अप्रत्याख्यानवरण: Difference between revisions
From जैनकोष
No edit summary |
No edit summary |
||
Line 1: | Line 1: | ||
<OL start=1 class="HindiNumberList"> <LI> अप्रत्याख्यानावरण कर्मका लक्षण </LI> </OL> | <OL start=1 class="HindiNumberList"> <LI> अप्रत्याख्यानावरण कर्मका लक्षण </LI> </OL> | ||
[[सर्वार्थसिद्धि]] अध्याय संख्या ८/९/३८६/७ यदुदयाद्देशविरतिं संयमासंयमाख्यामल्पामपि कर्तुं न शक्नोति ते देशप्रत्याख्यानमावरणवन्तोऽप्रत्याख्यानावरणाः क्रोधमानमायालोभाः।< | <p class="SanskritPrakritSentence">[[सर्वार्थसिद्धि]] अध्याय संख्या ८/९/३८६/७ यदुदयाद्देशविरतिं संयमासंयमाख्यामल्पामपि कर्तुं न शक्नोति ते देशप्रत्याख्यानमावरणवन्तोऽप्रत्याख्यानावरणाः क्रोधमानमायालोभाः।</p> | ||
<p class="HindiSentence">= जिनके उदयसे संयमासंयम नामवाले देशविरतिको यह जीव स्वल्प भी करनेमें समर्थ नहीं होता है वे देशप्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान, माया और लोभ हैं। </p> | <p class="HindiSentence">= जिनके उदयसे संयमासंयम नामवाले देशविरतिको यह जीव स्वल्प भी करनेमें समर्थ नहीं होता है वे देशप्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान, माया और लोभ हैं। </p> | ||
([[राजवार्तिक | राजवार्तिक]] अध्याय संख्या ८/९/५/५७५/१) ([[धवला]] पुस्तक संख्या ६/१-९,१,२३/४,४/४) ([[धवला]] पुस्तक संख्या १३/५,५,९५/३६०/१०) ([[गोम्मट्टसार कर्मकाण्ड]] / [[गोम्मट्टसार कर्मकाण्ड जीव तत्त्व प्रदीपिका| जीव तत्त्व प्रदीपिका ]] टीका गाथा संख्या ४५/४६/१२) ([[गोम्मट्टसार जीवकाण्ड]] / [[गोम्मट्टसार जीवकाण्ड जीव तत्त्व प्रदीपिका| जीव तत्त्व प्रदीपिका ]] टीका गाथा संख्या ३३/२८/४) ([[गोम्मट्टसार जीवकाण्ड]] / [[गोम्मट्टसार जीवकाण्ड जीव तत्त्व प्रदीपिका| जीव तत्त्व प्रदीपिका ]] टीका गाथा संख्या २८३/६०८/१४)<br> | ([[राजवार्तिक | राजवार्तिक]] अध्याय संख्या ८/९/५/५७५/१) ([[धवला]] पुस्तक संख्या ६/१-९,१,२३/४,४/४) ([[धवला]] पुस्तक संख्या १३/५,५,९५/३६०/१०) ([[गोम्मट्टसार कर्मकाण्ड]] / [[गोम्मट्टसार कर्मकाण्ड जीव तत्त्व प्रदीपिका| जीव तत्त्व प्रदीपिका ]] टीका गाथा संख्या ४५/४६/१२) ([[गोम्मट्टसार जीवकाण्ड]] / [[गोम्मट्टसार जीवकाण्ड जीव तत्त्व प्रदीपिका| जीव तत्त्व प्रदीपिका ]] टीका गाथा संख्या ३३/२८/४) ([[गोम्मट्टसार जीवकाण्ड]] / [[गोम्मट्टसार जीवकाण्ड जीव तत्त्व प्रदीपिका| जीव तत्त्व प्रदीपिका ]] टीका गाथा संख्या २८३/६०८/१४)<br> | ||
