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| <p id="1"> (1) कुण्डल पर्वतस्थ रजतप्रभ कूट का स्वामी देव । हरिवंशपुराण 5.691</p> | | #REDIRECT [[पद्मोत्तर]] |
| <p id="2">(2) रुचक पर्वतस्थ नन्द्यावर्तकूट का निवासी देव । हरिवंशपुराण 5.702 </p>
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| <p id="3">(3) मेरु पर्वत से पूर्व की ओर सीता नदी के उत्तरी तट पर स्थित कूट । हरिवंशपुराण 5.205</p>
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| <p id="4">(4) वत्सकावती देश के रत्नपुर नगर के राजा । ये युगन्धर जिनेश के उपासक थे । घनमित्र इनका पुत्र था । पुत्र को राज्य देकर आत्मशुद्धि के लिए ये अन्य अनेक राजाओं के साथ दीक्षित हो गये थे । ग्यारह अंगों का अध्ययन करके इन्होंने तीर्थंकर प्रकृति का बन्ध किया था । आयु के अन्त में समाधिपूर्वक मरण कर ये महाशुक्र स्वर्ग में महाशुक्र नाम के इन्द्र हुए । वहाँ से च्युत होकर ये तीर्थंकर वासुपूज्य हुए । महापुराण 58.2, 7, 11-13, 20, हरिवंशपुराण 60. 153</p>
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| <p id="5">(5) तीर्थंकर श्रेयांस के पूर्वजन्म का नाम । पद्मपुराण 20.20-24 </p>
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| <p id="6">(6) रत्नपुर नगर के विद्याधर पुष्पोत्तर का पुत्र । पद्मपुराण 6.7-9 </p>
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| [[Category: पुराण-कोष]]
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| [[Category: प]]
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