">लौकिकपरीक्षकाणां यस्मिन्नर्थे बुद्धिसाम्यं स | न्यायदर्शन सूत्र/ मू./1/1/25/30 <span class="SanskritText">लौकिकपरीक्षकाणां यस्मिन्नर्थे बुद्धिसाम्यं स दृष्टांत:।25। </span>=<span class="HindiText">लौकिक (शास्त्र से अनभिज्ञ) और परीक्षक (जो प्रमाण द्वारा शास्त्र की परीक्षा कर सकते हैं) इन दोनों के ज्ञान की समता जिसमें हो उसे दृष्टांत कहते हैं।</span><br /> | ||
न्यायविनिश्चय/ मू./2/211/240 <span class="SanskritText"> | न्यायविनिश्चय/ मू./2/211/240 <span class="SanskritText">संबंधो यत्र निर्ज्ञात: साध्यसाधनधर्मयो:। स दृष्टांतस्तदाभासा: साध्यादिविकलादय:।21।</span> =<span class="HindiText">जहाँ या जिसमें साध्य व साधन इन दोनों धर्मों के अविनाभावी संबंध की प्रतिपत्ति होती है वह दृष्टांत है।</span><br /> | ||
न्यायदीपिका/3/32/78/3 <span class="SanskritText"> | न्यायदीपिका/3/32/78/3 <span class="SanskritText">व्याप्तिपूर्वकदृष्टांतवचनमुदाहरणम् ।</span><br /> | ||
न्यायदीपिका/3/64-65/104/1 <span class="SanskritText">उदाहरणं च | न्यायदीपिका/3/64-65/104/1 <span class="SanskritText">उदाहरणं च सम्यग्दृष्टांतवचनम् । कोऽयं दृष्टांतो नाम ? इति चेत्; उच्यते; व्याप्तिसंप्रतिपत्तिप्रदेशो दृष्टांत:।...तस्या: संप्रतिपत्तिनामवादिनोर्बुद्धिसाम्यम् । सैषा यत्र संभवति स संप्रत्तिपत्तिप्रदेशो महानसादिर्ह्रदादिश्च तत्रैव धूमादौ सति नियमेनाऽग्न्यादिरस्ति, अग्न्याद्यभावे नियमेन धूमादिर्नास्तीति संप्रत्तिपत्तिसंभवात् । ...दृष्ठांतौ चैतौ दृष्टावंतौ धर्मौ साध्यसाधनरूपौ यत्र स दृष्टांत इत्यर्थानुवृत्ते:। उक्त लक्षणस्यास्य दृष्टांतस्य यत्सम्यग्वचनं तदुदाहरणम् । न च वचनमात्रमयं दृष्टांत इति। किंतु दृष्टांतत्वेन वचनम् । तद्यथा–यो यो धूमवानसावसावग्निमान् यथा महानस इति। यत्राग्निर्नास्ति तत्र धूमोऽपि नास्ति यथा महाहृद इति च। एवंविधेनैव वचनेन दृष्टांतस्य दृष्टांतत्वेन प्रतिपादनसंभवात् । </span>=<span class="HindiText">व्याप्ति को कहते हुए दृष्टांत के कहने को उदाहरण कहते हैं। अथवा–यथार्थ दृष्टांत के कहने को उदाहरण कहते हैं। यह दृष्टांत क्या है ? जहाँ साध्य और साधन की व्याप्ति दिखलायी जाती है उसे दृष्टांत कहते हैं।...वादी और प्रतिवादी की बुद्धि साम्यता को व्याप्ति की संप्रतिपत्ति कहते हैं। और संप्रतिपत्ति जहाँ संभव है वह संप्रतिपत्ति प्रदेश कहलाता है जैसे–रसोई घर आदि अथवा तालाब आदि। क्योंकि ‘वहीं धूमादि होने पर नियम से अग्नि आदि पाये जाते हैं, और अग्न्यादि के अभाव में नियम से धूमादि नहीं पाये जाते’ इस प्रकार की बुद्धिसाम्यता संभव है।...ये दोनों ही दृष्टांत हैं, क्योंकि साध्य और साधनरूप अंत अर्थात् धर्म जहाँ देखे जाते हैं वह दृष्टांत कहलाता है, ऐसा ‘दृष्टांत’ शब्द का अर्थ उनमें पाया जाता है। इस उपर्युक्त दृष्टांत का जो सम्यक् वचन है–प्रयोग है वह उदाहरण है। ‘केवल’ वचन का नाम उदाहरण नहीं है, किंतु दृष्टांत रूप से जो वचन प्रयोग है वह उदाहरण है। जैसे–जो-जो धूमवाला होता है वह-वह अग्निवाला होता है, जैसे रसोईघर, और जहाँ अग्नि नहीं है वहाँ धूम भी नहीं है जैसे-तालाब। इस प्रकार के वचन के साथ ही दृष्टांत का दृष्टांतरूप से प्रतिपादन होता है।<br /> | ||
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<li><span class="HindiText"><strong name="1.2" id="1.2"> | <li><span class="HindiText"><strong name="1.2" id="1.2"> दृष्टांत व उदाहरण के भेद</strong> </span><br /> | ||
न्यायविनिश्चय/ वृ./2/211/240/25 <span class="SanskritText">स च द्वेधा साधर्म्येण वैधर्म्येण च। </span>=<span class="HindiText"> | न्यायविनिश्चय/ वृ./2/211/240/25 <span class="SanskritText">स च द्वेधा साधर्म्येण वैधर्म्येण च। </span>=<span class="HindiText">दृष्टांत के दो भेद हैं, साधर्म्य और वैधर्म्य।</span><br /> | ||
परीक्षामुख/3/47/21 <span class="SanskritText"> | परीक्षामुख/3/47/21 <span class="SanskritText">दृष्टांतो द्वेधा, अन्वयव्यतिरेकभेदात् ।47। </span>=<span class="HindiText">दृष्टांत के दो भेद हैं– एक अन्वय दृष्टांत दूसरा व्यतिरेक दृष्टांत। ( न्यायदीपिका/3/32/78/7 ); ( न्यायदीपिका/3/64/104/8 )।<br /> | ||
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<li><span class="HindiText"><strong name="1.3" id="1.3"> साधर्म्य और वैधर्म्य सामान्य का लक्षण</strong> </span><br /> | <li><span class="HindiText"><strong name="1.3" id="1.3"> साधर्म्य और वैधर्म्य सामान्य का लक्षण</strong> </span><br /> | ||
न्यायदर्शन सूत्र/ मू. व टी./1/1/36/37/35 <span class="SanskritText">साध्यसाधर्म्यात्तद्धर्मभावी | न्यायदर्शन सूत्र/ मू. व टी./1/1/36/37/35 <span class="SanskritText">साध्यसाधर्म्यात्तद्धर्मभावी दृष्टांत उदाहरणम् ।36। ...शब्दोऽप्युत्पत्तिधर्मकत्वादनित्य: स्थाल्यादिवदित्युदाह्रियते।।टीका।। तद्विपर्ययाद्वा विपरीतम् ।37। ...अनित्य: शब्द उत्पत्तिधर्मकत्वात् अनुत्पतिधर्मकं नित्यमात्मादि सोऽयमात्मादिर्दृष्टांत:। </span>=<span class="HindiText">साध्य के साथ तुल्य धर्मता से साध्य का धर्म जिसमें हो ऐसे दृष्टांत को (साधर्म्य) उदाहरण कहते हैं।36। शब्द अनित्य है, क्योंकि उत्पत्ति धर्मवाला है, जो-जो उत्पत्ति धर्मवाला होता है वह-वह अनित्य होता है जैसे कि ‘घट’। यह अन्वयी (साधर्म्य) उदाहरण का लक्षण कहा। साध्य के विरुद्ध धर्म से विपरीत (वैधर्म्य) उदाहरण होता है, जैसे शब्द अनित्य है, उत्पत्यर्थ वाला होने से, जो उत्पत्ति धर्मवाला नहीं होता है, वह नित्य देखा गया है, जैसे–आकाश, आत्मा, काल आदि।</span><br /> | ||
न्यायविनिश्चय/ टी./2/211/240/20 <span class="SanskritText">तत्र साधर्म्येण कृतकत्वादनित्यत्वे साध्ये घट:, तत्रान्वयमुखेन तयो: | न्यायविनिश्चय/ टी./2/211/240/20 <span class="SanskritText">तत्र साधर्म्येण कृतकत्वादनित्यत्वे साध्ये घट:, तत्रान्वयमुखेन तयो: संबंधप्रतिपत्ते:। वैधर्म्येणाकाशं तत्रापि व्यतिरेकद्वारेण तयोस्तत्परिज्ञानात् । </span>=<span class="HindiText">कृतक होने से अनित्य है जैसे कि ‘घट’। इस हेतु में दिया गया दृष्टांत साधर्म्य है। यहाँ अन्वय की प्रधानता से कृतकत्व और अनित्यत्व इन दोनों की व्याप्ति दर्शायी गयी है। अकृतक होने से अनित्य नहीं है जैसे कि ‘आकाश’, यहाँ व्यतिरेक द्वारा कृतक व अनित्यत्व धर्मों की व्याप्ति दर्शायी गयी है। ( न्यायदीपिका/3/32/78/7 )।</span><br /> | ||