Line 7: | Line 7: | ||
<LI> अप्रत्याख्यानावरणमें दशों करणोंकी संभावना।-<b>देखे </b>[[करण]] २। </LI> </UL> | <LI> अप्रत्याख्यानावरणमें दशों करणोंकी संभावना।-<b>देखे </b>[[करण]] २। </LI> </UL> | ||
<OL start=2 class="HindiNumberList"> <LI> अप्रत्याख्यानावरण कषाय देशव्रतको घातती है </LI> </OL> | <OL start=2 class="HindiNumberList"> <LI> अप्रत्याख्यानावरण कषाय देशव्रतको घातती है </LI> </OL> | ||
[[पंचसंग्रह प्राकृत| पंचसंग्रह]] / प्राकृत अधिकार संख्या १/११५ पढमो दंसणघाई बिदिओ तह घाइ देसविरइ त्ति।< | <p class="SanskritPrakritSentence">[[पंचसंग्रह प्राकृत| पंचसंग्रह]] / प्राकृत अधिकार संख्या १/११५ पढमो दंसणघाई बिदिओ तह घाइ देसविरइ त्ति।</p> | ||
<p class="HindiSentence">= प्रथम अनन्तानुबन्धी तो सम्यग्दर्शनका घात करती है, और द्वितीय अप्रत्याख्यानावरण कषाय देशविरतिकी घातक है।</p> | <p class="HindiSentence">= प्रथम अनन्तानुबन्धी तो सम्यग्दर्शनका घात करती है, और द्वितीय अप्रत्याख्यानावरण कषाय देशविरतिकी घातक है।</p> | ||
([[गोम्मट्टसार कर्मकाण्ड]] / मूल गाथा संख्या ४५/४६) ([[गोम्मट्टसार जीवकाण्ड]] / मूल गाथा संख्या २८३/६०८) ([[पंचसंग्रह संस्कृत| पंचसंग्रह]] / संस्कृत अधिकार संख्या १/२०५)<br> | ([[गोम्मट्टसार कर्मकाण्ड]] / मूल गाथा संख्या ४५/४६) ([[गोम्मट्टसार जीवकाण्ड]] / मूल गाथा संख्या २८३/६०८) ([[पंचसंग्रह संस्कृत| पंचसंग्रह]] / संस्कृत अधिकार संख्या १/२०५)<br> | ||
<OL start=3 class="HindiNumberList"> <LI> अप्रत्याख्यानावरण कषायका वासना काल </LI> </OL> | <OL start=3 class="HindiNumberList"> <LI> अप्रत्याख्यानावरण कषायका वासना काल </LI> </OL> | ||
[[गोम्मट्टसार कर्मकाण्ड]] / मूल गाथा संख्या ४६/४७ अन्तर्मुहूर्तः पक्षः षण्मासाः संख्यासंख्यायानन्तभवाः। संज्वलनाद्यानां वासनाकालः तू नियमेन। अप्रत्याख्यानावरणानां षण्मासाः।< | <p class="SanskritPrakritSentence">[[गोम्मट्टसार कर्मकाण्ड]] / मूल गाथा संख्या ४६/४७ अन्तर्मुहूर्तः पक्षः षण्मासाः संख्यासंख्यायानन्तभवाः। संज्वलनाद्यानां वासनाकालः तू नियमेन। अप्रत्याख्यानावरणानां षण्मासाः।</p> | ||
<p class="HindiSentence">= संज्वलनादि कषायोंका वासनाकाल नियमसे अन्तर्मुहूर्त, एक पक्ष, छः मास तथा संख्यात असंख्यात व अनन्त भव है। अप्रत्याख्यानावरणका छः मास है।</p> | <p class="HindiSentence">= संज्वलनादि कषायोंका वासनाकाल नियमसे अन्तर्मुहूर्त, एक पक्ष, छः मास तथा संख्यात असंख्यात व अनन्त भव है। अप्रत्याख्यानावरणका छः मास है।</p> | ||
