द्रव्यप्राण: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
(Imported from text file) |
||
Line 1: | Line 1: | ||
<p> पाँच | <p> पाँच इंद्रियां, मन, वचन और काय (तीन बल) आयु तथा श्वासोच्छ्वास ये दस प्राण । संज्ञी-पंचेंद्रिय के ये सभी होते हैं । असंज्ञी-पंचेंद्रिय के मन न होने से नौ, चतुरिंद्रिय के कर्णेंद्रिय और मन न होने से आठ, त्रींद्रिय के मन, कर्ण और नेत्र न होने से सात, द्वींद्रिय के मन, कर्ण, चक्षु और नासिका का अभाव होने से छ: और एकेंद्रिय के रसना, नासिका, चक्षु, श्रोत्र, मन और वचन का अभाव होने से चार प्राण होते हैं । <span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 16.99-102 </span></p> | ||
Line 5: | Line 5: | ||
[[ द्रव्य-पल्य | पूर्व पृष्ठ ]] | [[ द्रव्य-पल्य | पूर्व पृष्ठ ]] | ||
[[ | [[ द्रव्यबंध | अगला पृष्ठ ]] | ||
</noinclude> | </noinclude> | ||
[[Category: पुराण-कोष]] | [[Category: पुराण-कोष]] | ||
[[Category: द]] | [[Category: द]] |
Revision as of 16:25, 19 August 2020
पाँच इंद्रियां, मन, वचन और काय (तीन बल) आयु तथा श्वासोच्छ्वास ये दस प्राण । संज्ञी-पंचेंद्रिय के ये सभी होते हैं । असंज्ञी-पंचेंद्रिय के मन न होने से नौ, चतुरिंद्रिय के कर्णेंद्रिय और मन न होने से आठ, त्रींद्रिय के मन, कर्ण और नेत्र न होने से सात, द्वींद्रिय के मन, कर्ण, चक्षु और नासिका का अभाव होने से छ: और एकेंद्रिय के रसना, नासिका, चक्षु, श्रोत्र, मन और वचन का अभाव होने से चार प्राण होते हैं । वीरवर्द्धमान चरित्र 16.99-102