परीक्षामुख/3/48-49/21 <span class="SanskritText">साध्यं व्याप्तं साधनं यत्र प्रदर्श्यते | परीक्षामुख/3/48-49/21 <span class="SanskritText">साध्यं व्याप्तं साधनं यत्र प्रदर्श्यते सोऽंवयदृष्टांत:।48। साध्याभावे साधनाभावो यत्र कथ्यते स व्यतिरेक दृष्टांत:।49। </span>=<span class="HindiText">जहाँ हेतु की मौजूदगी से साध्य की मौजूदगी बतलायी जाये उसे अन्वय दृष्टांत कहते हैं। और जहाँ साध्य के अभाव में साधन का अभाव कहा जाय उसे व्यतिरेक के दृष्टांत कहते हैं।48-49।</span><br /> | ||
न्यायदीपिका/3/32/78/3 <span class="SanskritText">यो यो धूमवानसावसावग्निमान्, यथा महानस इति साधर्म्योदाहरणम् । यो योऽग्मिमान्न भवति स स धूमवान्न भवति, यथा महाहृद इति वैधर्म्योदाहरणम् । पूर्वत्रोदाहरणभेदे हेतोरन्वयव्याप्ति: प्रदर्श्यते द्वितीये तु व्यतिरेकव्याप्ति:। | न्यायदीपिका/3/32/78/3 <span class="SanskritText">यो यो धूमवानसावसावग्निमान्, यथा महानस इति साधर्म्योदाहरणम् । यो योऽग्मिमान्न भवति स स धूमवान्न भवति, यथा महाहृद इति वैधर्म्योदाहरणम् । पूर्वत्रोदाहरणभेदे हेतोरन्वयव्याप्ति: प्रदर्श्यते द्वितीये तु व्यतिरेकव्याप्ति:। तद्यथा–अंवयव्याप्तिप्रदर्शनस्थानमंवयदृष्टांत:, व्यतिरेकव्याप्तिप्रदर्शनप्रदेशो व्यतिरेकदृष्टांत:। </span><br /> | ||
न्यायदीपिका/3/64/104/7 <span class="SanskritText">धूमादौ सति नियमेनाग्न्यादिरस्ति, अग्न्याद्यभावे नियमेन धूमादिर्नास्तीति तत्र | न्यायदीपिका/3/64/104/7 <span class="SanskritText">धूमादौ सति नियमेनाग्न्यादिरस्ति, अग्न्याद्यभावे नियमेन धूमादिर्नास्तीति तत्र महानसादिरंवयदृष्टांत:। अत्र साध्यसाधनयोर्भावरूपान्वयसंप्रतिपत्तिसंभवात् ह्रदादिस्तु व्यतिरेकदृष्टांत:। अत्र साध्यसाधनयोरभावरूपव्यतिरेकसंप्रतिपत्तिसंभवात् । </span>=<span class="HindiText">जो जो धूमवाला है वह वह अग्नि वाला है जैसे–रसोईघर। यह साधर्म्य उदाहरण है। जो जो अग्निवाला नहीं होता वह वह धूमवाला नहीं होता जैसे–तालाब। यह वैधर्म्य उदाहरण है। उदाहरण के पहले भेद में हेतु की अन्वय व्याप्ति (साध्य की मौजूदगी में साधन की मौजूदगी) दिखायी जाती है और दूसरे भेद में व्यतिरेकव्याप्ति (साध्य की गैरमौजूदगी में साधन की गैरमौजूदगी) बतलायी जाती है। जहाँ अन्वय व्याप्ति प्रदर्शित की जाती है उसे अन्वय दृष्टांत कहते हैं, और जहाँ व्यतिरेक व्याप्ति दिखायी जाती है उसे व्यतिरेक दृष्टांत कहते हैं। धूमादिक होने पर नियम से अग्नि आदि पाये जाते हैं, और अग्न्यादि के अभाव में नियम में धूमादिक नहीं पाये जाते। उनमें रसोर्इशाला आदि दृष्टांत अन्वय है, क्योंकि उससे साध्य और साधन के सद्भावरूप अन्वय बुद्धि होती है। और तालाबादि व्यतिरेक दृष्टांत हैं, क्योंकि उससे साध्य और साधन के अभावरूप व्यतिरेक का ज्ञान होता है।<br /> | ||
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<li><span class="HindiText"><strong name="1.4" id="1.4">उदाहरणाभास सामान्य का लक्षण व भेद</strong> </span><br /> | <li><span class="HindiText"><strong name="1.4" id="1.4">उदाहरणाभास सामान्य का लक्षण व भेद</strong> </span><br /> | ||
न्यायदीपिका/3/66/105/10 <span class="SanskritText">उदाहरणलक्षणरहित उदाहरणवदवभासमान उदाहरणाभास:। उदाहरणलक्षणराहित्यं द्वेधा संभवति, | न्यायदीपिका/3/66/105/10 <span class="SanskritText">उदाहरणलक्षणरहित उदाहरणवदवभासमान उदाहरणाभास:। उदाहरणलक्षणराहित्यं द्वेधा संभवति, दृष्टांतस्यासम्यग्वचनेनादृष्टांतस्य सम्यग् वचनेन वा। </span>=<span class="HindiText">जो उदाहरण के लक्षण से रहित है किंतु उदाहरण जैसा प्रतीत होता है वह उदाहरणाभास है। उदाहरण के लक्षण की रहितता (अभाव) दो तरह से होता है–1. दृष्टांत का सम्यग्वचन न होना और दूसरा जो दृष्टांत नहीं है उसका सम्यग्वचन होना।<br /> | ||
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<li><span class="HindiText"><strong name="1.5" id="1.5">उदाहरणाभास के भेदों के लक्षण</strong> </span><br /> | <li><span class="HindiText"><strong name="1.5" id="1.5">उदाहरणाभास के भेदों के लक्षण</strong> </span><br /> | ||
न्यायदीपिका/3/65/105/12 <span class="SanskritText">तत्राद्यं यथा, यो योऽग्निमान् स स धूमवान्, यथा महानस इति, यत्र यत्र धूमो नास्ति तत्र तत्राग्निर्नास्ति, यथा महाहृद इति च व्याप्यव्यापकयोर्वैपरीत्येन कथनम् ।</span><br /> | न्यायदीपिका/3/65/105/12 <span class="SanskritText">तत्राद्यं यथा, यो योऽग्निमान् स स धूमवान्, यथा महानस इति, यत्र यत्र धूमो नास्ति तत्र तत्राग्निर्नास्ति, यथा महाहृद इति च व्याप्यव्यापकयोर्वैपरीत्येन कथनम् ।</span><br /> | ||
न्यायदीपिका/3/68/108/7 <span class="SanskritText"> | न्यायदीपिका/3/68/108/7 <span class="SanskritText">अदृष्टांतवचनं तु, अन्वयव्याप्तौ व्यतिरेकदृष्टांतवचनम्, व्यतिरेकव्याप्तावंवयदृष्टांतवचनं च, उदाहरणाभासौ। स्पष्टमुदाहरणम् ।</span> =<span class="HindiText">उनमें पहले का उदाहरण इस प्रकार है—जो जो अग्निवाला होता है वह-वह धूमवाला होता है, जैसे रसोईघर। जहाँ-जहाँ धूम नहीं है वहाँ-वहाँ अग्नि नहीं है जैसे–तालाब। इस तरह व्याप्य और व्यापक का विपरीत (उलटा) कथन करना दृष्टांत का असम्यग्वचन है। ‘अदृष्टांत वचन’ (जो दृष्टांत नहीं है उसका सम्यग्वचन होना) नाम का दूसरा उदाहरणाभास इस प्रकार है–अन्वय व्याप्ति में व्यतिरेक दृष्टांत कह देना, और व्यतिरेक व्याप्ति में अन्वय दृष्टांत बोलना, उदाहरणाभास है, इन दोनों के उदाहरण स्पष्ट हैं।<br /> | ||
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<li><span class="HindiText"><strong name="1.6" id="1.6"> | <li><span class="HindiText"><strong name="1.6" id="1.6"> दृष्टांताभास सामान्य के लक्षण</strong> </span><br /> | ||
न्यायविनिश्चय/ मू./2/211/240<span class="SanskritText"> | न्यायविनिश्चय/ मू./2/211/240<span class="SanskritText"> संबंधी यत्र निर्ज्ञात: साध्यसाधनधर्मयो:। स दृष्टांतस्तदाभासा: साध्यादिविकलादय:।</span> =<span class="HindiText">जो दृष्टांत न होकर दृष्टांतवत् प्रतीत होवें वे दृष्टांताभास हैं।</span><br /> | ||
