नगर: Difference between revisions
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Revision as of 16:26, 19 August 2020
== सिद्धांतकोष से == ( तिलोयपण्णत्ति/4/1398 )‒णयरं चउगोउरेहिं रमणिज्जं।=चार गोपुरों (व कोट) से रमणीय नगर होता है। ( धवला 13/5,5,63/334/12 ); ( त्रिलोकसार/674-676 )। महापुराण/16/169-170 परिखागोपुराट्टालवप्रप्राकारमंडितम् । नानाभवनविन्यासं सोद्यानं सजलाशयम् ।169। पुरमेवंविधं शस्तं उचितोद्देशसुस्थितम् । पूर्वोत्तर-प्लवांभस्कं प्रधानपुरुषोचितम् ।170।=जो परिखा, गोपुर, अटारी, कोट और प्राकार से सुशोभित हो, जिसमें अनेक भवन बने हुए हों, जो बगीचे और तालाबों से सहित हो, जो उत्तम रीति से अच्छे स्थान पर बसा हुआ हो, जिसमें पानी का प्रवाह ईशान दिशा की ओर हो और जो प्रधान पुरुषों के रहने के योग्य हो वह प्रशंसनीय पुर अथवा नगर कहलाता है।169-170।
पुराणकोष से
राज्य के सभी वर्गों के प्रधान लोगों की निवासस्थली । यह परिखा, गोपुर, अटारी, कोट और प्राकार के सुरक्षित, भवन, उद्यान चौराहों और जलाशयों से सुशोभित तथा अच्छे स्थान पर निर्मित होता है । ईशान दिशा की ओर इसके जलप्रवाह होते हैं । महापुराण 16. 169-170, 26. 3