<UL start=0 class="BulletedList"> <LI> कषायोंकी तीव्रता मन्दतामें अप्रत्याख्यानावरण नहीं बल्कि लेश्या कारण है।-<b>देखे </b>[[कषाय]] /३। </LI> </UL> | <UL start=0 class="BulletedList"> <LI> कषायोंकी तीव्रता मन्दतामें अप्रत्याख्यानावरण नहीं बल्कि लेश्या कारण है।-<b>देखे </b>[[कषाय]] /३। </LI> </UL> |
Revision as of 20:52, 24 May 2009
- अप्रत्याख्यानावरण कर्मका लक्षण
सर्वार्थसिद्धि अध्याय संख्या ८/९/३८६/७ यदुदयाद्देशविरतिं संयमासंयमाख्यामल्पामपि कर्तुं न शक्नोति ते देशप्रत्याख्यानमावरणवन्तोऽप्रत्याख्यानावरणाः क्रोधमानमायालोभाः।
= जिनके उदयसे संयमासंयम नामवाले देशविरतिको यह जीव स्वल्प भी करनेमें समर्थ नहीं होता है वे देशप्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान, माया और लोभ हैं।
( राजवार्तिक अध्याय संख्या ८/९/५/५७५/१) (धवला पुस्तक संख्या ६/१-९,१,२३/४,४/४) (धवला पुस्तक संख्या १३/५,५,९५/३६०/१०) (गोम्मट्टसार कर्मकाण्ड / जीव तत्त्व प्रदीपिका टीका गाथा संख्या ४५/४६/१२) (गोम्मट्टसार जीवकाण्ड / जीव तत्त्व प्रदीपिका टीका गाथा संख्या ३३/२८/४) (गोम्मट्टसार जीवकाण्ड / जीव तत्त्व प्रदीपिका टीका गाथा संख्या २८३/६०८/१४)
- अप्रत्याख्यानावरण प्रकृतिकी बंध उदय सत्त्व प्ररूपणाएँ व तत्सम्बन्धी नियम व शंका समाधान।-देखे वह वह नाम ।
- अप्रत्याख्यानावरणका सर्वघातीपना-देखे अनुभाग ४।
- अप्रत्याख्यानावरणमें दशों करणोंकी संभावना।-देखे करण २।
- अप्रत्याख्यानावरण कषाय देशव्रतको घातती है
पंचसंग्रह / प्राकृत अधिकार संख्या १/११५ पढमो दंसणघाई बिदिओ तह घाइ देसविरइ त्ति।
= प्रथम अनन्तानुबन्धी तो सम्यग्दर्शनका घात करती है, और द्वितीय अप्रत्याख्यानावरण कषाय देशविरतिकी घातक है।
(गोम्मट्टसार कर्मकाण्ड / मूल गाथा संख्या ४५/४६) (गोम्मट्टसार जीवकाण्ड / मूल गाथा संख्या २८३/६०८) ( पंचसंग्रह / संस्कृत अधिकार संख्या १/२०५)
- अप्रत्याख्यानावरण कषायका वासना काल
गोम्मट्टसार कर्मकाण्ड / मूल गाथा संख्या ४६/४७ अन्तर्मुहूर्तः पक्षः षण्मासाः संख्यासंख्यायानन्तभवाः। संज्वलनाद्यानां वासनाकालः तू नियमेन। अप्रत्याख्यानावरणानां षण्मासाः।
= संज्वलनादि कषायोंका वासनाकाल नियमसे अन्तर्मुहूर्त, एक पक्ष, छः मास तथा संख्यात असंख्यात व अनन्त भव है। अप्रत्याख्यानावरणका छः मास है।
- कषायोंकी तीव्रता मन्दतामें अप्रत्याख्यानावरण नहीं बल्कि लेश्या कारण है।-देखे कषाय /३।