पंचाध्यायी / पूर्वार्ध/410 <span class="SanskritText"> | पंचाध्यायी / पूर्वार्ध/410 <span class="SanskritText">दृष्टांताभासा इति निक्षिप्ता: स्वेष्टसाध्यशून्यत्वात् ।...।410। </span>=<span class="HindiText">इस प्रकार दिये हुए दृष्टांत अपने इष्ट साध्य के द्वारा शून्य होने से अर्थात् अपने इष्ट साध्य के साधक न होने से दृष्टांताभास है...।410। </span></li> | ||
<li><span class="HindiText"><strong name="1.7" id="1.7"> | <li><span class="HindiText"><strong name="1.7" id="1.7"> दृष्टांताभास के भेद</strong> <br> न्यायविनिश्चय/ टी./2/211/240/26 भावार्थ–साधर्म्यदृष्टांताभास नौ प्रकार का है–साध्य विकल, साधन विकल, उभय विकल, संदिग्धसाध्य, संदिग्धसाधन, संदिग्धोभय, अन्वयासिद्ध, अप्रदर्शितान्वय और विपरीतान्वय।<br>इसी प्रकार वैधर्म्य दृष्टांताभास भी नौ प्रकार का होता है–साध्य विकल, साधन विकल, उभय विकल संदिग्ध, साध्य, संदिग्धसाधन, संदिग्धोभय, अव्यतिरेक, अप्रदर्शित व्यतिरेक, विपरीत व्यतिरेक।</span> परीक्षामुख/6/40,44 <span class="SanskritText">दृष्टांताभासा अन्वयेऽसिद्धसाध्यसाधनोभया:।40। व्यतिरेकसिद्धतद्व्यतिरेका:।45।</span> =<span class="HindiText">अंवयदृष्टांता भास तीन प्रकार का है–साध्यविकल, साधनविकल और उभयविकल।40। व्यतिरेकदृष्टांताभास के तीन भेद हैं–साध्यव्यतिरेकविकल, साधनव्यतिरेकविकल एवं साध्यसाधन उभय व्यतिरेकविकल।</span></li> | ||
<li><span class="HindiText"><strong name="1.8" id="1.8"> | <li><span class="HindiText"><strong name="1.8" id="1.8"> दृष्टांताभास के भेदों के लक्षण</strong> </span><br> न्यायविनिश्चय/ वृ./2/211/240/28 <span class="SanskritText">तत्र नित्यशब्दोऽमूर्तत्वादिति साधने कर्मवदिति साध्यविकलं निदर्शनम् अनित्यत्वात् कर्मण:। परमाणु वदिति साधनविकलं मूर्तत्वात् परमाणुनाम् । घटवदित्युभयविकलम् अनित्यत्वान्मूर्तत्वाच्च घटस्य। ‘रागादिमान् सुगत: कृतकत्वात्’ इत्यत्र रथ्यापुरुषवदिति संदिग्धसाध्यं रथ्यापुरुषं रागादिमत्त्वस्य निश्चेतुमशक्यत्वात् प्रत्यक्षस्याप्रवृत्ते: व्यापारादेश्च रागादिप्रभवस्यान्यत्रापि संभवात्, वीतरागाणामपि सरागवच्चेष्टोपपत्ते:। मरणधर्मायं रागादिमत्त्वात् इत्यत्र संदिग्धसाधनं तत्र रागादिमत्त्वाऽनिश्चयस्योक्तत्वात् । अतएव असर्वज्ञोऽयं रागादिमत्त्वादित्यंतसंदिग्धोभयम् । रागादिमत्त्वे वक्तृत्वादित्यनन्वयम्, रागादिमत्त्वस्यैव तत्रासिद्धौ तत्रान्वयस्यासिद्धे:। अप्रदर्शितान्वयं यथा शब्दोऽनित्य: कृतकत्वात् घटादिवदिति। न ह्यत्र ‘यद्यत्कृतकं तत्तदनित्यम्’ इत्यन्वयदर्शनमस्ति। विपरीतान्वयं यथा यदनित्यं तत्कृतकमिति। तदेवं नव साधर्म्येण दृष्टांताभासा: । वैधर्म्येणापि नवैव। तद्यथा नित्य: शब्द: अमूर्तत्वात् यदनित्यं न भवति तदमूर्तमपि न भवति परमाणुवदिति साध्यव्यावृत्तं परमाणुषु साधनव्यावृत्तावपि साध्यस्य नित्यत्वस्याव्यावृत्ते:। कर्मवदिति साधनाव्यावृत्तं तत्र साध्यव्यावृत्तावपि साधनस्य अमूर्तत्वस्याव्यावृत्ते: आकाशवदित्युभयावृत्तम् अमूर्तत्वनित्यत्वयोरुभयोरप्याकाशादव्यावृत्ते:। संदिग्धसाध्यव्यतिरेकं यथा सुगत: सर्वज्ञोऽनुपदेशादिप्रमाणोपपन्नतत्त्ववचनात्, यस्तु न सर्वज्ञो नासौ तद्वचनो यथा वीथी पुरुष इति तत्र सर्वज्ञत्वव्यतिरेकस्यानिश्चयात् परचेतोवृत्तीनामित्थंभावेन दुरवबोधत्वात् । संदिग्धसाधनव्यतिरेकं यथा अनित्य: शब्द: सत्त्वात् यदनित्यं न भवति तत्सदपि न भवति यथा गमनमिति, गगने हि सत्त्वव्यावृत्तिरनुपलंभात्, तस्य च न गमकत्वमदृश्यविषयत्वात् । संदिग्धोभयव्यतिरेकं यथा य: संसारी स न तद्वान् यथा बुद्ध इति, बुद्धात् संसारित्वाविद्यादिमत्त्वव्यावृत्ते: अनवधारणात् । तस्य च तृतीये प्रस्तावे निरूपणात् । अव्यतिरेकं यथा नित्य: शब्द: अमूर्तत्त्वात् यन्न नित्यं न तदमूर्तं यथा घट इति घटे साध्यनिवृत्तेर्भावेऽपि हेतुव्यतिरेकस्य तत्प्रयुक्तत्वाभावात् कर्मण्यनित्येऽप्यमूर्तत्वभावात् । अप्रदर्शितव्यतिरेकं यथा अनित्य: शब्द: सत्त्वात् वैधर्म्येण आकाशपुष्पवदितिं। विपरीत व्यतिरेकं यथा अत्रैव साध्ये यत्सन्न भवति तदनित्यमपि न भवति यथा व्योमेति साधनव्यावृत्त्या साध्यनिवृत्तेरुपदर्शनात् । =</span> | ||
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<li><strong name="1.8.1" id="1.8.1"><span class="HindiText"> | <li><strong name="1.8.1" id="1.8.1"><span class="HindiText"> अंवयदृष्टांताभास के लक्षण</span></strong> | ||
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<li class="HindiText"> ‘अमूर्त होने से शब्द अनित्य है’ इस हेतु में दिया गया ‘कर्मवत्’ ऐसा | <li class="HindiText"> ‘अमूर्त होने से शब्द अनित्य है’ इस हेतु में दिया गया ‘कर्मवत्’ ऐसा दृष्टांत साध्यविकल है, क्योंकि कर्म अनित्य है, नित्यत्व रूप साध्य से विपरीत है। </li> | ||
<li class="HindiText"> ‘परमाणुवत्’ ऐसा | <li class="HindiText"> ‘परमाणुवत्’ ऐसा दृष्टांत देना साधनविकल्प है, क्योंकि वह मूर्त है और अमूर्तत्व रूप साधन से (हेतु से) विपरीत है। </li> | ||
<li class="HindiText"> ‘घटवत्’ ऐसा | <li class="HindiText"> ‘घटवत्’ ऐसा दृष्टांत देना उभय विकल है। क्योंकि घट मूर्त व अनित्य है। यह अमूर्तत्वरूप साधन तथा अनित्यत्व रूप साध्य से विपरीत है। </li> | ||
<li class="HindiText"> ‘सुगत (बुद्धदेव) राग वाला है, क्योंकि वह कृतक है’ इस हेतु में दिया गया–‘रथ्या पुरुषवत्’ ऐसा | <li class="HindiText"> ‘सुगत (बुद्धदेव) राग वाला है, क्योंकि वह कृतक है’ इस हेतु में दिया गया–‘रथ्या पुरुषवत्’ ऐसा दृष्टांत संदिग्ध साध्य है, क्योंकि रथ्यापुरुष में रागादिमत्त्व का निश्चय होना अशक्य है। उसके व्यापार या चेष्टादि पर से भी उसके रागादिमत्त्व की सिद्धि नहीं की जा सकती, क्योंकि वीतरागियों में भी शरीरवत् चेष्टा पायी जाती है। </li> | ||
<li class="HindiText"> तहाँ रागादिमत्त्व की सिद्धि में ‘मरणधर्मापने का’ | <li class="HindiText"> तहाँ रागादिमत्त्व की सिद्धि में ‘मरणधर्मापने का’ दृष्टांत देना संदिग्ध साधन है, क्योंकि मरणधर्मा होते हुए भी रागादिधर्मापने का निश्चय नहीं है। </li> | ||
<li class="HindiText"> ‘असर्वज्ञपने का’ | <li class="HindiText"> ‘असर्वज्ञपने का’ दृष्टांत देना संदिग्धसाध्य व संदिग्ध साधन उभयरूप है। </li> | ||
<li class="HindiText"> वक्तृत्वपने का | <li class="HindiText"> वक्तृत्वपने का दृष्टांत देना अनन्वय है, क्योंकि रागादिमत्त्व के साथ वक्तृत्व का अन्वय नहीं है। </li> | ||
