अर्थ शुद्धि: Difference between revisions
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[[मूलाचार]] / [[आचारवृत्ति]] / गाथा संख्या २८५ विंजणसुद्धं सुत्तं अत्थविसुद्धं च तदुभयविसुद्धं। पयदेण च जप्पंतो णाणविसुद्धो हवइ एसो ।।२८५।।< | <p class="SanskritPrakritSentence">[[मूलाचार]] / [[आचारवृत्ति]] / गाथा संख्या २८५ विंजणसुद्धं सुत्तं अत्थविसुद्धं च तदुभयविसुद्धं। पयदेण च जप्पंतो णाणविसुद्धो हवइ एसो ।।२८५।।</p> | ||
<p class="HindiSentence">= जो सूत्रको अक्षरशुद्ध अर्थशुद्ध अथवा दोनों कर शुद्ध सावधानीसे पढ़ता पढ़ाता है, उसीके शुद्ध ज्ञान होता है।</p> | <p class="HindiSentence">= जो सूत्रको अक्षरशुद्ध अर्थशुद्ध अथवा दोनों कर शुद्ध सावधानीसे पढ़ता पढ़ाता है, उसीके शुद्ध ज्ञान होता है।</p> | ||
[[भगवती आराधना]] / [[विजयोदयी टीका]]/ गाथा संख्या ११३/२६१/१२ अथ अर्थ शब्देन किमुच्यते। व्यञ्जनशब्दस्य सांनिध्यादर्थशब्दः शब्दाभिधेये वर्तते, तेन सूत्रार्थोऽर्थ इति गृह्यते। तस्य का शुद्धिः। विपरीतरूपेण सूत्रार्थ निरूपणायां अर्थाधारत्वान्निरूपणाया अवैपरीत्यस्य अर्थशुद्धिरित्युच्यते।< | <p class="SanskritPrakritSentence">[[भगवती आराधना]] / [[विजयोदयी टीका]]/ गाथा संख्या ११३/२६१/१२ अथ अर्थ शब्देन किमुच्यते। व्यञ्जनशब्दस्य सांनिध्यादर्थशब्दः शब्दाभिधेये वर्तते, तेन सूत्रार्थोऽर्थ इति गृह्यते। तस्य का शुद्धिः। विपरीतरूपेण सूत्रार्थ निरूपणायां अर्थाधारत्वान्निरूपणाया अवैपरीत्यस्य अर्थशुद्धिरित्युच्यते।</p> | ||
<p class="HindiSentence">= `अर्थ' शब्दसे हम क्या समझे? अर्थ शब्द व्यञ्जन शब्दके समीप होनेसे शब्दोंका उच्चारण होनेपर मनमें जो अभिप्राय उत्पन्न होता है वह अर्थ शब्दका भाव है। अर्थात् गणधर आदि रचित सूत्रोंके अर्थको यहाँ अर्थ समझना चाहिए। `शुद्धि' का अर्थ इस प्रकार जानना-विपरीत रूपसे सूत्रार्थकी निरूपणामें अर्थ ही आधारभूत है। अतः ऐसी निरूपणा अर्थशुद्धि नहीं हैं। संशय, विपर्यय, अनध्यवसायादि दोषोंसे रहित सूत्रार्थ निरूपणको अर्थ शुद्धि कहते हैं।</p> | <p class="HindiSentence">= `अर्थ' शब्दसे हम क्या समझे? अर्थ शब्द व्यञ्जन शब्दके समीप होनेसे शब्दोंका उच्चारण होनेपर मनमें जो अभिप्राय उत्पन्न होता है वह अर्थ शब्दका भाव है। अर्थात् गणधर आदि रचित सूत्रोंके अर्थको यहाँ अर्थ समझना चाहिए। `शुद्धि' का अर्थ इस प्रकार जानना-विपरीत रूपसे सूत्रार्थकी निरूपणामें अर्थ ही आधारभूत है। अतः ऐसी निरूपणा अर्थशुद्धि नहीं हैं। संशय, विपर्यय, अनध्यवसायादि दोषोंसे रहित सूत्रार्थ निरूपणको अर्थ शुद्धि कहते हैं।</p> | ||
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Revision as of 22:03, 24 May 2009
मूलाचार / आचारवृत्ति / गाथा संख्या २८५ विंजणसुद्धं सुत्तं अत्थविसुद्धं च तदुभयविसुद्धं। पयदेण च जप्पंतो णाणविसुद्धो हवइ एसो ।।२८५।।
= जो सूत्रको अक्षरशुद्ध अर्थशुद्ध अथवा दोनों कर शुद्ध सावधानीसे पढ़ता पढ़ाता है, उसीके शुद्ध ज्ञान होता है।
भगवती आराधना / विजयोदयी टीका/ गाथा संख्या ११३/२६१/१२ अथ अर्थ शब्देन किमुच्यते। व्यञ्जनशब्दस्य सांनिध्यादर्थशब्दः शब्दाभिधेये वर्तते, तेन सूत्रार्थोऽर्थ इति गृह्यते। तस्य का शुद्धिः। विपरीतरूपेण सूत्रार्थ निरूपणायां अर्थाधारत्वान्निरूपणाया अवैपरीत्यस्य अर्थशुद्धिरित्युच्यते।
= `अर्थ' शब्दसे हम क्या समझे? अर्थ शब्द व्यञ्जन शब्दके समीप होनेसे शब्दोंका उच्चारण होनेपर मनमें जो अभिप्राय उत्पन्न होता है वह अर्थ शब्दका भाव है। अर्थात् गणधर आदि रचित सूत्रोंके अर्थको यहाँ अर्थ समझना चाहिए। `शुद्धि' का अर्थ इस प्रकार जानना-विपरीत रूपसे सूत्रार्थकी निरूपणामें अर्थ ही आधारभूत है। अतः ऐसी निरूपणा अर्थशुद्धि नहीं हैं। संशय, विपर्यय, अनध्यवसायादि दोषोंसे रहित सूत्रार्थ निरूपणको अर्थ शुद्धि कहते हैं।