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| <p id="1"> (1) ग्यारह अंग के ज्ञाता पाँच आचार्यों में तीसरे आचार्य । वे महावीर निर्वाण के पश्चात् हुए थे । <span class="GRef"> महापुराण 2.146-147, 76. 520-525, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 1. 64, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 1. 41-49 </span></p> | | #REDIRECT [[पांडु]] |
| <p id="2">(2) पाण्डुक वन का एक भवन । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.322 </span></p>
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| <p id="3">(3) हस्तिनापुर के निवासी-कौरववंशी भीष्म के सौतेले भाई व्यास और उसकी रानी सुभद्रा का पुत्र । धृतराष्ट्र इसके अग्रज और विदुर अनुज थे । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 45.34, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 7.117 </span>इसे वज्रमाली विद्याधर से इच्छित रूप देने वाली एक अंगूठी प्राप्त थी । कर्ण इसकी अविवाहित अवस्था का पुत्र था । इसके पश्चात् इसने कुन्ती के साथ विधिवत् विवाह कर लिया था । कुन्ती की बहिन माद्री भी इसी से विवाही गयी थी । विवाह के पश्चात् इसके कुन्ती से तीन पुत्र हुए― युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन तथा माद्री से दो पुत्र हुए—नकुल और सहदेव । ये पाँचों भाई पाण्डव कहे जाते थे । <span class="GRef"> महापुराण 70.101-116, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 45.1-2, 34, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 7.164-166, 204-213, 261-264, 8.64-66, 142-175, 9.10 </span>सुव्रत योगी से इसने धर्मोपदेश सुना । उनसे अपनी आयु तेरह दिन की शेष जानकर इसने पुत्रों को राज्य सौंप दिया तथा उन्हें धृतराष्ट्र के अधीन कर वह संयमी हो गया । अन्त में आत्मस्वरूप में लीन होते हुए इसने समाधिमरण किया और सौधर्म स्वर्ग में देव हुआ । <span class="GRef"> पांडवपुराण 9.70-138 </span></p>
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| [[Category: पुराण-कोष]]
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