<li class="HindiText"> ‘कृतक होने से शब्द अनित्य है’ इस हेतु में दिया गया ‘घटवत्’ यह | <li class="HindiText"> ‘कृतक होने से शब्द अनित्य है’ इस हेतु में दिया गया ‘घटवत्’ यह दृष्टांत अप्रदर्शितान्वय है। क्योंकि जो जो कृतक हो वह वह नियम से अनित्य होता है, ऐसा अन्वय पद दर्शाया नहीं गया। </li> | ||
<li class="HindiText"> जो जो अनित्य होता है वह-वह कृतक होता है, यह विपरीतान्वय है। </li> | <li class="HindiText"> जो जो अनित्य होता है वह-वह कृतक होता है, यह विपरीतान्वय है। </li> | ||
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<li><span class="HindiText"><strong name="1.8.2" id="1.8.2"> व्यतिरेक | <li><span class="HindiText"><strong name="1.8.2" id="1.8.2"> व्यतिरेक दृष्टांताभास के</strong> <strong>लक्षण–</strong> | ||
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<li class="HindiText"> ‘अमूर्त होने से शब्द अनित्य है, जो-जो नित्य नहीं होता वह-वह अमूर्त नहीं होता’ इस हेतु में दिया गया ‘परमाणुवत्’ यह | <li class="HindiText"> ‘अमूर्त होने से शब्द अनित्य है, जो-जो नित्य नहीं होता वह-वह अमूर्त नहीं होता’ इस हेतु में दिया गया ‘परमाणुवत्’ यह दृष्टांत साध्य विकल है, क्योंकि परमाणु में साधनरूप अमूर्तत्व की व्यावृत्ति होने पर भी साध्य रूप नित्यत्व की व्यावृत्ति नहीं है। </li> | ||
<li class="HindiText"> उपरोक्त हेतु में दिया गया ‘कर्मवत्’ यह | <li class="HindiText"> उपरोक्त हेतु में दिया गया ‘कर्मवत्’ यह दृष्टांत साधन विकल है, क्योंकि यहाँ साध्यरूप नित्यत्व की व्यावृत्ति होने पर भी साधनरूप अमूर्तत्व की व्यावृत्ति नहीं है। </li> | ||
<li class="HindiText"> उपरोक्त हेतु में ही दिया गया ‘आकाशवत्’ यह | <li class="HindiText"> उपरोक्त हेतु में ही दिया गया ‘आकाशवत्’ यह दृष्टांत उभय विकल है, क्योंकि यहाँ न तो साध्यरूप नित्यत्व की व्यावृत्ति है, और न साधन रूप नित्यत्व की।</li> | ||
<li class="HindiText"> ‘सुगत सर्वज्ञ है क्योंकि उसके वचन प्रमाण हैं, जो-जो सर्वज्ञ नहीं होता, उसके वचन भी प्रमाण नहीं होते, इस हेतु में दिया गया ‘वीथी पुरुषवत्’ यह | <li class="HindiText"> ‘सुगत सर्वज्ञ है क्योंकि उसके वचन प्रमाण हैं, जो-जो सर्वज्ञ नहीं होता, उसके वचन भी प्रमाण नहीं होते, इस हेतु में दिया गया ‘वीथी पुरुषवत्’ यह दृष्टांत संदिग्ध साध्य है, क्योंकि वीथी पुरुष में साध्यरूप सर्वज्ञत्व के व्यतिरेक का निश्चय नहीं है, दूसरे अन्य के चित्त की वृत्तियों का निश्चय करना शक्य नहीं है। </li> | ||
<li class="HindiText"> ‘सत्त्व होने के कारण शब्द अनित्य है, जो जो अनित्य नहीं होता वह वह सत् भी नहीं होता’ इस हेतु में दिया गया ‘आकाशवत्’ यह | <li class="HindiText"> ‘सत्त्व होने के कारण शब्द अनित्य है, जो जो अनित्य नहीं होता वह वह सत् भी नहीं होता’ इस हेतु में दिया गया ‘आकाशवत्’ यह दृष्टांत संदिग्ध साधन है, क्योंकि आकाश में न तो साधन रूप सत्त्व की व्यावृत्ति पायी जाती है, और अदृष्ट होने के कारण से न ही उसके सत्त्व का निश्चय हो पाता है। </li> | ||
<li class="HindiText"> ‘अविद्यामत् होने के कारण हरि हर आदि संसारी है, जो जो संसारी नहीं होता वह वह अविद्यामत् भी नहीं होता। इस हेतु में दिया गया ‘बुद्धवत्’ यह | <li class="HindiText"> ‘अविद्यामत् होने के कारण हरि हर आदि संसारी है, जो जो संसारी नहीं होता वह वह अविद्यामत् भी नहीं होता। इस हेतु में दिया गया ‘बुद्धवत्’ यह दृष्टांत संदिग्धोभय व्यतिरेकी है। क्योंकि बुद्ध के साथ साध्यरूप संसारीपने की और साधन रूप’ ‘अविद्यामत्पने’ दोनों ही की व्यावृत्ति का कोई निश्चय नहीं है। </li> | ||
<li class="HindiText"> अमूर्त होने के कारण से शब्द नित्य है, जो जो नित्य नहीं होता वह वह अमूर्त भी नहीं होता, इस हेतु में दिया गया ‘घटवत्’ यह | <li class="HindiText"> अमूर्त होने के कारण से शब्द नित्य है, जो जो नित्य नहीं होता वह वह अमूर्त भी नहीं होता, इस हेतु में दिया गया ‘घटवत्’ यह दृष्टांत अव्यतिरेकी है, क्योंकि घट में साध्यरूप नित्यत्व की निवृत्ति का स्वभाव होते हुए भी साधनरूप अमूर्तत्व की निवृत्ति का अभाव है।</li> | ||
<li class="HindiText"> ‘सत् होने के कारण शब्द अनित्य है, जो जो अनित्य नहीं होता, वह-वह सत् भी नहीं होता’ इस हेतु में दिया गया ‘आकाशपुष्पवत्’ यह | <li class="HindiText"> ‘सत् होने के कारण शब्द अनित्य है, जो जो अनित्य नहीं होता, वह-वह सत् भी नहीं होता’ इस हेतु में दिया गया ‘आकाशपुष्पवत्’ यह दृष्टांत अप्रदर्शित व्यतिरेकी है, क्योंकि आकाश में साध्यरूप अनित्यत्व के साथ साधन रूप सत्त्व का विरोध दर्शाया नहीं गया है। </li> | ||
<li><span class="HindiText"> ‘जो जो सत् नहीं होता, वह वह अनित्य नहीं होता, इस हेतु में दिया गया आकाशपुष्पवत् यह | <li><span class="HindiText"> ‘जो जो सत् नहीं होता, वह वह अनित्य नहीं होता, इस हेतु में दिया गया आकाशपुष्पवत् यह दृष्टांत विपरीत व्यतिरेकी है, क्योंकि यहाँ आकाश् में साधन रूप सत् की व्यावृत्ति के द्वारा साध्यरूप नित्यत्व की निवृत्ति दिखायी गयी है न कि अनित्यत्व की।</span><br>म.मु./6/41-45 <span class="SanskritText">अपौरुषेय: शब्दोऽमूर्त्तत्वादिंद्रियसुखपरमाणुघटवत् ।41। विपरीतान्वयश्च यदपौरुषेयं तदमूर्तं। विद्युदादिनातिप्रसंगात् ।42-43। व्यतिरेकसिद्धतदव्यतिरेका: परमाण्विंद्रिंयसुखाकाशवत् विपरीतव्यतिरेकश्च यन्नामूर्तं तन्नापौरुषेयं।44-45।। </span></li> | ||
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<li><strong name="1.8.01" id="1.8.01"><span class="HindiText"> | <li><strong name="1.8.01" id="1.8.01"><span class="HindiText">अंवयदृष्टांताभास के लक्षण</span></strong><span class="HindiText">― | ||
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<li><span class="HindiText"> ‘शब्द अपौरुषेय है क्योंकि वह अमूर्त है’ इस हेतु में दिया | <li><span class="HindiText"> ‘शब्द अपौरुषेय है क्योंकि वह अमूर्त है’ इस हेतु में दिया गया–‘इंद्रियसुखवत्’ यह दृष्टांत साध्य विकल है क्योंकि इंद्रिय सुख अपौरुषेय नहीं है किंतु पुरुषकृत ही है। </span></li> | ||
<li><span class="HindiText"> ‘परमाणुवत्’ यह | <li><span class="HindiText"> ‘परमाणुवत्’ यह दृष्टांत साधन विमल है क्योंकि परमाणु में रूप, रस, गंध आदि रहते हैं इसलिए वह मूर्त है अमूर्त नहीं है।</span></li> | ||
<li><span class="HindiText"> ‘घटवत्’ यह | <li><span class="HindiText"> ‘घटवत्’ यह दृष्टांत उभय विकल है, क्योंकि घट पुरुषकृत् है, और मूर्त्त है, इसलिए इसमें अपौरुषेयत्व साध्य एवं अमूर्तत्व हेतु दोनों ही नहीं रहते। </span></li> | ||
<li><span class="HindiText"> उपर्युक्त अनुमान में जो जो अमूर्त होता है वह वह अपौरुषेय होता है, ऐसी व्याप्ति है, | <li><span class="HindiText"> उपर्युक्त अनुमान में जो जो अमूर्त होता है वह वह अपौरुषेय होता है, ऐसी व्याप्ति है, परंतु जो जो अपौरुषेय होता है वह वह अमूर्त होता है ऐसी उलटी व्याप्ति दिखाना भी अंवयदृष्टांताभास है, क्योंकि बिजली आदि से व्यभिचार आता है, अर्थात् बिजली अपौरुषेय है परंतु अमूर्त नहीं है।42-43।</span></li> | ||
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<li><span class="HindiText"><strong name="1.8.02" id="1.8.02"> व्यतिरेक | <li><span class="HindiText"><strong name="1.8.02" id="1.8.02"> व्यतिरेक दृष्टांताभास के लक्षण</strong>– | ||
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<li><span class="HindiText"> ‘शब्द अपौरुषेय है क्योंकि अमूर्त है’ इस हेतु में दिया ‘परमाणुवत्’ यह | <li><span class="HindiText"> ‘शब्द अपौरुषेय है क्योंकि अमूर्त है’ इस हेतु में दिया ‘परमाणुवत्’ यह दृष्टांत साध्य विकल है, क्योंकि अपौरुषेयत्व रूप साध्य का व्यतिरेक (अभाव) पौरुषेयत्व परमाणु में नहीं पाया जाता। </span></li> | ||
<li><span class="HindiText"> | <li><span class="HindiText"> ‘इंद्रियसुखवत्’ यह दृष्टांत साधन विकल है, क्योंकि अमूर्तत्व रूप साधन का व्यतिरेक इसमें नहीं पाया जाता। </span></li> | ||
<li><span class="HindiText"> ‘आकाशवत्’ यह | <li><span class="HindiText"> ‘आकाशवत्’ यह दृष्टांत उभय विकल है, क्योंकि इसमें पौरुषेयत्व मूर्तत्व दोनों ही नहीं रहते। </span></li> | ||
<li><span class="HindiText"> जो मूर्त नहीं है वह अपौरुषेय भी नहीं है इस प्रकार | <li><span class="HindiText"> जो मूर्त नहीं है वह अपौरुषेय भी नहीं है इस प्रकार व्यतिरेकदृष्टांताभास है। क्योंकि व्यतिरेक में पहले साध्याभाव और पीछे साधनाभाव कहा जाता है परंतु यहाँ पहले साधनाभाव और पीछे साध्याभाव कहा गया है इसलिए व्यतिरेक दृष्टांताभास है।44-45। </span></li> | ||
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<li><span class="HindiText"><strong name="1.9" name="1.9" id="1.9">विषम | <li><span class="HindiText"><strong name="1.9" name="1.9" id="1.9">विषम दृष्टांत का लक्षण</strong></span><br> न्यायविनिश्चय/ मू./1/42/292 <span class="SanskritText">विषमोऽयमुपन्यासस्तयोश्चेत्सदसत्त्वत:...।42। </span>=<span class="HindiText">दृष्टांत के सदृश न हो उसे विषम दृष्टांत कहते हैं, और वह विषमता भी देश और काल के सत्त्व और असत्त्व की अपेक्षा से दो प्रकार की हो जाती है। ज्ञान वाले क्षेत्र में असत् होते हुए भी ज्ञान के काल में उसकी व्यक्ति का सद्भाव हो अथवा क्षेत्र की भाँति ज्ञान के काल में भी उसका सद्भाव न हो ऐसे दृष्टांत विषम कहलाते हैं। </span></li> | ||
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<li><span class="HindiText"><strong id="2" name="2" name="2" id="2"> | <li><span class="HindiText"><strong id="2" name="2" name="2" id="2"> दृष्टांत-निर्देश</strong> | ||
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<li><span class="HindiText"><strong name="2.1" id="2.1"> | <li><span class="HindiText"><strong name="2.1" id="2.1"> दृष्टांत सर्वदेशी नहीं होता</strong></span><br> धवला 13/5,5,120/380/9 <span class="PrakritText"> ण, सव्वप्पणा सरिसदिट्ठंताभावादो। भावे वा चंदमुही कण्णे त्ति ण घडदे, चंदम्मि भूमुहक्खि-णासादीणमभावादो। </span>=<span class="HindiText">दृष्टांत सर्वात्मना सदृश नहीं पाया जाता। यदि कहो कि सर्वात्मना सदृश दृष्टांत होता है तो ‘चंद्रमुखी कन्या’ यह घटित नहीं हो सकता, क्योंकि चंद्र में भ्रू, मुख, आँख और नाक आदिक नहीं पाये जाते।</span></li> | ||
<li><span class="HindiText"><strong name="2.2" id="2.2">अनिष्णातजनों के लिए ही | <li><span class="HindiText"><strong name="2.2" id="2.2">अनिष्णातजनों के लिए ही दृष्टांत का प्रयोग होता है</strong></span><br> परीक्षामुख/3/46 <span class="SanskritText">बालव्युत्पत्त्यर्थं–तत्त्रयोपगमे शास्त्र एवासौ न वादे, अनुपयोगात् ।46। </span>=<span class="HindiText">दृष्टांतादि के स्वरूप से सर्वथा अनभिज्ञ बालकों के समझाने के लिए यद्यपि दृष्टादि (उपनयनिगमन) कहना उपयोगी है, परंतु शास्त्र में ही उनका स्वरूप समझना चाहिए, बाद में नहीं, क्योंकि वाद व्युत्पन्नों का ही होता है।46।</span></li> | ||
<li><span class="HindiText"><strong name="2.3" id="2.3"> व्यतिरेक रूप ही | <li><span class="HindiText"><strong name="2.3" id="2.3"> व्यतिरेक रूप ही दृष्टांत नहीं होते</strong></span><br> न्यायविनिश्चय/ मू./2/212/241 <span class="SanskritGatha">सर्वत्रैव न दृष्टांतोऽनंवयेनापि साधनात् । अन्यथा सर्वभावानामसिद्धोऽयं क्षणक्षय:।212।</span> =<span class="HindiText">सर्वत्र अन्वय को ही सिद्ध करने वाले दृष्टांत नहीं होते, क्योंकि दूसरे के द्वारा अभिमत सर्व ही भावों की सिद्धि उससे नहीं होती, सपक्ष और विपक्ष इन दोनों धर्मियों का अभाव होने से।</span></li> | ||
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Revision as of 16:25, 19 August 2020
हेतु की सिद्धि में साधनभूत कोई दृष्ट पदार्थ जिससे कि वादी व प्रतिवादी दोनों सम्मत हों, दृष्टांत कहलाता है। और उसको बताने के लिए जिन वचनों का प्रयोग किया जाता है वह उदाहरण कहलाता है। अनुमान ज्ञान में इसका एक प्रमुख स्थान है।
- दृष्टांत व उदाहरणों में भेद व लक्षण
- दृष्टांत व उदाहरण सामान्य का लक्षण
न्यायदर्शन सूत्र/ मू./1/1/25/30 लौकिकपरीक्षकाणां यस्मिन्नर्थे बुद्धिसाम्यं स दृष्टांत:।25। =लौकिक (शास्त्र से अनभिज्ञ) और परीक्षक (जो प्रमाण द्वारा शास्त्र की परीक्षा कर सकते हैं) इन दोनों के ज्ञान की समता जिसमें हो उसे दृष्टांत कहते हैं।
न्यायविनिश्चय/ मू./2/211/240 संबंधो यत्र निर्ज्ञात: साध्यसाधनधर्मयो:। स दृष्टांतस्तदाभासा: साध्यादिविकलादय:।21। =जहाँ या जिसमें साध्य व साधन इन दोनों धर्मों के अविनाभावी संबंध की प्रतिपत्ति होती है वह दृष्टांत है।
न्यायदीपिका/3/32/78/3 व्याप्तिपूर्वकदृष्टांतवचनमुदाहरणम् ।
न्यायदीपिका/3/64-65/104/1 उदाहरणं च सम्यग्दृष्टांतवचनम् । कोऽयं दृष्टांतो नाम ? इति चेत्; उच्यते; व्याप्तिसंप्रतिपत्तिप्रदेशो दृष्टांत:।...तस्या: संप्रतिपत्तिनामवादिनोर्बुद्धिसाम्यम् । सैषा यत्र संभवति स संप्रत्तिपत्तिप्रदेशो महानसादिर्ह्रदादिश्च तत्रैव धूमादौ सति नियमेनाऽग्न्यादिरस्ति, अग्न्याद्यभावे नियमेन धूमादिर्नास्तीति संप्रत्तिपत्तिसंभवात् । ...दृष्ठांतौ चैतौ दृष्टावंतौ धर्मौ साध्यसाधनरूपौ यत्र स दृष्टांत इत्यर्थानुवृत्ते:। उक्त लक्षणस्यास्य दृष्टांतस्य यत्सम्यग्वचनं तदुदाहरणम् । न च वचनमात्रमयं दृष्टांत इति। किंतु दृष्टांतत्वेन वचनम् । तद्यथा–यो यो धूमवानसावसावग्निमान् यथा महानस इति। यत्राग्निर्नास्ति तत्र धूमोऽपि नास्ति यथा महाहृद इति च। एवंविधेनैव वचनेन दृष्टांतस्य दृष्टांतत्वेन प्रतिपादनसंभवात् । =व्याप्ति को कहते हुए दृष्टांत के कहने को उदाहरण कहते हैं। अथवा–यथार्थ दृष्टांत के कहने को उदाहरण कहते हैं। यह दृष्टांत क्या है ? जहाँ साध्य और साधन की व्याप्ति दिखलायी जाती है उसे दृष्टांत कहते हैं।...वादी और प्रतिवादी की बुद्धि साम्यता को व्याप्ति की संप्रतिपत्ति कहते हैं। और संप्रतिपत्ति जहाँ संभव है वह संप्रतिपत्ति प्रदेश कहलाता है जैसे–रसोई घर आदि अथवा तालाब आदि। क्योंकि ‘वहीं धूमादि होने पर नियम से अग्नि आदि पाये जाते हैं, और अग्न्यादि के अभाव में नियम से धूमादि नहीं पाये जाते’ इस प्रकार की बुद्धिसाम्यता संभव है।...ये दोनों ही दृष्टांत हैं, क्योंकि साध्य और साधनरूप अंत अर्थात् धर्म जहाँ देखे जाते हैं वह दृष्टांत कहलाता है, ऐसा ‘दृष्टांत’ शब्द का अर्थ उनमें पाया जाता है। इस उपर्युक्त दृष्टांत का जो सम्यक् वचन है–प्रयोग है वह उदाहरण है। ‘केवल’ वचन का नाम उदाहरण नहीं है, किंतु दृष्टांत रूप से जो वचन प्रयोग है वह उदाहरण है। जैसे–जो-जो धूमवाला होता है वह-वह अग्निवाला होता है, जैसे रसोईघर, और जहाँ अग्नि नहीं है वहाँ धूम भी नहीं है जैसे-तालाब। इस प्रकार के वचन के साथ ही दृष्टांत का दृष्टांतरूप से प्रतिपादन होता है।
- दृष्टांत व उदाहरण के भेद
न्यायविनिश्चय/ वृ./2/211/240/25 स च द्वेधा साधर्म्येण वैधर्म्येण च। =दृष्टांत के दो भेद हैं, साधर्म्य और वैधर्म्य।
परीक्षामुख/3/47/21 दृष्टांतो द्वेधा, अन्वयव्यतिरेकभेदात् ।47। =दृष्टांत के दो भेद हैं– एक अन्वय दृष्टांत दूसरा व्यतिरेक दृष्टांत। ( न्यायदीपिका/3/32/78/7 ); ( न्यायदीपिका/3/64/104/8 )।
- साधर्म्य और वैधर्म्य सामान्य का लक्षण
न्यायदर्शन सूत्र/ मू. व टी./1/1/36/37/35 साध्यसाधर्म्यात्तद्धर्मभावी दृष्टांत उदाहरणम् ।36। ...शब्दोऽप्युत्पत्तिधर्मकत्वादनित्य: स्थाल्यादिवदित्युदाह्रियते।।टीका।। तद्विपर्ययाद्वा विपरीतम् ।37। ...अनित्य: शब्द उत्पत्तिधर्मकत्वात् अनुत्पतिधर्मकं नित्यमात्मादि सोऽयमात्मादिर्दृष्टांत:। =साध्य के साथ तुल्य धर्मता से साध्य का धर्म जिसमें हो ऐसे दृष्टांत को (साधर्म्य) उदाहरण कहते हैं।36। शब्द अनित्य है, क्योंकि उत्पत्ति धर्मवाला है, जो-जो उत्पत्ति धर्मवाला होता है वह-वह अनित्य होता है जैसे कि ‘घट’। यह अन्वयी (साधर्म्य) उदाहरण का लक्षण कहा। साध्य के विरुद्ध धर्म से विपरीत (वैधर्म्य) उदाहरण होता है, जैसे शब्द अनित्य है, उत्पत्यर्थ वाला होने से, जो उत्पत्ति धर्मवाला नहीं होता है, वह नित्य देखा गया है, जैसे–आकाश, आत्मा, काल आदि।
न्यायविनिश्चय/ टी./2/211/240/20 तत्र साधर्म्येण कृतकत्वादनित्यत्वे साध्ये घट:, तत्रान्वयमुखेन तयो: संबंधप्रतिपत्ते:। वैधर्म्येणाकाशं तत्रापि व्यतिरेकद्वारेण तयोस्तत्परिज्ञानात् । =कृतक होने से अनित्य है जैसे कि ‘घट’। इस हेतु में दिया गया दृष्टांत साधर्म्य है। यहाँ अन्वय की प्रधानता से कृतकत्व और अनित्यत्व इन दोनों की व्याप्ति दर्शायी गयी है। अकृतक होने से अनित्य नहीं है जैसे कि ‘आकाश’, यहाँ व्यतिरेक द्वारा कृतक व अनित्यत्व धर्मों की व्याप्ति दर्शायी गयी है। ( न्यायदीपिका/3/32/78/7 )।
परीक्षामुख/3/48-49/21 साध्यं व्याप्तं साधनं यत्र प्रदर्श्यते सोऽंवयदृष्टांत:।48। साध्याभावे साधनाभावो यत्र कथ्यते स व्यतिरेक दृष्टांत:।49। =जहाँ हेतु की मौजूदगी से साध्य की मौजूदगी बतलायी जाये उसे अन्वय दृष्टांत कहते हैं। और जहाँ साध्य के अभाव में साधन का अभाव कहा जाय उसे व्यतिरेक के दृष्टांत कहते हैं।48-49।
न्यायदीपिका/3/32/78/3 यो यो धूमवानसावसावग्निमान्, यथा महानस इति साधर्म्योदाहरणम् । यो योऽग्मिमान्न भवति स स धूमवान्न भवति, यथा महाहृद इति वैधर्म्योदाहरणम् । पूर्वत्रोदाहरणभेदे हेतोरन्वयव्याप्ति: प्रदर्श्यते द्वितीये तु व्यतिरेकव्याप्ति:। तद्यथा–अंवयव्याप्तिप्रदर्शनस्थानमंवयदृष्टांत:, व्यतिरेकव्याप्तिप्रदर्शनप्रदेशो व्यतिरेकदृष्टांत:।
न्यायदीपिका/3/64/104/7 धूमादौ सति नियमेनाग्न्यादिरस्ति, अग्न्याद्यभावे नियमेन धूमादिर्नास्तीति तत्र महानसादिरंवयदृष्टांत:। अत्र साध्यसाधनयोर्भावरूपान्वयसंप्रतिपत्तिसंभवात् ह्रदादिस्तु व्यतिरेकदृष्टांत:। अत्र साध्यसाधनयोरभावरूपव्यतिरेकसंप्रतिपत्तिसंभवात् । =जो जो धूमवाला है वह वह अग्नि वाला है जैसे–रसोईघर। यह साधर्म्य उदाहरण है। जो जो अग्निवाला नहीं होता वह वह धूमवाला नहीं होता जैसे–तालाब। यह वैधर्म्य उदाहरण है। उदाहरण के पहले भेद में हेतु की अन्वय व्याप्ति (साध्य की मौजूदगी में साधन की मौजूदगी) दिखायी जाती है और दूसरे भेद में व्यतिरेकव्याप्ति (साध्य की गैरमौजूदगी में साधन की गैरमौजूदगी) बतलायी जाती है। जहाँ अन्वय व्याप्ति प्रदर्शित की जाती है उसे अन्वय दृष्टांत कहते हैं, और जहाँ व्यतिरेक व्याप्ति दिखायी जाती है उसे व्यतिरेक दृष्टांत कहते हैं। धूमादिक होने पर नियम से अग्नि आदि पाये जाते हैं, और अग्न्यादि के अभाव में नियम में धूमादिक नहीं पाये जाते। उनमें रसोर्इशाला आदि दृष्टांत अन्वय है, क्योंकि उससे साध्य और साधन के सद्भावरूप अन्वय बुद्धि होती है। और तालाबादि व्यतिरेक दृष्टांत हैं, क्योंकि उससे साध्य और साधन के अभावरूप व्यतिरेक का ज्ञान होता है।
- उदाहरणाभास सामान्य का लक्षण व भेद
न्यायदीपिका/3/66/105/10 उदाहरणलक्षणरहित उदाहरणवदवभासमान उदाहरणाभास:। उदाहरणलक्षणराहित्यं द्वेधा संभवति, दृष्टांतस्यासम्यग्वचनेनादृष्टांतस्य सम्यग् वचनेन वा। =जो उदाहरण के लक्षण से रहित है किंतु उदाहरण जैसा प्रतीत होता है वह उदाहरणाभास है। उदाहरण के लक्षण की रहितता (अभाव) दो तरह से होता है–1. दृष्टांत का सम्यग्वचन न होना और दूसरा जो दृष्टांत नहीं है उसका सम्यग्वचन होना।
- उदाहरणाभास के भेदों के लक्षण
न्यायदीपिका/3/65/105/12 तत्राद्यं यथा, यो योऽग्निमान् स स धूमवान्, यथा महानस इति, यत्र यत्र धूमो नास्ति तत्र तत्राग्निर्नास्ति, यथा महाहृद इति च व्याप्यव्यापकयोर्वैपरीत्येन कथनम् ।
न्यायदीपिका/3/68/108/7 अदृष्टांतवचनं तु, अन्वयव्याप्तौ व्यतिरेकदृष्टांतवचनम्, व्यतिरेकव्याप्तावंवयदृष्टांतवचनं च, उदाहरणाभासौ। स्पष्टमुदाहरणम् । =उनमें पहले का उदाहरण इस प्रकार है—जो जो अग्निवाला होता है वह-वह धूमवाला होता है, जैसे रसोईघर। जहाँ-जहाँ धूम नहीं है वहाँ-वहाँ अग्नि नहीं है जैसे–तालाब। इस तरह व्याप्य और व्यापक का विपरीत (उलटा) कथन करना दृष्टांत का असम्यग्वचन है। ‘अदृष्टांत वचन’ (जो दृष्टांत नहीं है उसका सम्यग्वचन होना) नाम का दूसरा उदाहरणाभास इस प्रकार है–अन्वय व्याप्ति में व्यतिरेक दृष्टांत कह देना, और व्यतिरेक व्याप्ति में अन्वय दृष्टांत बोलना, उदाहरणाभास है, इन दोनों के उदाहरण स्पष्ट हैं।
- दृष्टांताभास सामान्य के लक्षण
न्यायविनिश्चय/ मू./2/211/240 संबंधी यत्र निर्ज्ञात: साध्यसाधनधर्मयो:। स दृष्टांतस्तदाभासा: साध्यादिविकलादय:। =जो दृष्टांत न होकर दृष्टांतवत् प्रतीत होवें वे दृष्टांताभास हैं।
पंचाध्यायी / पूर्वार्ध/410 दृष्टांताभासा इति निक्षिप्ता: स्वेष्टसाध्यशून्यत्वात् ।...।410। =इस प्रकार दिये हुए दृष्टांत अपने इष्ट साध्य के द्वारा शून्य होने से अर्थात् अपने इष्ट साध्य के साधक न होने से दृष्टांताभास है...।410। - दृष्टांताभास के भेद
न्यायविनिश्चय/ टी./2/211/240/26 भावार्थ–साधर्म्यदृष्टांताभास नौ प्रकार का है–साध्य विकल, साधन विकल, उभय विकल, संदिग्धसाध्य, संदिग्धसाधन, संदिग्धोभय, अन्वयासिद्ध, अप्रदर्शितान्वय और विपरीतान्वय।
इसी प्रकार वैधर्म्य दृष्टांताभास भी नौ प्रकार का होता है–साध्य विकल, साधन विकल, उभय विकल संदिग्ध, साध्य, संदिग्धसाधन, संदिग्धोभय, अव्यतिरेक, अप्रदर्शित व्यतिरेक, विपरीत व्यतिरेक। परीक्षामुख/6/40,44 दृष्टांताभासा अन्वयेऽसिद्धसाध्यसाधनोभया:।40। व्यतिरेकसिद्धतद्व्यतिरेका:।45। =अंवयदृष्टांता भास तीन प्रकार का है–साध्यविकल, साधनविकल और उभयविकल।40। व्यतिरेकदृष्टांताभास के तीन भेद हैं–साध्यव्यतिरेकविकल, साधनव्यतिरेकविकल एवं साध्यसाधन उभय व्यतिरेकविकल। - दृष्टांताभास के भेदों के लक्षण
न्यायविनिश्चय/ वृ./2/211/240/28 तत्र नित्यशब्दोऽमूर्तत्वादिति साधने कर्मवदिति साध्यविकलं निदर्शनम् अनित्यत्वात् कर्मण:। परमाणु वदिति साधनविकलं मूर्तत्वात् परमाणुनाम् । घटवदित्युभयविकलम् अनित्यत्वान्मूर्तत्वाच्च घटस्य। ‘रागादिमान् सुगत: कृतकत्वात्’ इत्यत्र रथ्यापुरुषवदिति संदिग्धसाध्यं रथ्यापुरुषं रागादिमत्त्वस्य निश्चेतुमशक्यत्वात् प्रत्यक्षस्याप्रवृत्ते: व्यापारादेश्च रागादिप्रभवस्यान्यत्रापि संभवात्, वीतरागाणामपि सरागवच्चेष्टोपपत्ते:। मरणधर्मायं रागादिमत्त्वात् इत्यत्र संदिग्धसाधनं तत्र रागादिमत्त्वाऽनिश्चयस्योक्तत्वात् । अतएव असर्वज्ञोऽयं रागादिमत्त्वादित्यंतसंदिग्धोभयम् । रागादिमत्त्वे वक्तृत्वादित्यनन्वयम्, रागादिमत्त्वस्यैव तत्रासिद्धौ तत्रान्वयस्यासिद्धे:। अप्रदर्शितान्वयं यथा शब्दोऽनित्य: कृतकत्वात् घटादिवदिति। न ह्यत्र ‘यद्यत्कृतकं तत्तदनित्यम्’ इत्यन्वयदर्शनमस्ति। विपरीतान्वयं यथा यदनित्यं तत्कृतकमिति। तदेवं नव साधर्म्येण दृष्टांताभासा: । वैधर्म्येणापि नवैव। तद्यथा नित्य: शब्द: अमूर्तत्वात् यदनित्यं न भवति तदमूर्तमपि न भवति परमाणुवदिति साध्यव्यावृत्तं परमाणुषु साधनव्यावृत्तावपि साध्यस्य नित्यत्वस्याव्यावृत्ते:। कर्मवदिति साधनाव्यावृत्तं तत्र साध्यव्यावृत्तावपि साधनस्य अमूर्तत्वस्याव्यावृत्ते: आकाशवदित्युभयावृत्तम् अमूर्तत्वनित्यत्वयोरुभयोरप्याकाशादव्यावृत्ते:। संदिग्धसाध्यव्यतिरेकं यथा सुगत: सर्वज्ञोऽनुपदेशादिप्रमाणोपपन्नतत्त्ववचनात्, यस्तु न सर्वज्ञो नासौ तद्वचनो यथा वीथी पुरुष इति तत्र सर्वज्ञत्वव्यतिरेकस्यानिश्चयात् परचेतोवृत्तीनामित्थंभावेन दुरवबोधत्वात् । संदिग्धसाधनव्यतिरेकं यथा अनित्य: शब्द: सत्त्वात् यदनित्यं न भवति तत्सदपि न भवति यथा गमनमिति, गगने हि सत्त्वव्यावृत्तिरनुपलंभात्, तस्य च न गमकत्वमदृश्यविषयत्वात् । संदिग्धोभयव्यतिरेकं यथा य: संसारी स न तद्वान् यथा बुद्ध इति, बुद्धात् संसारित्वाविद्यादिमत्त्वव्यावृत्ते: अनवधारणात् । तस्य च तृतीये प्रस्तावे निरूपणात् । अव्यतिरेकं यथा नित्य: शब्द: अमूर्तत्त्वात् यन्न नित्यं न तदमूर्तं यथा घट इति घटे साध्यनिवृत्तेर्भावेऽपि हेतुव्यतिरेकस्य तत्प्रयुक्तत्वाभावात् कर्मण्यनित्येऽप्यमूर्तत्वभावात् । अप्रदर्शितव्यतिरेकं यथा अनित्य: शब्द: सत्त्वात् वैधर्म्येण आकाशपुष्पवदितिं। विपरीत व्यतिरेकं यथा अत्रैव साध्ये यत्सन्न भवति तदनित्यमपि न भवति यथा व्योमेति साधनव्यावृत्त्या साध्यनिवृत्तेरुपदर्शनात् । =- अंवयदृष्टांताभास के लक्षण
- ‘अमूर्त होने से शब्द अनित्य है’ इस हेतु में दिया गया ‘कर्मवत्’ ऐसा दृष्टांत साध्यविकल है, क्योंकि कर्म अनित्य है, नित्यत्व रूप साध्य से विपरीत है।
- ‘परमाणुवत्’ ऐसा दृष्टांत देना साधनविकल्प है, क्योंकि वह मूर्त है और अमूर्तत्व रूप साधन से (हेतु से) विपरीत है।
- ‘घटवत्’ ऐसा दृष्टांत देना उभय विकल है। क्योंकि घट मूर्त व अनित्य है। यह अमूर्तत्वरूप साधन तथा अनित्यत्व रूप साध्य से विपरीत है।
- ‘सुगत (बुद्धदेव) राग वाला है, क्योंकि वह कृतक है’ इस हेतु में दिया गया–‘रथ्या पुरुषवत्’ ऐसा दृष्टांत संदिग्ध साध्य है, क्योंकि रथ्यापुरुष में रागादिमत्त्व का निश्चय होना अशक्य है। उसके व्यापार या चेष्टादि पर से भी उसके रागादिमत्त्व की सिद्धि नहीं की जा सकती, क्योंकि वीतरागियों में भी शरीरवत् चेष्टा पायी जाती है।
- तहाँ रागादिमत्त्व की सिद्धि में ‘मरणधर्मापने का’ दृष्टांत देना संदिग्ध साधन है, क्योंकि मरणधर्मा होते हुए भी रागादिधर्मापने का निश्चय नहीं है।
- ‘असर्वज्ञपने का’ दृष्टांत देना संदिग्धसाध्य व संदिग्ध साधन उभयरूप है।
- वक्तृत्वपने का दृष्टांत देना अनन्वय है, क्योंकि रागादिमत्त्व के साथ वक्तृत्व का अन्वय नहीं है।
- ‘कृतक होने से शब्द अनित्य है’ इस हेतु में दिया गया ‘घटवत्’ यह दृष्टांत अप्रदर्शितान्वय है। क्योंकि जो जो कृतक हो वह वह नियम से अनित्य होता है, ऐसा अन्वय पद दर्शाया नहीं गया।
- जो जो अनित्य होता है वह-वह कृतक होता है, यह विपरीतान्वय है।
- व्यतिरेक दृष्टांताभास के लक्षण–
- ‘अमूर्त होने से शब्द अनित्य है, जो-जो नित्य नहीं होता वह-वह अमूर्त नहीं होता’ इस हेतु में दिया गया ‘परमाणुवत्’ यह दृष्टांत साध्य विकल है, क्योंकि परमाणु में साधनरूप अमूर्तत्व की व्यावृत्ति होने पर भी साध्य रूप नित्यत्व की व्यावृत्ति नहीं है।
- उपरोक्त हेतु में दिया गया ‘कर्मवत्’ यह दृष्टांत साधन विकल है, क्योंकि यहाँ साध्यरूप नित्यत्व की व्यावृत्ति होने पर भी साधनरूप अमूर्तत्व की व्यावृत्ति नहीं है।
- उपरोक्त हेतु में ही दिया गया ‘आकाशवत्’ यह दृष्टांत उभय विकल है, क्योंकि यहाँ न तो साध्यरूप नित्यत्व की व्यावृत्ति है, और न साधन रूप नित्यत्व की।
- ‘सुगत सर्वज्ञ है क्योंकि उसके वचन प्रमाण हैं, जो-जो सर्वज्ञ नहीं होता, उसके वचन भी प्रमाण नहीं होते, इस हेतु में दिया गया ‘वीथी पुरुषवत्’ यह दृष्टांत संदिग्ध साध्य है, क्योंकि वीथी पुरुष में साध्यरूप सर्वज्ञत्व के व्यतिरेक का निश्चय नहीं है, दूसरे अन्य के चित्त की वृत्तियों का निश्चय करना शक्य नहीं है।
- ‘सत्त्व होने के कारण शब्द अनित्य है, जो जो अनित्य नहीं होता वह वह सत् भी नहीं होता’ इस हेतु में दिया गया ‘आकाशवत्’ यह दृष्टांत संदिग्ध साधन है, क्योंकि आकाश में न तो साधन रूप सत्त्व की व्यावृत्ति पायी जाती है, और अदृष्ट होने के कारण से न ही उसके सत्त्व का निश्चय हो पाता है।
- ‘अविद्यामत् होने के कारण हरि हर आदि संसारी है, जो जो संसारी नहीं होता वह वह अविद्यामत् भी नहीं होता। इस हेतु में दिया गया ‘बुद्धवत्’ यह दृष्टांत संदिग्धोभय व्यतिरेकी है। क्योंकि बुद्ध के साथ साध्यरूप संसारीपने की और साधन रूप’ ‘अविद्यामत्पने’ दोनों ही की व्यावृत्ति का कोई निश्चय नहीं है।
- अमूर्त होने के कारण से शब्द नित्य है, जो जो नित्य नहीं होता वह वह अमूर्त भी नहीं होता, इस हेतु में दिया गया ‘घटवत्’ यह दृष्टांत अव्यतिरेकी है, क्योंकि घट में साध्यरूप नित्यत्व की निवृत्ति का स्वभाव होते हुए भी साधनरूप अमूर्तत्व की निवृत्ति का अभाव है।
- ‘सत् होने के कारण शब्द अनित्य है, जो जो अनित्य नहीं होता, वह-वह सत् भी नहीं होता’ इस हेतु में दिया गया ‘आकाशपुष्पवत्’ यह दृष्टांत अप्रदर्शित व्यतिरेकी है, क्योंकि आकाश में साध्यरूप अनित्यत्व के साथ साधन रूप सत्त्व का विरोध दर्शाया नहीं गया है।
- ‘जो जो सत् नहीं होता, वह वह अनित्य नहीं होता, इस हेतु में दिया गया आकाशपुष्पवत् यह दृष्टांत विपरीत व्यतिरेकी है, क्योंकि यहाँ आकाश् में साधन रूप सत् की व्यावृत्ति के द्वारा साध्यरूप नित्यत्व की निवृत्ति दिखायी गयी है न कि अनित्यत्व की।
म.मु./6/41-45 अपौरुषेय: शब्दोऽमूर्त्तत्वादिंद्रियसुखपरमाणुघटवत् ।41। विपरीतान्वयश्च यदपौरुषेयं तदमूर्तं। विद्युदादिनातिप्रसंगात् ।42-43। व्यतिरेकसिद्धतदव्यतिरेका: परमाण्विंद्रिंयसुखाकाशवत् विपरीतव्यतिरेकश्च यन्नामूर्तं तन्नापौरुषेयं।44-45।।
- अंवयदृष्टांताभास के लक्षण
- दृष्टांत व उदाहरण सामान्य का लक्षण
- अंवयदृष्टांताभास के लक्षण―
- ‘शब्द अपौरुषेय है क्योंकि वह अमूर्त है’ इस हेतु में दिया गया–‘इंद्रियसुखवत्’ यह दृष्टांत साध्य विकल है क्योंकि इंद्रिय सुख अपौरुषेय नहीं है किंतु पुरुषकृत ही है।
- ‘परमाणुवत्’ यह दृष्टांत साधन विमल है क्योंकि परमाणु में रूप, रस, गंध आदि रहते हैं इसलिए वह मूर्त है अमूर्त नहीं है।
- ‘घटवत्’ यह दृष्टांत उभय विकल है, क्योंकि घट पुरुषकृत् है, और मूर्त्त है, इसलिए इसमें अपौरुषेयत्व साध्य एवं अमूर्तत्व हेतु दोनों ही नहीं रहते।
- उपर्युक्त अनुमान में जो जो अमूर्त होता है वह वह अपौरुषेय होता है, ऐसी व्याप्ति है, परंतु जो जो अपौरुषेय होता है वह वह अमूर्त होता है ऐसी उलटी व्याप्ति दिखाना भी अंवयदृष्टांताभास है, क्योंकि बिजली आदि से व्यभिचार आता है, अर्थात् बिजली अपौरुषेय है परंतु अमूर्त नहीं है।42-43।
- व्यतिरेक दृष्टांताभास के लक्षण–
- ‘शब्द अपौरुषेय है क्योंकि अमूर्त है’ इस हेतु में दिया ‘परमाणुवत्’ यह दृष्टांत साध्य विकल है, क्योंकि अपौरुषेयत्व रूप साध्य का व्यतिरेक (अभाव) पौरुषेयत्व परमाणु में नहीं पाया जाता।
- ‘इंद्रियसुखवत्’ यह दृष्टांत साधन विकल है, क्योंकि अमूर्तत्व रूप साधन का व्यतिरेक इसमें नहीं पाया जाता।
- ‘आकाशवत्’ यह दृष्टांत उभय विकल है, क्योंकि इसमें पौरुषेयत्व मूर्तत्व दोनों ही नहीं रहते।
- जो मूर्त नहीं है वह अपौरुषेय भी नहीं है इस प्रकार व्यतिरेकदृष्टांताभास है। क्योंकि व्यतिरेक में पहले साध्याभाव और पीछे साधनाभाव कहा जाता है परंतु यहाँ पहले साधनाभाव और पीछे साध्याभाव कहा गया है इसलिए व्यतिरेक दृष्टांताभास है।44-45।
- विषम दृष्टांत का लक्षण
न्यायविनिश्चय/ मू./1/42/292 विषमोऽयमुपन्यासस्तयोश्चेत्सदसत्त्वत:...।42। =दृष्टांत के सदृश न हो उसे विषम दृष्टांत कहते हैं, और वह विषमता भी देश और काल के सत्त्व और असत्त्व की अपेक्षा से दो प्रकार की हो जाती है। ज्ञान वाले क्षेत्र में असत् होते हुए भी ज्ञान के काल में उसकी व्यक्ति का सद्भाव हो अथवा क्षेत्र की भाँति ज्ञान के काल में भी उसका सद्भाव न हो ऐसे दृष्टांत विषम कहलाते हैं। - दृष्टांत-निर्देश
- दृष्टांत सर्वदेशी नहीं होता
धवला 13/5,5,120/380/9 ण, सव्वप्पणा सरिसदिट्ठंताभावादो। भावे वा चंदमुही कण्णे त्ति ण घडदे, चंदम्मि भूमुहक्खि-णासादीणमभावादो। =दृष्टांत सर्वात्मना सदृश नहीं पाया जाता। यदि कहो कि सर्वात्मना सदृश दृष्टांत होता है तो ‘चंद्रमुखी कन्या’ यह घटित नहीं हो सकता, क्योंकि चंद्र में भ्रू, मुख, आँख और नाक आदिक नहीं पाये जाते। - अनिष्णातजनों के लिए ही दृष्टांत का प्रयोग होता है
परीक्षामुख/3/46 बालव्युत्पत्त्यर्थं–तत्त्रयोपगमे शास्त्र एवासौ न वादे, अनुपयोगात् ।46। =दृष्टांतादि के स्वरूप से सर्वथा अनभिज्ञ बालकों के समझाने के लिए यद्यपि दृष्टादि (उपनयनिगमन) कहना उपयोगी है, परंतु शास्त्र में ही उनका स्वरूप समझना चाहिए, बाद में नहीं, क्योंकि वाद व्युत्पन्नों का ही होता है।46। - व्यतिरेक रूप ही दृष्टांत नहीं होते
न्यायविनिश्चय/ मू./2/212/241 सर्वत्रैव न दृष्टांतोऽनंवयेनापि साधनात् । अन्यथा सर्वभावानामसिद्धोऽयं क्षणक्षय:।212। =सर्वत्र अन्वय को ही सिद्ध करने वाले दृष्टांत नहीं होते, क्योंकि दूसरे के द्वारा अभिमत सर्व ही भावों की सिद्धि उससे नहीं होती, सपक्ष और विपक्ष इन दोनों धर्मियों का अभाव होने से।